۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
मौलाना सय्यद आक़ा हैदर गगसोनवी

हौज़ा / पेशकश: दानिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी, मौलाना सय्यद आक़ा हैदर जैदी गगसोनवी सन 1326 हिजरी बामुताबिक़ 1908ई॰ में गगसोना ज़िला मेरठ में पैदा हुए,मोसूफ़ के वालिद जनाब वहाजुल हसन जैदी निहायत दीनदार और मुत्तक़ी इंसान थे, मौलाना आक़ा हैदर अपने ज़माने के मशहूर औलमा में शुमार किये जाते हैं।

मोसूफ़ तीन साल की उम्र में शफक़ते पिदरी से महरूम हो गये, आपका तालीमी सिलसिला 14 साल की उम्र में मदरसे मनसबिया से शुरू हुआ, मदरसे मनसबिया में आयतुल्लाह यूसुफ़ हुसैन अमरोहवी की ज़ेरे सरपरस्ती तालीम हासिल की, जब आयतुल्लाह युसुफ़ुल मिल्लत ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में शोबा ए दीनयात की मुदीरियत संभाली तो मदर्सए बाबुल इल्म के बानी  आयतुल्लाह सय्यद सिब्ते नबी मौलाना आक़ा हैदर को अपने साथ मदर्सए “बाबुल इल्म” में ले गये।

मोसूफ़ ने अपनी तालीम को मदर्सए “बाबुल इल्म” में रहकर आगे बढ़ाया उसके बाद आज़िमे लखनऊ हुए और जामिया नाज़मिया में दाख़िल होकर जय्यद औलमा से कस्बे फ़ैज़ किया, आपने तालिबे इल्मी के ज़माने ही से तदरीस का आग़ाज़ कर दिया था और अपने जूनियर तुल्लाब को दर्स देते थे, यूसुफ़ुल मिल्लत, नजमुल मिल्लत, अल्लामा सिब्ते नबी और अल्लामा अबुल हसन आपके मशहूर असातेज़ा में शुमार किये जाते हैं।

 आयतुल्लाह सय्यद सिब्ते नबी की रहलत के बाद मोमेनीन और तुल्लाबे मदरसए बाबुल इल्म मौलाना आक़ा हैदर की ख़िदमत में आये, आयतुल्लाह सिब्ते नबी की वसीयत और मदरसे की मुदीरियत को क़ुबूल करते हुए आज़िमे नोगाँवा हुए और अपने फ़राइज़ की अंजामदही में मशगूल हो गये, उन्होंने मदरसे को नई ज़िंदगी अता की, मदरसे और तुल्लाब की तरक़्क़ी के लिये हत्तल इमकान कोशिश की, इस कोशिश में अपनी अहलिया के ज़ेवरात भी गिरवी रख दिये जो बाद में वापस ना मिल सके।

मौलाना आक़ा हैदर ने मदरसए बाबुल इल्म नोगाँवा सादात की मुदीरियत को संभालते हुए वहाँ के इमामे जुमा वा जमात की ज़िम्मेदारी को भी अच्छे तरीक़े से निभाया, हर क़बीले और क़ौम के लोग मोसूफ़ से मोहब्बत करते थे और उनकी बाबत ख़ास एहतराम के क़ायल थे।

मौलाना ने कुछ खय्यर हज़रात की मदद से बाबुल इल्म के लिये सो ऐकड़ ज़मीन ख़रीदी, आप मदरसे की फ़लाह वा बहबूद के लिये पहली मर्तबा सन 1957ई॰ में आज़िमे अफ्रीक़ा हुए ताके वहाँ से रुक़ूमे शरइया लाकर मदरसे को तरक़्क़ी के मराहिल तै कराएं, सन 1960ई॰ में एक रोज़ खोजा इसना अशरी जमाअत के सरबराह जनाब इब्राहीम साहब मोसूफ़ की गैरमोजूदगी में मदरसा ए बाबुल इल्म नोगाँवा आ गये, जब उन्होंने मौलाना की सरगर्मियो को देखा तो बहुत ज़्यादा खुश हुए, उन्होंने मौलाना को इसी तरह का मदरसा अफ्रीक़ा में खोलने की दावत दी और तमाम वसाइल वा असबास की ज़िम्मेदारी अपने कान्धों पर उठाने का वादा किया।

मौलाना मोसूफ़ अल्लामा सिब्ते नबी साहब के ख़ानवादे में एक बुज़ुर्ग मुरब्बी की हैसियत रखते थे, हमेशा फ़ितना वा फ़साद का सर कुचलते रहते थे, कभी भी फ़ितने को पनपने नहीं दिया, हमेशा अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर को अंजाम देते थे।

मौलाना ने हमेशा तुल्लाबे उलूमे दीनया से इज़हारे मोहब्बत किया, तुल्लाब की बाबत इस क़दर हस्सास थे कि अगर कोई तालिबे इल्म बीमार हो जाता था तो ख़ुद मौलाना की तबीयत ख़राब होने लगती थी।

उनके एक शागिर्द ने मौलाना मक़बूल अहमद नोगाँवी साकिने सूडान उनके बारे में लिखते हैं: मौलाना आक़ा हैदर तुल्लाब का बहुत ज़्यादा एहतराम करते थे, अगर कोई तालिबे इल्म बीमार हो जाता तो पूरी पूरी रात उसकी सेहतयाबी के लिये दुआएं करते रहते थे, कभी भी उनकी नमाज़े शब क़ज़ा नही हुई, माहे रमज़ान के आखरी हफ़्ते में एतकाफ़ करते थे, कभी मुसतहब को भी क़ज़ा नही करते थे,

मौलाना ने २६ साल तक “मदरसए बाबुल इल्म” की मुदीरियत वा तदरीस संभाली और काफ़ी मिक़दार में शागिर्दों की तरबियत अंजाम दी जिनमें से आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद  बास्टवी, मौलाना मक़बूल अहमद नोगाँवीं, मौलाना मक़बूल हुसैन संभली, खतीबे आज़म मौलाना सय्यद ग़ुलाम असकरी, मौलाना मोहम्मद हैदर, अल्लामा सय्यद राहत हुसैन गोपालपुरी, मौलाना अली सज्जाद, मौलाना सय्यद अली बास्टवी, मौलाना सय्यद मोहम्मद शाकिर अमरोहवी, मौलाना सय्यद शबीहुल हसन आबदी, मौलाना अली आबिद करारवी, मौलाना मुर्तज़ा हुसैन, मौलाना सय्यद मोहम्मद काज़िम और अलहाज मुल्ला असगर वगैरा के नाम सरे फेहरिस्त हैं।

आपने चार साल तक भाऊनगर (गुजरात)में इमामते जुमा वा जमाअत के फ़राइज़ अंजाम दिये उसके बाद आज़िमे अफ्रीक़ा हुए, वहाँ पहुँचकर दारुस सलाम तंज़ानया, मुंबासा और कीनया में मुक़ीम रहकर तबलीगी फ़राइज़ अंजाम दिये।

अल्लामा के इल्म वा अमल और तहारत वा तक़वे के पेशे नज़र तमाम मोमेनीन उनका खुसूसी एहतराम करते थे, बावजूद इसके आपने सन 1957ई॰ में खोजा शिया इसना अशरी जमाअत की सरपरस्ती से इस्तीफ़ा दे दिया, मोमिनीन ने उन्हें अफ्रीक़ा से निकलने नहीं दिया बल्के उनके लिये घर और ज़रूरी सामान फ़राहम किये

मोसूफ़ को ख़ुदावंदे आलम ने दो नेमतों और चार रहमतों से नवाज़ा, उनके बेटे सय्यद मज़हर हैदर और सय्यद मंज़ूर हसनैन के नामों से मारूफ़ हुए

आखिरकार ये इल्मो अमल का आफ़ताब 91 साल की उम्र में बतारीख़ 9 रबीउस्सानी सन 1417हिजरी बमुताबिक़ सन 1996ई॰ मुंबासा में गुरूब हो गया, मोमेनीन की कसीर तादाद में मौलाना सय्यद अली आबिद रिज़वी करारवी इलाहबादी( मुक़ीमे नेरोबी कीनया) की क़यादत में नमाज़े जनाज़ा अदा हुई और नमाज़ के बाद कीनया (अफ्रीक़ा) में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।   

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9 पेज-96­दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023ईस्वी।     

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