۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
ज़ियाउल ओलामा मौलाना वसी मोहम्मद फैज़ाबादी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, ज़ियाउल ओलमा मौलाना वसी मोहम्मद सन1910 ई॰ बामुताबिक़ 1328हिजरी सरज़मीने फैज़ाबाद पर पैदा हुए, आपके वलिदे मजिद मौलवी सय्यद अली थे, मौलाना वसी मोहम्मद ने इब्तेदाई तालीम वसीक़ा अरबी कालिज फ़ैज़ाबाद में हासिल की फिर अपने बड़े भाई “मौलवी सय्यद नजमुल हसन” के पास बदायूं तशरीफ़ ले गये, आपके भाई ने आपको “सय्यदुल मदारिस अमरोहा” में दाखला दिला दिया उस वक़्त वहाँ “मौलाना सय्यद अमरोहवी” मुदर्रिसे आला थे मौलाना अमरोहा से वापस आकर दोबारा “वसीक़ा अरबी कालिज” में आ गये वहाँ रहकर इलाहबाद बोर्ड के इम्तेहानात पास करने के बाद आज़िमे लखनऊ हुए और सुल्तानुल मदारिस में दाखला ले लिया।

सदरुल अफ़ाज़िल की सनद दर्याफ्त करने के बाद इराक़ तशरीफ़ ले गये और वहाँ रहकर आयतुल्लाह ज़ियाउद्दीन इराक़ी, आयतुल्लाह अब्दुल हुसैन रशती, आयतुल्लाह सय्यद अबुल हसन इसफहानी और आयतुल्लाह अब्दुल्लाह शीराज़ी से कस्बे फ़ैज़ किया और इजाज़ात लेकर वतन वापस आ गये।

एक अरसे तक बदायूँ में इमामे जुमा वा जमाअत की हैसियत से मुक़ीम रहे उसके बाद गाज़ीपुर में चंद साल इमामे जमाअत की हैसियत से फराइज़ अंजाम दिये, मौलाना ज़फरुल हसन ने उनको “जवादया अरबी कालिज” बनारस में उस्ताद की हैसियत से बुला लिया, और कुछ माह के लिये मौलाना ज़फरुल हसन “नासिरया अरबी कालिज जोनपुर” के मुदीर हो गये, जब ज़फरुल मिल्लत बनारस वापस आए तो मौलाना वसी मोहम्मद “नासिरया जोनपुर” के प्रनसपल मुक़र्रर हो गये, मौलाना सआदत हुसैन ख़ान सालहा साल तक वसीक़ा स्कूल फ़ैज़ाबाद के प्रन्सपल रहे जब वो फ़ैज़ाबाद से लखनऊ मुंतक़िल हो गये तो मौलाना वसी मोहम्मद सन 1955ई॰ में उनकी जगह पर वसीक़ा अरबी कालिज के प्रन्सपल मुक़र्रर हो गये, ज़ियाउल औलमा वतन में रहकर दरस वा तदरीस और मुखतलिफ़ क़िस्म की दीनी खिदमात और शरई ज़िम्मेदारयों की अदाइगी में मसरूफ़ हो गये, अपने क़याम के दौरान एक क़दीम और निहायत ही मक़बूल “कमरख की दरगाह” अज़ सरे नो तामीर कराई और हज़रत अब्बास अ; का निहायत ही खूबसूरत रोज़ा बनवाया,1977ई॰ में वसीक़ा अरबी कालिज से रिटायर हुए तो मौलाना इबने हसन नोनहरवी ने आपको मदरसए वाएज़ीन लखनऊ में वाइस प्रन्सपल की हैसियत से बुलवा लिया और अल्लामा नोनहरवी के इंतेक़ाल के बाद सन 1980ई॰ में उस मदरसे के प्रन्सपल मुक़र्रर कर दिये गये और उस ओहदे पर ता हयात रहे मौलाना ने अपनी पूरी उम्र मदारिसे दीनया की ख़िदमत में  गुज़ारी और हज़ारों शागिर्दों की तरबियत फ़रमाई।

इन तमाम मसरूफ़यात के बावजूदमोसूफ़ ने तसनीफ़ वा तालीफ़ में नुमाया किरदार अदा किया आपके आसार में: अररज़ी उज़ ज़ामी और ज़िया उल गदीर क़ाबिले ज़िक्र हैं इन किताबों के बारे में इतना कहना काफी होगा की औलमा उनसे इसतेफ़ादा करते हैं, आपके बेशुमार मुसव्वेदात भी हैं जो तबा ना हो सके, इसके अलावा मोलाए काएनात का खुतबा गैर मंक़ूता का बे नुक़ता तरजमा करके लोगों को हैरत में डाल दिया, रिसाला ए अलजवाद में अल्लामा फ़लकी, आसी फैज़ाबादी, ज़ियाउल मिल्लत, ज़ियाउल औलमा और ज़िया हुसैनी के नामों से आपके मक़ाले छपते रहे हैं, तसनीफ़ वा तालीफ़ के अलावा शेर वा शायरी का आला ज़ोक़ था लेकिन ये ज़ोक़ सिर्फ़ मद्दाहिये अहलेबैत में सर्फ़ होता था।

इल्म के साथ हिल्म,सखावत,ईसार,खिताबत में बेमिस्ल, बयानात बे निहायत इल्मी वा दक़ीक़, सादगी, तक़वा, सिलए रहम,हि कमत, तदब्बुर, शायरी, हाज़िर जवाबी ऐसा मालूम होता था के ये सिफ़ात आप ही के लिये बनाये गये हैं।

इंकेसार और तवाज़ों की तसवीर इस वाक़ेए से ज़ाहिर होती है की एक जगह सालाना मजलिस थी बानयाने मजलिस में से एक भाई ने आपसे मजलिस का वादा ले लिया और दूसरे भाई ने दूसरे खतीब से वादा ले लिया, मोसूफ़ मजलिस पढ़ रहे थे कि दूसरे साहब भी तशरीफ़ ले आये और भरे मजमे में खड़े होकर कहा कि इस मजलिस का वादा मुझसे हुआ है, मौलाना वसी मोहम्मद ने जैसे ही सुना फ़ोरन मिंबर से उतर आये और ख़ुद ही फ़रमाया बिस्मिल्लाह वो साहब मिंबर पर तशरीफ़ ले आये और ख़ुद ही फ़रमाया बिस्मिल्लाह वो साहब मिंबर पर तशरीफ़ ले गये और पूरी मजलिस पढ़ी, मोसूफ़ पूरी मजलिस ज़ेरे मिंबर पर बैठे रहे और किसी से कोई शिकायत नहीं की हालांकि दूसरा ज़ाकिर सिर्फ़ ज़ाकिर था।

ईसार वा क़ुरबान का ये आलम था कि तुल्लाब के क़याम वा तआम के इखराजात अपनी जेबे ख़ास से अदा फ़रमाते थे, चूंके वसीक़ा अरबी कालिज का उमूमी चंदा नहीं होता था बल्कि वक़्फ़ बहू बेगम से बतवस्सुते हुकूमत कुछ रक़म मिलती थी जो मसारिफ़े दारुल आक़ामा के लिये नाकाफ़ी थी, चुनांचे एक मर्तबा दुकानदार का क़र्ज़ काफ़ी हो गया था दुकानदार ने सख़्ती से तक़ाज़ा किया और साफ़ कह दिया कि पहले मुकम्मल क़र्ज़ अदा करा दीजये तब नया क़र्ज़ मिलेगा मोसूफ़ ने इस मुश्किल मरहले में घर के ज़ेवरात फ़रोख्त करके क़र्ज़ अदा किया।

नादार तुल्लाब और मोमेनीन से हमदर्दी का ये आलम था तुल्लाब की खबरगीरी इस तरह फ़रमाते कि दूसरों को कानोकान ख़बर ना होती थी, बहुत से ऐसे तुल्लाब को इस वादे के साथ लाते कि उनके तमाम इखराजात की ज़िम्मेदारी मेरी है दूसरों की हमदर्दी उनके ख़मीर में थी नामालूम कितने ऐसे अफराद थे कि जिनकी मदद फ़रमाते रहते थे जबकि ख़ुद का ये आलम था कि मामूली गिज़ा खाते और सादा कपड़ा पहनते थे।

मौलाना सय्यद मोहम्मद जाबिर जोरासी रिसालए अलजवाद ज़ियाउल औलमा नम्बर में लिखते हैं कि मोसूफ़ की हमदर्दी वा सखावत के बाज़ वाक़ेआत का मैं ऐनी शाहिद हूँ, अक्सर दूसरी जगह के नादार तुल्लाब के ख़ुतूत आते, उन्होने मेरे ज़रिये कई कई सो के मनी आर्डर करवाए, एक मोमिन का मकान रहन रखा हुआ था जो बहुत परेशान थे, मुझे शब में उन्होने साढ़े चार हज़ार रूपये दिये और फ़रमाया कि ख़ामोशी से ये रक़म उन्हें दे आओ और कह दो कि मकान छुड़ा लें, एक मर्तबा शब में उनके हमराह जा रहा था फ़रमाने लगे कि ख़ुदा का शुक्र है कि इस बरस साल भर की ज़ाती दीगर आमदनियों के अलावा जो ज़ाकरी से होती थी मुझे एक लाख की रक़म दो मर्तबा ये कहकर दी गयी कि ये आपकी रक़म है जिस तरह चाहे ख़र्च करें, लेकिन माबूद गवाह है कि मैंने किसी गरीब लड़की की शादी करा दी, किसी का मकान बनवा दिया और दीगर उमूर पर सर्फ़ किया मगर अपनी ज़ात पर एक पैसा ख़र्च नहीं किया।

6 जुलाई सन 1984ई॰ में जब ईरान से अपने वतन वापस पलट रहे थे तो आपकी तबीयत बहुत ख़राब थी, हवाई जहाज़ में तबीयत और ज़्यादा बिगड़ गयी मौलाना रोशन अली (साबिक़ प्रन्स्पल मनसबिया अरबी कालिज मेरठ) आपके हमराह थे उन्होने हवाई जहाज़ के अमले की मदद से मौलाना को हवाई जहाज़ से उतारा इसलिये उनके पैरों में चलने की क़ुव्वत नहीं थी और दाहिनी जानिब फ़ालिज का असर हो गया था मौलाना रोशन अली अपने किसी अज़ीज़ दोस्त के घर ले गये और दूसरे दिन मौलाना सय्यद शमीम आलम इमामे जमाअत इमामया मस्जिद मुंबई को ख़बर दी उन्होने मौलाना को हबीब अस्पताल में दाख़िल करा दिया, तक़रीबन 2 साल तक मौलाना मुंबई, फ़ैज़ाबाद और बनारस के डाक्टरों और मेडिकल कालिजों में ज़ेरे इलाज रहे, आखिरकार ये इल्म वा अमल का अफ़ताब मई सन 1985ई॰ में बरोज़ शंबा सरज़मीने बनारस पर गुरूब हो गया, मय्यत बनारस से फ़ैज़ाबाद लाई गयी मौलाना शमीमुल हसन की इक़्तेदा में नमाज़े जनाज़ा अदा हुई और मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह मौलवी बाग नामी क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-3 पेज-307 ­दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023ईस्वी।

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