हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,जनाबे जौन अबुज़र गफ्फारी के गुलाम थे आप को आले मोहम्मद से वही खुसूसियत हासिल थी जो अबुज़र को थी जौन पहले इमामे हसन अ.स. की खिदमत में रहे फिर इमामे हुसैन अलै० की खिदमत गुज़ारी के शरफ से बहरावर हुए आप इमामे हुसैन अलै० के हमराह मदीने से मक्का और वहां से कर्बला आए और आप ने कर्बला में महान कुर्बानी पेश की।
आशूरा के दिन आपने इज़ने जेहाद तलब की तो आप ने फरमाया “जौन मुझे पसंद नहीं की मै तुम्हे कत्ल होते देखूं जौन ने कदमो पर सर रखते हुए अर्ज़ की “मौला आप के कदमो में शहीद हो जाना मेरी जिंदगी का मक़सद है”।
मौला ! मेरा पसीना बूदार है हस्ब खराब है और रंग काला सही, लेकिन जज्बा-ऐ-शहादत में खामी नहीं है मौला इजाज़त दीजिये की की सुर्खरू हो जाऊ।
इमामे हुसैन अलै० ने इजाज़त दी और जौन मैदाने जंग में आये । आप ने जबरदस्त जंग की और दर्जा-ऐ-शहादत पर फाएज़ हुए । इमामे हुसैन अले० लाशे जौन पर पहुंचे आपने दुआ देते हुए कहा “खुदाया”! इनके पसीने को मुश्कज़ार और रंग को सफेद कर दे और हस्ब को आले मोहम्मद (स०) के इंतेसाब से मुमताज़ कर दे।
इमामे हुसैन बाकर अलै० का इरशाद हैं की शहादत के बाद आप का चेहरा रौशन हो गया था और बदन से मुश्क की खुश्बू आ रही थी।