हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत जुहैर इब्ने कैन इब्ने क़ीस अल अम्मारी जबली अपनी कौम के शरीफ और रईस थे आपने कूफे में सुकूनत इख्तेयार की थी और वहीँ पर रहते थे। आप बड़े शुजा और बहादुर थे अक्सर लड़ाइयों में शरीक रहते थे पहले उस्मानी थे फिर 60 हिजरी में हुस्सैनी अलअल्वी हो गए ।
60 हिजरी में हज के लिए अहलो अयाल समेत गए थे वहां से वापस कूफे आ रहे थे की रास्ते में इमाम हुसैन अलै० से मुलाकात हो गई एक दिन ऐसी जगह उनके ख्याम नसब हुए की इमाम हुसैन अलै० के खेमे भी सामने थे।
जब जुहैर खाना खाने के लिए बैठे तो इमाम हुसैन अलै० का कासिद पहुच गया। उसने सलाम के बाद कहा जुहैर तुम को फ़रज़न्दे रसूल ने याद किया है यह सुन कर सबको सकता हो गया और हाथों से निवाले गिर पड़े।
जुहैर की बीवी जिस का नाम ‘वलहम बिनते उमर , था जुहैर की तरफ मुतावज्जे हो कर कहने लगीं जुहैर क्या सोचते हो? खुशनसीब तुमको फ़रज़न्दे रसूल ने याद किया है उठो और उनकी खिदमत में हाजिर हो जाओ।
जुहैर उठे और खिदमते इमाम हुसैन अलै० में हाजिर हुए थोड़ी देर के बाद जो वापिस आये तो उनका चेरा निहायत बश्शाश था ।ख़ुशी के साथ आसार उनके चेहरे से जाहिर थे।
उन्होंने वापस आतें ही हुक्म दिया की सब खेमे इमाम हुसैन अलै० के खयाम के करीब नसब कर दे और बीवी से कहा मै तुमको तलाक दिए देता हूँ तुम अपने कबीले को वापिस चली जाओ मगर एक वाक़या मुझ से सुन लो ।
जब लश्करे इस्लाम ने बल्खजर पर चढ़ाई की और फतहयाब हुए तो सब खुश थे और मै भी खुश था मुझे मसरूर देखकर सुलेमान फ़ारसी ने कहा की जुहैर तुम उस दिन इससे ज्यादा खुश होगे जिस दिन फरज़न्दे रसूल के साथ होकर जंग करोगे “।(अल-बसार अल-एन)
मै तुम्हे खुदा हाफिज कहता हुं और इमाम हुसैन अलै० के लश्कर में शरीक होता हूँ इसके बाद आप इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हुए और मरते दम तक साथ रहें यहाँ तक की शहीद हो गए ।
मोअर्खींन का बयान है की जनाबे जुहैर इमाम हुसैन अलै० के हमराह चल रहे थे मकामे “जौह्श्हम” पर हुर्र की आमद के बाद आप ने खुतबे में असहाब से फरमाया की तुम वापस चले जाओ उन्हें सिर्फ मेरी जान से मतलब है इस जवाब में जुहैर ने ही कहा था की हम हर हाल में आप पर कुर्बान होंगे।
जब हुर्र ने इमाम हुसैन अलै० की से मुज़हेमत की थी तो जनाब जुहैर ने इमाम हुसैंन की बारगाह में दरखास्त की थी अभी ये एक ही हजार है हुकुम दीजिये की उनका खातेमा कर दे । जिस के जवाब में इमामे हुसैन ने फ़रमाया था की हम इब्तेदाए जंग नहीं कर सकते ।
मोर्रखींन का ये बयान है की जब हजरते अब्बास एक शब् की मोहलत लेने के लिए शबे आशुर निकले थे तो जनाबे जुहैर भी आप के साथ थे ।
शबे आशुर के खुतबे के जवाब में जनाबे जुहैर ने कमाले दिलेरी से अर्ज़ की थी की आप “मौला अगर 70 मर्तबा भी हम आप की मोहब्बत में कत्ल किये जाए तो भी कोई परवाह नही ।
मोअर्र्खींन का इत्तेफाक है की सुबह आशुर जब इमाम हुसैन अलै0 ने अपने छोटे से लश्कर की तरतीब दी तो मैमना जनाबे जुहैर ही के सुपुर्द किया था ।
यौमे आशुर आपने जो कारे-नुमाया किया है वह तारीखे कर्बला के वर्को में मौजूद है। नमाज़े जोहर की जद्दो-जहद में भी आप आप का हिस्सा है आपने पै-दर-पै दुश्मनों पर कई हमले किये और 150 को फना के घाट उतार दिया बिल आखिर अब्दुल्लाह इब्ने शबइ और मुहाजिर इब्ने अदस तमीमी के हाथो शहीद हुए।