۲۹ شهریور ۱۴۰۳ |۱۵ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Sep 19, 2024
شهداء

हौज़ा / हज़रत वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी आप बनी क्लब के एक फर्द थे हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आप का नाम वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी था । आप बनी क्लब के एक फर्द थे । हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया है।

हम आप के वाकेयाते शहादत को किताब के ज़रिये ज़िक्र-अल-अब्बास से नक़ल करते है कर्बला की हौलनाक जंग में हुस्सैनी बहादुर निहायत दिलेरी से जान दे-दे श्र्फे शहादत हासिल कर रहे थे ।

यहाँ तक की जनाबे वहब बिन अब्दुल्लाह अल-कलबी की बारी आई । यह हुस्सैनी बहादुर पहले नसरानी था और अपनी बीवी और वालिद समेत इमाम हुसैन अलै० के हाथो पर मुसलमान हुआ था ।

आज जब की यह इमाम हुसैन अलै० पर फ़िदा होने के लिए आमादा हो रहे है उनकी वालेदा हमराह है माँ ने दिल बढ़ाने के लिए वहब से कहा , बेटा आज फ़रज़न्दे रसूल पर कुर्बान हो कर रूहे रसूल मकबूल स० को खुश कर दो । बहादुर बेटे ने कहा, मादरे गिरामी आप घबराये नहीं इंशा अल्लाह ऐसा ही होगा।

अलगरज आप इमाम हुसैन अलै० से रुखसत होकर रवाना हुए और रजज पढ़ते हुए दुश्मनों पर हमलावर हुए आप ने कमाले जोश व शुजाअत में जमाअत की जमाअत को कत्ल कर डाला इस के बाद अपनी माँ “कमरी”और बिवी की तरफ वापिस आये ।

माँ से पूछा मादरे गिरामी आप खुश हो गई माँ ने जवाब दिया मै उस वक्त तक खुश न होउंगी जब तक फ़रज़न्दे रसूल के सामने तुम्हे खाको खून में गलता न देखूं । यह सुन कर बीवी ने कहा, ऐ वहब मुझे अपने बारे में क्यों सताते हो और अब क्या करना चाहते हो?

माँ पुकारी “यांनी बनी ल तक्बिल कौल्हा” बेटा बीवी की मोहब्बत में न अ जाना खुदारा जल्द यहाँ से रुखसत होकर फ़रज़न्दे रसूल पर अपनी जान कुर्बान कर दो वहब ने जवाब दिया मादरे गिरामी ऐसा ही होगा।

मुझे इमाम हुसैन का इज्तेराब और हजरते अब्बास जैसे बहादुर की परेशानी दिखाई दे रही है भला क्योकर मुमकिन है की मै ऐसी हालत में ज़रा भी कोताही करूँ इस के बाद जनाबे वहब मैदाने जंग की तरफ वापिस चले गए और कुछ अशआर पढ़ते हुए हमलावर हुए यहाँ तक की आपने उन्नेस१९ ब-कौले१२ सवार और १२ प्यादे कत्ल किये इसी दौरान में आप के दो हाथ कट गए

उनकी यह हालत देखकर उनकी बीवी को जोश आ गया और वह एक चौबे खेमा लेकर मैदान की तरफ दौड़ी और अपने शौहर् को पुकार का कहा खुदा तेरी मदद करें । हाँ फ़रज़न्दे रसूल के लिए जान दे दो और सुन इसके लिए मै अब भी अमादा हूँ ।

यह देख कर वहब अपनी बीवी की तरफ इसलिए फौरन्न आये की उन्हें खेमे तक पंहुचा दे उस मुख्द्दर ने उन का दामन थाम लिया और कहा मै तेरे साथ मौत की आगोश में सोउंगी । फिर इमाम हुसैन अले० ने उसे हुकुम दिया की वह खेमो में वापिस चली जाए । चुनाचे वह वापिस चली गई उसके बाद वहब मशगूले कार्जार हो गए ।

और काफी देर तक नबर्द आजमाई के बाद दर्जा-ऐ-शहादत पर फाऐज हुए वहब के ज़मीन पर गिरते ही उनकी बीवी ने दौड़ कर उन् का सर अपनी आगोश में उठा लिया उन के चेहरे से गर्दो-गुबार और सर व आख से खून साफ़ करने लगी इतने में शिमरे लई के हुकुम से उसके गुलाम रुस्तम लई ने उस मोमिना के सर पर गूरजे आहनी मारा और यह बेचारी भी शहीद हो गई ।

मोर्रखींन का कहना है की “वही अव्वल अम्रात क्त्ल्त:फी अस्कर-अल-हुसैन”  यह पहली औरत है जो लश्करे हुसैन में कत्ल की गई । एक रिवायत में है जब वहब ज़मीन पर गिरे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया यानी उनकी लाश पर कब्ज़ा करके सर काट लिया गया।

उसके बाद उस सर को खेमा-ऐ-हुस्सैनी की तरफ फेक दिया और माँ ने उस सर को उठा लिया बोसे दिए और दुश्मन की तरफ फेक कर कहा, हम जो चीज़ रहे मौला में देते है उसे वापिस नहीं लेते । कहते है की वहब का फेका हुआ सर एक दुश्मन के लगा और वह हालाक हो गया । फिर माँ चौबे खेमा लेकर निकली और दुश्मनों को कत्ल कर के ब-हुक्मे इमाम हुसैन खेमे में वापिस चली गई ।

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