۱۲ مهر ۱۴۰۳ |۲۹ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Oct 3, 2024
मौलाना साजिद रिजवी

हौज़ा / सैयद हसन नसरुल्ला, लेबनान के एक महान नेता और प्रतिरोध की पार्टी हिज़्बुल्लाह के प्रमुख थे, जिनकी जिंदगी और नेतृत्व ने न केवल लेबनान बल्कि समस्त इस्लामिक दुनिया में उम्मीद की किरण जगाई है। उनकी शख्सियत में तक़वा, ज्ञान और बेजोड़ बहादुरी का संगम है, जिसके कारण उन्होंने सहयूनी आक्रामकता के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध की अगुवाई की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी!

लेखकः मौलाना सय्यद साजिद रज़वी मोहम्मद 

सय्यद हसन नसरुल्ला के नेतृत्व में हिज़्बुल्लाह ने कई महत्वपूर्ण सफलताएँ हासिल कीं, जिनमें 2000 में दक्षिणी लेबनान से इसराइली फौजों की वापसी एक प्रमुख उपलब्धि है। यह विजय लेबनान की जनता के लिए एक बड़ी कामयाबी थी, जिसने पूरे अरब और इस्लामी दुनिया में प्रतिरोध की धारणा को मजबूती प्रदान की। उनकी नेतृत्व क्षमता ने सिद्ध कर दिया कि हक की राह में संघर्ष करने वालों के लिए विजय निश्चित है, चाहे दुश्मन कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो।

सय्यद नसरुल्ला के बेटे, सैयद हादी नसरुल्ला, की शहादत ने उनकी जिंदगी में एक नया अर्थ जोड़ा। 1997 में दक्षिणी लेबनान में सहयूनी फौजों के खिलाफ लड़ते हुए हादी की शहादत को सैयद हसन नसरुल्ला ने गर्व के साथ स्वीकार किया और इस घटना को अपनी लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि "हम अपने बेटों को प्रतिरोध के लिए तैयार करते हैं और उनकी शहादत पर हमें गर्व होता है।" ये शब्द न केवल उनकी संकल्प और हिम्मत की अभिव्यक्ति करते हैं, बल्कि प्रतिरोध के सिद्धांत को भी स्पष्ट करते हैं।

सय्यद हसन नसरुल्ला की शख्सियत ने जनता के दिलों में जगह बना ली। उनकी सादगी, बलिदान का जज़्बा, और लोगों के प्रति प्रेम ने उन्हें एक आदर्श नेता बना दिया। उन्होंने हमेशा जनता का समर्थन हासिल किया और उनकी आवाज बनकर प्रतिरोध की गतिविधियों की अगुवाई की। 2006 के युद्ध में सहयूनी आक्रमण के खिलाफ हिज़्बुल्लाह की शानदार सफलता ने उनकी सैन्य रणनीति और नेतृत्व को और मजबूत किया। इस युद्ध में हिज़्बुल्लाह ने सहयूनी फौजों को भारी नुकसान पहुंचाया, जो सैयद नसरुल्ला की महान नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है।

सय्यद हसन नसरुल्ला का जीवन शहादत पर समाप्त हुआ, और 6 अक्टूबर 2024 को सहयूनी के हमले में उन्होंने अपनी जान का नज़राना पेश किया। उनकी शहादत ने न केवल उनके जीवन के मिशन को मजबूती दी, बल्कि यह संदेश भी दिया कि हक की राह में बलिदान देने वाले कभी नहीं मरते, बल्कि उनकी कुर्बानियाँ नई उम्मीदों और हिम्मतों को जन्म देती हैं।

सय्यद हसन नसरुल्ला की जिंदगी, नेतृत्व, और शहादत हमें यह सिखाती है कि हक और इंसाफ की राह पर चलने वाले कभी हार नहीं मानते। उनकी विरासत आज भी हिज़्बुल्लाह के रूप में जीवित है, और उनका संदेश दुनिया भर के मज़लूमों के दिलों में गूंजता है, जो उन्हें हक की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। सैयद हसन नसरुल्ला की कहानी एक ऐसे नेता की कहानी है, जो अपने लोगों की आज़ादी और स्वतंत्रता के लिए हर बलिदान देने के लिए तैयार थे।

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