हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, आयतुल्लाहिल उज़्मा सिस्तानी के फतवे के अनुसार, हराम धन का उपयोग आम तौर पर स्वीकार्य नहीं है, चाहे वह व्यक्तिगत उपयोग के लिए हो या मजलिस, महफ़िल या अन्य धार्मिक आयोजनों में हो। हराम धन से तात्पर्य उस धन से है जो अवैध तरीकों जैसे सूदखोरी, रिश्वतखोरी, चोरी या किसी अन्य नाजायज तरीके से प्राप्त किया गया हो।
प्रश्न: क्या हम मजलिसों और महफ़िलो में अवैध तरीकों से पैसा कमाने वाले लोगों से इस्लाम के काम में मदद और समर्थन ले सकते हैं?
उत्तर: हराम धन का उपयोग: आयतुल्लाहिल उज़्मा सिस्तानी के अनुसार, किसी भी मामले में हराम धन का उपयोग करना जायज़ नहीं है, क्योंकि यह कानूनी रूप से स्वामित्व में नहीं है। किसी के काम से लाभ प्राप्त करना तब तक वर्जित है जब तक कि वह कड़ी मेहनत या वैध तरीकों से अर्जित न किया गया हो।
मजलिसों या महफ़िलो में हराम का पैसा खर्च करना: धार्मिक समारोहों, मजलिसों या जलसों आदि में हराम का पैसा खर्च करना भी जायज़ नहीं है। क्योंकि इस संपत्ति का उपयोग स्वयं अनुमन्य नहीं है, भले ही इसका उद्देश्य देना ही क्यों न हो। धार्मिक मामलों में धन खर्च करने का क्रम यह है कि वह वैध और शुद्ध धन से होना चाहिए ताकि उसका बदला मिल सके।