हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ إِلَّا أَنْ تَكُونَ تِجَارَةً عَنْ تَرَاضٍ مِنْكُمْ وَلَا تَقْتُلُوا أَنْفُسَكُمْ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا या अय्योहल लज़ीना आमनू ला ताकोलू अमवालकुम बयनकुम बिल बातेले इल्ला अन तकूना तेजारतन अन तराजिन मिनकुम वला तकतोलू अनफ़ोसकुम इन्नल्लाहा काना बेकुम रहीमा (नेसा 29)
अनुवाद: हे विश्वासियों! एक दूसरे के माल को अन्यायपूर्वक न खाओ, सिवाय इसके कि एक दूसरे के साथ स्वेच्छा से व्यापार करो और अपने आप को मार डालो, वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे प्रति दयालु है।
विषय:
अवैध साधनों से धन कमाने का निषेध तथा आत्महत्या की निन्दा
पृष्ठभूमि:
सूरह अल-निसा मदनी वह सूरह है जो ज्यादातर मुसलमानों के लिए सामाजिक नियमों और सामाजिक व्यवस्था की स्थापना पर जोर देती है। श्लोक 29 का विषय मुख्य रूप से धन का उचित उपयोग और अवैध साधनों से बचना है। इस आयत में मुसलमानों को विशेष रूप से यह हिदायत दी गई है कि वे धोखाधड़ी, चोरी, सूदखोरी या रिश्वतखोरी जैसे अवैध तरीकों से एक-दूसरे का धन न लें और आपसी सहमति से वैध तरीके से व्यापार करें।
तफ़सीर:
1. निषिद्ध धन का उपयोग: सर्वशक्तिमान अल्लाह ने मुसलमानों को चोरी, धोखाधड़ी, सूदखोरी आदि जैसे गैरकानूनी तरीकों से धन न कमाने की सलाह दी है।
2. व्यापार में सहमति की शर्त: व्यापार के माध्यम से माल का लेनदेन अनुमत है, लेकिन शर्त यह है कि इसमें दोनों पक्षों की सहमति शामिल हो।
3. आत्महत्या का निषेध: इस श्लोक का अंतिम भाग स्पष्ट रूप से स्वयं की हत्या (अर्थात आत्महत्या) का निषेध करता है, जो एक निषिद्ध कार्य है।
4. अल्लाह की रहमत: आयत के अंत में अल्लाह की रहमत और रहमत का जिक्र किया गया है कि अल्लाह अपने बंदों से प्यार करता है और उन्हें सही रास्ते पर दिखाता है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
• धन का दुरुपयोग: इस्लाम ने हराम धन से बचने पर जोर दिया है और केवल वैध तरीकों से धन अर्जित करना आवश्यक बना दिया है।
• सहमति का महत्व: वित्तीय लेनदेन में पार्टियों की आपसी सहमति के महत्व पर जोर दिया जाता है।
• जीवन की सुरक्षा: मानव जीवन को महत्व दिया जाता है और आत्महत्या जैसे कार्य वर्जित हैं।
• इस्लामी सामाजिक सिद्धांत: यह आयत इस्लाम के सामाजिक और आर्थिक सिद्धांतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो न्याय, ईमानदारी और पारस्परिक सम्मान पर आधारित हैं।
परिणाम:
यह आयत मुसलमानों को सामाजिक और वित्तीय नैतिकता के सिद्धांत सिखाती है और निषिद्ध तरीकों से धन कमाने से मना करती है। साथ ही अल्लाह की रहमत और दयालुता का जिक्र इसलिए किया जाता है ताकि लोग इन सिद्धांतों पर चलकर अपने और समाज के लिए सुधार का जरिया बन सकें।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए नेसा