۲۴ آبان ۱۴۰۳ |۱۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 14, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / आयतुल्लाह को किसी भी रूप मे शिर्क के साथ जोड़ना एक अक्षम्य पाप है। हमें अपने विश्वास में केवल अल्लाह को ही एकमात्र ईश्वर मानना ​​चाहिए और उसके साथ किसी को साझीदार नहीं बनाना चाहिए। इस आयत के आधार पर मुसलमानों को अपने विश्वास की रक्षा करने और एकेश्वरवाद पर कायम रहने की जरूरत है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم  बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَنْ يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَنْ يَشَاءُ ۚ وَمَنْ يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدِ افْتَرَىٰ إِثْمًا عَظِيمًا  इन्नल्लाहा ला यग़फ़ेरो अय युश्रेका बेहि व यग़फ़ेरो मा दूना ज़ालेका लेमन यशाओ व म युश्रिक बिल्लाहे फ़क़दिफ तरा इस्मन अज़ीमा (नेसा 48)

अनुवाद: अल्लाह उसे माफ नहीं कर सकता जिसे उसका साझीदार ठहराया जाए, और इसके अलावा वह जिसे चाहे माफ कर सकता है, और जिसने उसका साझीदार बनाया उसने बहुत बड़ा गुनाह किया है।

विषय:

यह आयत अल्लाह ताला की नज़र में शिर्क की अक्षमता के बारे में है। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अल्लाह बहुदेववाद को माफ नहीं करता है, लेकिन वह अपनी इच्छानुसार अन्य पापों को माफ कर सकता है।

पृष्ठभूमि:

सूरह निसा मदनी एक सूरह है जो सामाजिक, नैतिक और धार्मिक नियमों का वर्णन करती है। यह एकेश्वरवाद के महत्व और किसी को भी अल्लाह के साथ जोड़ने के गंभीर परिणामों पर भी प्रकाश डालता है। इस आयत का संबोधन वे लोग हैं जो अल्लाह के अलावा किसी और को उसके साथ जोड़ते हैं, चाहे वह मूर्तिपूजा हो या कोई अन्य विश्वास।

तफ़सीर:

आयत का पहला भाग यह स्पष्ट करता है कि बहुदेववाद अल्लाह की दृष्टि में अक्षम्य पाप है, अर्थात अल्लाह के अलावा किसी और को भगवान या भगवान मानना ​​या उसके साथ साझीदार बनाना अल्लाह की दृष्टि में सबसे बड़ा अपराध है। .

दूसरे भाग में कहा गया है कि अल्लाह अपनी इच्छा से अन्य पापों को क्षमा कर सकता है, इसका अर्थ यह है कि वह बहुत दयालु और उदार है, लेकिन किसी को भागीदार बनाने का अधिकार उसे नहीं दिया जा सकता है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

1. शिर्क की गंभीरता: शिर्क सबसे बड़ा पाप है जिसे अल्लाह माफ नहीं करता।

2. माफ़ी का दायरा: अल्लाह दूसरे गुनाहों को माफ़ कर सकता है बशर्ते कि शिर्क न किया गया हो।

3. तौहीद का महत्व: यह आयत तौहीद की केंद्रीयता और विश्वास के आधार पर बहुदेववाद से बचने पर जोर देती है।

4. सज़ा और माफ़ी में अंतर: शिर्क करने वाले के लिए अल्लाह की ओर से बड़ी सज़ा है, जबकि दूसरे गुनाहों के लिए अल्लाह माफ़ी का दरवाज़ा खुला रखता है।

परिणाम:

यह आयत हमें स्पष्ट रूप से सिखाती है कि किसी भी प्रकार के शिर्क को अल्लाह के साथ जोड़ना एक अक्षम्य अपराध है। हमें अपने विश्वास में केवल अल्लाह को ही एकमात्र ईश्वर मानना ​​चाहिए और उसके साथ किसी को साझीदार नहीं बनाना चाहिए। इस आयत के आधार पर मुसलमानों को अपने विश्वास की रक्षा करने और एकेश्वरवाद पर कायम रहने की जरूरत है।

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तफ़सीर सूर ए नेसा 

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टिप्पणियाँ

  • Sharif Khan IR 15:32 - 2024/11/10
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    सुब्हानल्लाह बहुत ही अच्छा काम है आपका पढ़ने मे मन लगता है और बहुत कुछ सीखने का मिलता है।