۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / इस आयत से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को नम्र और विनम्र होना चाहिए और अपनी पवित्रता का इज़हार करने के बजाय अपने सुधार और अल्लाह की ख़ुशी पर ध्यान देना चाहिए। सच्ची पवित्रता अल्लाह ताला से आती है और वही सबका सच्चा न्यायाधीश है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ يُزَكُّونَ أَنْفُسَهُمْ ۚ بَلِ اللَّهُ يُزَكِّي مَنْ يَشَاءُ وَلَا يُظْلَمُونَ فَتِيلًا   अलम तरा ऐलल लज़ीना योज़क्कूना अंफ़ोसहुम बलिल्लाहो योज़क्का मय यशाओ वला युज़लमूना फ़तीला (नेसा 49)

अनुवाद: क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो अपनी रूहों की पाकीज़गी दिखाते हैं... हालाँकि अल्लाह जिसे चाहता है पाक कर देता है और अपने बन्दों पर रत्ती भर भी ज़ुल्म नहीं करता।

विषय:

यह आयत उन लोगों को संदर्भित करती है जो अपनी आत्मशुद्धि का वर्णन करते हैं और स्वयं की प्रशंसा करते हैं। अल्लाह ताला इस प्रथा की निंदा करता हैं और स्पष्ट करता हैं कि सच्ची पवित्रता और स्थिति अल्लाह की शक्ति में है, वह जिसे चाहता है उसे पवित्र कर देता है।

पृष्ठभूमि:

यह आयत तब सामने आई जब कुछ लोगों ने अपनी धार्मिकता व्यक्त की और खुद को अच्छाई और पवित्रता का आदर्श बताया। ये लोग स्वयं का महिमामंडन करते थे और सोचते थे कि वे अपने गुणों के कारण श्रेष्ठ हैं। अल्लाह ताला ने उन्हें याद दिलाया कि पवित्रता और कृपा अल्लाह के हाथ में है और वही है जो किसी को नेक और नेक बनाता है।

तफ़सीर:

इस आयत का मुख्य उद्देश्य लोगों को इस तथ्य से अवगत कराना है कि अपनी पवित्रता और श्रेष्ठता प्रदर्शित करना अल्लाह के आदेश और महिमा के विरुद्ध है। अल्लाह ने समझाया कि बंदे को अपना मामला अल्लाह पर छोड़ देना चाहिए। पवित्रता का वास्तविक स्रोत अल्लाह ताला की प्रसन्नता और इच्छा है, और वह मनुष्य के कार्यों का न्यायाधीश है।

महत्वपूर्ण बिंदु

• आत्म-प्रशंसा की निंदा: व्यक्ति को आत्म-प्रशंसा से बचना चाहिए क्योंकि यह नैतिक कमजोरी और घमंड को दर्शाता है।

• सच्ची पवित्रता अल्लाह की शक्ति में है: अल्लाह जिसे चाहता है उसे पवित्र कर देता है, और किसी के पास खुद को श्रेष्ठ समझने की शक्ति नहीं है।

• न्याय: अल्लाह ताला क्रूरता से मुक्त है और अपने बंदों के साथ अन्याय नहीं करता है।

परिणाम:

इस आयत से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को नम्र और विनम्र होना चाहिए और अपनी पवित्रता का इजहार करने के बजाय अपने सुधार और अल्लाह की प्रसन्नता पर ध्यान देना चाहिए। सच्ची पवित्रता अल्लाह ताला से आती है और वही सबका सच्चा न्यायाधीश है।

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तफसीर सूर ए नेसा

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