हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मौलाना सय्यद ज़ियाउल हसन नजफी ने जामे मस्जिद अली, हौज़ा इल्मिया जामेअतुल मुनतज़िर, मॉडल टाउन लाहौर में खुतबा देते हुए कहा कि इस्लामी इसूलों में सबसे अहम रुक्न अकीदा तौहीद है, यानी अल्लाह तआला को "वहदाहु लाशरीक" मानना।
उन्होंने कहा कि तमाम अंबिया (अ) की बेअसत की ग़रज़ और मकसद अल्लाह की एकता का पैग़ाम लोगों तक पहुँचाना था। उनका कहना था कि चाहे नबी हों या इमाम, किसी की मोहब्बत और नफ़रत में हद से गुज़रने की इजाज़त नहीं है। यहूदियों और ईसाईयों ने अपने अंबिया के बारे में ग़लत बयान दिए, लेकिन अफ़सोस है कि मुसलमानों में भी कुछ लोग आइम्मा और पीरों के बारे में गुलुव करते हैं, जो गुनाह है। अल्लाह किसी का मुहताज नहीं है। ये कहना कि "फलाँ ना होते तो अल्लाह का काम ना हो सकता था," यह दीन मे गुलुव है। अल्लाह तमाम गुनाह माफ़ कर सकता है, मगर शिर्क को माफ़ नहीं किया जाएगा।
मौलाना ज़ियाउल हसन नजफी ने कहा कि हम इब्न तैमिया के नज़रीयात को नहीं मानते, अगर अकीदा तौहीद अपनाना है तो हमें 'नहजुल बलाग़ा' में इमाम अली (अ) के कलाम से लेना चाहिए। अल्लाह तआला यकता है, उसका वजूद वाजिब है, वह किसी की तख़लीक़ का मुहताज नहीं है, हज़रत आदम (अ) से लेकर ख़ातमुल नबीइन हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) तक सभी अपने अस्तित्व की तख़लीक़ में अल्लाह के मुहताज हैं।
उन्होंने कहा कि कायनात का मुदब्बिर अल्लाह है, दरिया की रवानी, इंसानों की तख़लीक़, ये सब अल्लाह के इख़्तियार में है। किसी इमाम के बारे में कहना कि वह अपना उंगली से सिस्टम चलाते हैं, यह सही नहीं है। अकीदा तौहीद जितना खालिस होगा, आमाल में उतना ही इख्लास पैदा होगा।
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