हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ يَزْعُمُونَ أَنَّهُمْ آمَنُوا بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ يُرِيدُونَ أَنْ يَتَحَاكَمُوا إِلَى الطَّاغُوتِ وَقَدْ أُمِرُوا أَنْ يَكْفُرُوا بِهِ وَيُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَنْ يُضِلَّهُمْ ضَلَالًا بَعِيدًا अलम तरा एलल लज़ीना यज़अमूना अन्नहुम आमनू बेमा उंंज़ेला इलैका वमा उंज़ेला मिन कबलेका योरीदूना अय यतहाकमू ऐलत ताग़ूते व कद़ ओमेरू अय यकफ़ोरू बेहि व योरीदुश शैतानो अय योज़िल्लहुम ज़लालन बईदा (नेसा 60)
अनुवाद: क्या आपने उन लोगों को नहीं देखा जो सोचते हैं कि वे आप पर और जो कुछ आपके सामने प्रकट हुआ है उस पर विश्वास करते हैं और फिर अवज्ञाकारी लोगों को निर्णय देना चाहते हैं जब उन्हें आदेश दिया गया है और वे तागुत को अस्वीकार करना चाहते हैं और यही शैतान है उन्हें गुमराही में दूर तक घसीटना चाहता है.
विषय:
विश्वास, अधिकार से इनकार, और शैतान की धोखे की रणनीति
पृष्ठभूमि:
यह आयत सूर ए नेसी की 60 नम्बर की है, जो उन लोगों की दुर्दशा का वर्णन करती है, जो अपने विश्वास के दावे के बावजूद, अपने निर्णयों के लिए ताग़ूत की ओर रुख करते हैं। कुरान बार-बार ताग़ूत को अस्वीकार करने का आग्रह करता है क्योंकि यह अल्लाह की संप्रभुता के खिलाफ है और शैतान के गुमराह करने का एक साधन है।
तफ़सीर:
1. आस्था का दावा: आयत में उन लोगों का उल्लेख है जो पैगंबर (PBUH) और पिछली दिव्य पुस्तकों पर विश्वास करने का दावा करते हैं।
2. ताग़ूत का सहारा: ये लोग व्यवहार में विश्वास की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं और अपने विवादों को सुलझाने के लिए टैगहूट (वह सब कुछ जो अल्लाह के आदेश के खिलाफ है) का सहारा लेते हैं।
3. क़ुरआन का आदेश: अल्लाह ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि ताघुत को अस्वीकार कर दिया जाए, अर्थात उन विद्रोही और अधर्मी शक्तियों को अस्वीकार कर दिया जाए जो अल्लाह की आज्ञाकारिता का विरोध करते हैं।
4. शैतान की गुमराही: शैतान इन लोगों को अल्लाह की राह से हटाकर दूर की गुमराही में ले जाना चाहता है। इसका उद्देश्य लोगों को अल्लाह के आदेश से दूर करना और उसका अनुसरण करना है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
• आस्था केवल दावे या विश्वास तक सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि व्यावहारिक आज्ञाकारिता और दृष्टिकोण में प्रकट होनी चाहिए।
• तागूत की अस्वीकृति विश्वास की एक शर्त है।
• शैतान धोखे के माध्यम से मनुष्य को गुमराह करने की कोशिश करता है, और ताघुत की ओर मुड़ना इस गुमराह करने का एक साधन है।
• कुरान कर्म की परिपक्वता और विश्वास की सच्चाई को जोड़ता है।
परिणाम:
आस्था की सच्चाई तब सिद्ध होती है जब कोई व्यक्ति अल्लाह के आदेश का पालन करता है और तागुत को अस्वीकार करता है। यह आयत हमें व्यावहारिक विश्वास का महत्व और शैतान की चालों से अवगत रहना सिखाती है ताकि हम गुमराह होने से बच सकें और अल्लाह के आदेशों का पूरी तरह से पालन कर सकें।