हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
لَا إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ قَد تَّبَيَّنَ الرُّشْدُ مِنَ الْغَيِّ فَمَن يَكْفُرْ بِالطَّاغُوتِ وَيُؤْمِن بِاللَّـهِ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَىٰ لَا انفِصَامَ لَهَا وَاللَّـهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ ला इकराहा फ़िद्दीने कद तबय्यनर्रुश्दो मेनल ग़ई फ़मय यग़फ़ुर बित ताग़ूते वा यौमिम बिल्लाहे फ़क़दिस तमसका बिल उर्वतिल वुस्का लन फ़ेसामालहा वल्लाहो समीउन अलीम (बकराह, 256)
अनुवाद: धर्म में कोई बाध्यता नहीं है। गुमराही से हिदायत साफ़ हो गयी। अब जो कोई ताग़ूत (शैतान और हर झूठी शक्ति) को अस्वीकार करता है और ईश्वर पर विश्वास करता है, उसने निश्चित रूप से एक मजबूत रस्सी पकड़ ली है। जो कभी टूटने वाला नहीं है. और ईश्वर सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
क़ुरआन की तफसीर:
1️⃣ धर्म स्वीकार करने में कोई बाध्यता नहीं है।
2️⃣ विश्वास और लक्ष्य में जबरदस्ती संभव नहीं है।
3️⃣ विकास और मार्गदर्शन और अविश्वास और गुमराही के रास्ते स्पष्ट और उज्ज्वल हैं।
4️⃣ इस्लाम तर्क का धर्म है, मजबूरी और अनिच्छा का नहीं।
5️⃣ इस्लाम मार्गदर्शन का मार्ग स्पष्ट करके इंसान को इंतेखाब के दो राहे पर लाकर खड़ा करता है।
6️⃣ दिल की पुष्टि के अलावा, मौखिक रूप से अल्लाह तआला में विश्वास और अविश्वास की घोषणा करना भी आवश्यक है।
7️⃣ अविश्वासियों के सिद्धांतों और कार्यों की नींव खोखली और अस्थिर है।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए बकरा