हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
رَبَّنَاۤ اِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًا یُّنَادِیْ لِلْاِیْمَانِ اَنْ اٰمِنُوْا بِرَبِّكُمْ فَاٰمَنَّاۚ رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَ كَفِّرْ عَنَّا سَیِّاٰتِنَا وَ تَوَفَّنَا مَعَ الْاَبْرَارِ रब्बना इन्नना समेअना मनुदेयन लिल ईमाने अन आमेनू बेरब्बेकुम फ़अमन्ना रब्बाना फ़ग़फ़िर लना ज़ोनूबना व कफ़्फ़िर अन्ना सय्येआतेना व तवफ़्फ़ना मआल अबरारे (आले-इमरान, 193)
अनुवाद: हे प्रभु, हमने एक पुकारने वाले की आवाज़ सुनी जो विश्वास करने के लिए कह रहा था, "अपने भगवान पर विश्वास करो, इसलिए हम विश्वास करते हैं।" भगवान! अब हमारे पापों को क्षमा कर, हमारे बुरे कामों को हम से दूर कर, और हमें धर्मियों के साथ मरने दे।
विषय:
इस आयत का विषय विश्वासियों का अल्लाह की ओर मुड़ना, पश्चाताप और क्षमा के लिए प्रार्थना है।
पृष्ठभूमि:
यह आयत सूरह अल-इमरान में उस बिंदु पर प्रकट हुई थी जहां अल्लाह विश्वासियों के गुणों और उनकी प्रार्थनाओं का उल्लेख करता है। पिछली आयतों में, अल्लाह ने स्वर्ग का वादा किया और फिर उन लोगों का उल्लेख किया जो अल्लाह की ओर मुड़ते हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करते हैं। इस आयत में, विश्वासी अल्लाह से उनकी प्रार्थना में अल्लाह के पैगंबर के निमंत्रण को स्वीकार करने और उनके पापों को माफ करने के लिए कह रहे हैं।
तफसीर:
कविता "रब्बाना" से शुरू होती है, जिसके साथ विश्वासी अल्लाह को बुलाते हैं और विनम्र तरीके से अपनी प्रार्थना करते हैं। वे कबूल करते हैं कि उन्होंने ईश्वर के पैगंबर की पुकार सुनी और उस पर विश्वास किया। फिर वे अल्लाह से अपने पापों की क्षमा और बुरे कर्मों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं, ताकि उनका अंत नेक लोगों में हो।
यह आयत उन लोगों के लिए एक सबक है जो अल्लाह की ओर मुड़ते हैं और उसकी दया चाहते हैं। यह कविता विश्वास, पश्चाताप और क्षमा के महत्व पर प्रकाश डालती है।
परिणाम:
इस आयत का निष्कर्ष यह है कि अल्लाह की रहमत के दरवाजे हमेशा खुले हैं और जो लोग ईमानदारी से अल्लाह की ओर रुख करते हैं, अल्लाह उनके पापों को माफ कर देता है और उनके बुरे कर्मों को दूर कर देता है। यह आयत विश्वासियों को अल्लाह के निमंत्रण को स्वीकार करने और उसकी क्षमा के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करती है ताकि वे नेक लोगों के साथ समाप्त हो जाएं।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान