मंगलवार 14 जनवरी 2025 - 07:59
रजब के महीने मे अय्याम-ए-बीज़ के आमाल

हौज़ा / अय्याम-ए-बीज़ (जिसका अर्थ है सफेद दिन) चंद्र माह की तेरहवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं तारीखों को संदर्भित करता है। हदीसों में इन दिनों में रोज़ा रखने पर जोर दिया गया है। शियो के बीच रजब, शाबान और रमजान के महीनों केअय्याम-ए-बीज़ विशेष महत्व रखते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हर महीने की 13, 14 और 15 तारीख़ को अय्याम-ए-बीज़ कहा जाता है। मुसलमानों के विश्वास के अनुसार, रजब, शाबान और रमजान के महीनो के अय्याम-ए-बीज़ की बहुत ज़्यादा फ़ज़ीलत है।

इस्लामी फ़िक़्ह में तीन दिनों तक अल्लाह की इबादत और तज़क़ीया-ए-बातिन (आत्मा की शुद्धि) के लिए मस्जिद में रहना अय्याम-ए-बीज़ कहलाता है।

इब्न मसायब इन दिनो को "अय्याम-ए-बीज़" कहने के बारे में इस तरह से बयान करते हैं: मैंने रसूल-उल्लाह (स) से सुना, आप फ़रमाते थे:

जब हज़रत आदम (अ) से तर्क ए-औला हुआ तो अर्श से एक मुनादी की आवाज़ आई, "ऐ आदम! मेरे रहमत के पास से निकल जा, क्योंकि जो मेरी नाफ़रमानी करता है, वह मेरे पास रहने के लायक नहीं है।" हज़रत आदम और फ़रिश्ते रोने लगे। फिर अल्लाह ने जिब्रील (अ) को हज़रत आदम (अ) के पास भेजा। जिब्रील (अ) ने हज़रत आदम (अ) को ज़मीन पर उतारा। फिर फ़रिश्तों ने यह मंजर देख कर ज़ोर से आवाज़ लगाई, "हे अल्लाह! तूने एक मख़लूक़ बनाई, जिसमें अपनी रूह डाली, उसे सभी फ़रिश्तों से सजदा करने का हुक्म दिया और एक गुनाह और तर्क-ए-औला की वजह से उसकी सफ़ेदी और नूर को स्याही और अंधेरे में बदल दिया।" उस वक़्त मुनादी ने आसमान से आवाज़ दी कि आज के दिन अल्लाह के लिए रोज़ा रखो। और यह दिन महीने की 13 तारीख़ थी। जब हज़रत आदम (अ) ने उस दिन रोज़ा रखा तो उनकी स्याही कुछ सफ़ेद हो गई, यहां तक कि तीनों दिन पूरे होने के बाद उनकी हालत फिर से पहले जैसी हो गई। इसलिए इसे अय्याम-ए-बीज़ कहा जाता है।

अल्लामा तबातबाई अपनी तफ़्सीर 'अल-मीज़ान' में लिखते हैं: जब हज़रत मरयम (स) को फ़रिश्तों ने देखा, तो आपने लोगों से दूर रहने का फ़ैसला किया, ताकि वह एतेकाफ़ की स्थिति का स्वागत कर सकें। अल्लामा -मजलसी ने 'बिहार उल-अनवार' में और अल्लामा हिल्ली ने अपनी किताब 'तज़केरतुल-फुक़हा' में पहले के धर्मों में एतेकाफ़ की मंजूरी और वैधता की पुष्टि की है। "अय्याम-ए-बीज़" सभी इलाही और आसमानी धर्मों में एक पुराना रिवाज है। अय्याम-ए-बीज़ में सबसे बेहतरीन काम "अमल-ए- उम्मे दाऊद" है। क़ुरआन की सूरतों और आयतों का पाठ बहुत ज़्यादा तअकीद की गई है।

इमाम ख़ुमैनी (र) इन दिनों और महीनों में ख़ास प्रोग्राम रखते थे और दूसरों को भी तअकीद करते थे कि इन दिनों की बरकतों और आसमानी रातों से फ़ायदा उठाओ। रजब, शाबान और रमजान में इंसान को बहुत सारी बरकतें मिलती हैं। माह-ए-रजब में इन्कलाब का बड़ा दिन है, और हज़रत अली (अ) की विलादत और कुछ अन्य इमामों (अ) की भी विलादत है। माह-ए-शाबान में हज़रत सय्यद-अल-शुहदा (अ), इमाम-ए-ज़माना (अज) और अन्य इमामों (अ) और इस्लामी महान शख्सियतों की विलादत हुई है। माह-ए-रमजान में रसूल-उल्लाह (स) के दिल पर क़ुरआन नाज़िल हुआ। इन तीनों महीनों की अफ़ज़लियत और शराफत ज़बानों, बयानों और अक़ल के हद से बाहर है। इन महीनों की बरकतों में से दुआएं हैं जो इस महीने में पढ़ने के लिए बताई गई हैं।

सहीफ़ा-ए-इमाम, ज 17, प 456

अय्याम-ए-बीज़ के अमल

13वीं रात

  • दो रकअत नमाज़ अदा करना और हर रकअत में हम्द, यासिन, तबारक अल-मुल्क और तौहीद की सूरतें पढ़ना।

13वां दिन

  • रोज़ा रखना।
  • अगर कोई अमल-ए-उम्मे दाऊद करना चाहता है, तो इस दिन का रोज़ा रखे।

15वीं रात

  • छह रकअत नमाज़, तीन सलाम के साथ, 13वीं रात की नमाज़ की तरह।
  • ग़ुस्ल करना।
  • शब-बे-दारी (रात जागना) करना।
  • ज़ियारत-ए-इमाम हुसैन (अ) करना।
  • तीस रकअत नमाज़ अदा करना और हर रकअत में एक बार हम्द और दस बार तौहीद पढ़ना।
  • बारह रकअत नमाज़, हर दो रकअत के बाद एक सलाम। हर रकअत में हम्द, तौहीद, फलक, नास, आयतुल क़ुर्सी और क़दर को चार बार पढ़ना। नमाज़ के बाद चार बार यह जुमला पढ़ा जाए:
    अल्लाहु अल्लाहु रब्बी लाशरीक लहू शैअं वला अतख़िज़ु मिन दूनिही वलीय़ं

15वां दिन

  • गुस्ल करना।
  • ज़ियारत-ए-इमाम हुसैन (अ) पढ़ना
  • नमाज़े सलमान का पढ़ना
  • चार रकअत नमाज़ दो सलाम के साथ पढ़े और सलाम के बाद कहे "اَللّهُمَّ یا مُذِلَّ كُلِّ جَبّارٍ؛ وَیا مُعِزَّ الْمُؤْمِنینَ اَنْتَ كَهْفى حینَ تُعْیینِى الْمَذاهِبُ؛ وَاَنْتَ بارِئُ خَلْقى رَحْمَةً بى وَقَدْ كُنْتَ عَنْ خَلْقى غَنِیّاً وَلَوْلا رَحْمَتُكَ لَكُنْتُ مِنَ الْهالِكینَ وَاَنْتَ مُؤَیِّدى بِالنَّصْرِ عَلى اَعْداَّئى وَلَوْلا نَصْرُكَ اِیّاىَ لَكُنْتُ مِنَ الْمَفْضُوحینَ یا مُرْسِلَ الرَّحْمَةِ مِنْ مَعادِنِها وَمُنْشِئَ الْبَرَكَةِ مِنْ مَواضِعِها یا مَنْ خَصَّ نَفْسَهُ بِالشُّمُوخِ وَالرِّفْعَةِ فَاَوْلِیاَّؤُهُ بِعِزِّهِ یَتَعَزَّزُونَ وَیا مَنْ وَضَعَتْ لَهُ الْمُلُوكُ نیرَ الْمَذَلَّةِ عَلى اَعْناقِهِمْ فَهُمْ مِنْ سَطَواتِهِ خاَّئِفُونَ اَسئَلُكَ بِكَیْنُونِیَّتِكَ الَّتِى اشْتَقَقْتَها مِنْ كِبْرِیاَّئِكَ وَاَسئَلُكَ بِكِبْرِیاَّئِكَ الَّتِى اشْتَقَقْتَها مِنْ عِزَّتِكَ وَاَسئَلُكَ بِعِزَّتِكَ الَّتِى اسْتَوَیْتَ بِها عَلى عَرْشِكَ فَخَلَقْتَ بِها جَمیعَ خَلْقِكَ فَهُمْ لَكَ مُذْعِنُونَ اَنْ تُصَلِّىَ عَلى مُحَمَّدٍ وَاَهْلِ بَیْتِهِ"۔
  • अमल-ए-उम्मे दाऊद  करना

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