शुक्रवार 31 जनवरी 2025 - 15:18
हजरत ज़ैनब का इत्मिनान-ए-नफ़्स और इस्तिक़ामत

हौज़ा / खानदान-ए-इस्मत व तहारत में तो हर शख़्स क़मालात और फ़ज़ाइल का मर्कज़ रहा है, लेकिन अली और फातिमा (अ) के घराने में एक ऐसी हस्ती भी है, जो अपने बाप के लिए ज़ीनत है तो अपनी मां के लिए फ़ातिमी सीरत का सच्चा आईना है। अगर जनाब फातिमा (स) की कोई दूसरी मिसाल है तो वह दूसरी फातिमा, जनाब ज़ैनब (स) हैं, जिन्होंने इस्मतों की गोद में पल कर, पाकीज़गी के घेरे में परवरिश पाई और चादर-ए-तत्हीर के साए में पली बढ़ी। यक़ीनन, हर रिश्ता अपने इत्तेहाद की मुकाम पर फाईज़ नज़र आता था।

लेखकः मौलाना गुलज़ार जाफ़री

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

खानदान-ए-इस्मत व तहारत में तो हर शख़्स क़मालात और फ़ज़ाइल का मर्कज़ रहा है, लेकिन अली और फातिमा (अ) के घराने में एक ऐसी हस्ती भी है, जो अपने बाप के लिए ज़ीनत है तो अपनी मां के लिए फ़ातिमी सीरत का सच्चा आईना है। अगर जनाब फातिमा (स) की कोई दूसरी मिसाल है तो वह दूसरी फातिमा, जनाब ज़ैनब (स) हैं, जिन्होंने इस्मतों की गोद में पल कर, पाकीज़गी के घेरे में परवरिश पाई और चादर-ए-तत्हीर के साए में पली बढ़ी। यक़ीनन, हर रिश्ता अपने इत्तेहाद की मुकाम पर फाईज़ नज़र आता था

उनका बाप, औलियायो का सरदार, मां, आलामीन की महिलाओं की सरदार, नाना, नबीओं का सरदार, भाई, जन्नत के नौजवानों के सरदार, दादा, सय्यद उल-बत्हा, सय्यद उल-आराब, और एक भाई, वफ़ाओं का सरदार था। जब हर तरफ़ सरदारी ही सरदारी थी, तो इस मुकद्दस घराने से तरबियत पाई हुई बेटी का नाम "अक़ीला बनी हाशिम" जनाब ज़ैनब (अ) है, जिसने अपने किरदार में इमामत और विलायत को रखा और उनकी हिफाज़त का असल हक अदा किया।

कर्बला की घटनाओं में जनाब ज़ैनब (स) के इत्मिनान-ए-नफ़्स और इस्तिक़ामत की जो तस्वीर सामने आती है, वह अद्भुत है। जहां बड़े-बड़े सूरमा और तलवारबाज़ लोग डर और घबराहट में थे, वहीं जनाब ज़ैनब (स) ने न सिर्फ़ अपने क़ौम और रिश्तेदारों की हिफाज़त की, बल्कि उनकी हिम्मत और सब्र ने कर्बला की असली तस्वीर दुनिया के सामने रखी।

जब कर्बला में चारों तरफ़ आग के शोले भड़क रहे थे और हुसैन (अ) की नस्ल को मिटाने की कोशिशें हो रही थीं, तो जनाब ज़ैनब (स) अपने कंधों पर इमामत और विलायत का क़ीमती बोझ उठाए हुए थीं। इमाम सज्जाद (अ) से जब पूछा गया कि हमें खेमे जलते हुए छोड़ने चाहिए या बाहर निकलकर जान बचानी चाहिए, तो उन्होंने कहा कि "प्यारी मां, जान की हिफाज़त करना जरूरी है।" इस घटना में हम देख सकते हैं कि जनाब ज़ैनब (स) ने अपनी ताकत और सब्र से एक तरफ़ शहीदों की शहादत को गवाह बनाया और दूसरी तरफ़ अपने क़ौम की हिफाज़त की जिम्मेदारी उठाई।

एक दिलचस्प वाक़िया जो एक शिया आलिम ने सुनाया, वह इस प्रकार था: भारत में एक समय अशोक सिंगल नामक एक राजनीतिक नेता थे, जो आरएसएस से जुड़े हुए थे। उन्होंने एक शिया आलिम से पूछा था कि "क्या आपने नहीं सुना कि शियाो ने हज़रत ज़ैनब (स) के साथ बड़ा ज़ुल्म किया है?" इस पर आलिम ने हैरान होकर पूछा कि कैसे? तो उन्होंने कहा कि "आप कहते हैं कि ज़ैनब (स) अपनी बारीकियों और शर्तों के बावजूद उस समय के इमाम के सामने सवाल कर रही थीं, जबकि वह खुद इस्मत और तहारत की मिसाल हैं।"

आलिम ने उन्हें समझाया कि यह सवाल पूछने की घटना सिर्फ़ एक सवाल नहीं थी, बल्कि यह हज़रत ज़ैनब (स) की पूरी ताकत और उस समय की इमामत को हिफाज़त देने का एक ज़रिया था। वह सिर्फ सवाल नहीं कर रही थीं, बल्कि यह दर्शा रही थीं कि कर्बला की घटना के बाद भी इमामत का लोहा मानेगा और वह अपने क़ौम की सुरक्षा और शरिया के पालन का संदेश दे रही थीं।

शाम-ए-ग़रीबा की रात, जहां पूरा वातावरण घबराहट और सन्नाटे में डूबा था, वहां जनाब ज़ैनब (स) ने अपनी हिम्मत और इस्तिक़ामत से इस घड़ी में भी अपनों की हिफाज़त की। कर्बला से कूफ़ा और फिर शाम तक, जब बुरे हालात थे, जनाब ज़ैनब (स) ने सब्र और तवक्कुल (ईश्वर पर भरोसा) का नमूना पेश किया।

वह अकेली औरत, जिसने इस मुश्किल वक्त में ना केवल अपने रिश्तेदारों और बच्चों का ख्याल रखा, बल्कि कर्बला के बाद की कठिनाइयों में भी शरियत की पूरी हिफाज़त की। वह एक समय में शहादत का पेग़ाम देने के साथ-साथ हिजाब और शरिया के नियमों को जिंदा रखने का संदेश भी दे रही थीं।

जनाब ज़ैनब (स) की ज़िन्दगी और उनके कर्मों का उदाहरण हमें यह सिखाता है कि सही रास्ते पर चलने के लिए इस्तिक़ामत और इत्मिनान-ए-नफ़्स जरूरी हैं। वह किसी भी हालत में अपने मिशन से नहीं भटकीं और अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ईश्वर पर पूरा भरोसा रखा। उनका यह सब्र और ताकत हमें दिखाती है कि हर कठिनाई और मुसीबत में भी एक इंसान को अपने कर्तव्यों से नहीं मुंह मोड़ना चाहिए।

वेलदत-ए-बासआदत "अक़ीला बानी हाशिम" हज़रत ज़ैनब (स) मुबारक हो।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha