सोमवार 27 अक्तूबर 2025 - 11:51
हया और हिम्मत एक-दूसरे के विरोधी नही / इफ़्फ़त और इस्मत ही औरत की असली शक्ति है

हौज़ा / ज़ैनब कुबरा (स) के जन्मदिन के अवसर पर हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू.) के शिया थियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वी ने कर्बला की घटना में हज़रत ज़ैनब (स) की भूमिका पर विस्तृत प्रकाश डाला। 

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ैनब कुबरा (स) के जन्मदिन के अवसर पर हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू.) के शिया थियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वी ने कर्बला की घटना में हज़रत ज़ैनब (स) की भूमिका पर विस्तृत प्रकाश डाला। 

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः हज़रत ज़ैनब (स) का नाम ज़ैनब क्यों रखा गया, इसका फ़लसफ़ा क्या है इस पर प्रकाश डालिए?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः ‘ज़ैनब’ का अर्थ है “पिता की ज़ीनत” या “सुंदर, सुगंधित वृक्ष”। यह नाम केवल एक संबोधन नहीं था, बल्कि एक प्रतीक था, यह बताने के लिए कि यह बेटी अपने पिता अली (अ) की शान बनेगी, उनके इल्म, साहस और ईमान की खुशबू फैलाएगी। हज़रते ज़ैनब (स) का नाम एक इलाही पैग़ाम था कि आने वाले समय में यह शहज़ादी, अपने घराने की आबरू और इस्लाम की आवाज़ बनेगी।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः हज़रत ज़ैनब (स) को “उम्मुल मसाएब” की उपाधि क्यों दी गई और इसका ऐतिहासिक अर्थ क्या है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः “उम्मुल मसाएब” का अर्थ है “मुसीबतों की माँ”। यह उपाधि इसलिए दी गई क्योंकि हज़रते ज़ैनब (स) का पूरा जीवन दुख और परीक्षाओं का दर्पण था। उन्होंने अपने बचपन में नबी (स) का वियोग देखा, युवा अवस्था में माँ की शहादत, पिता का ज़हर भरी तलवार से ज़ख्मी सर और भाई इमामे हसन (स) को ज़हर से तड़पते हुए देखा, और फिर कर्बला की वह त्रासदी, जहाँ भाई की लाश रेत पर थी और आसमान गवाह था। इन सबके बावजूद, हज़रते ज़ैनब (स) टूटीं नहीं बल्कि वो सब्र और हिम्मत की मिसाल बन गईं। उनका यह खिताब मानव धैर्य के सर्वोच्च स्तर का प्रतीक है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः हज़रत ज़ैनब (स) की इमामे हुसैन (अ) के प्रति लगाव को विस्तार से साझा कीजिए।

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः हज़रत ज़ैनब (स) का इमामे हुसैन (अ) से संबंध केवल ख़ून का नहीं था, बल्की मिशन का था। वह जानती थीं कि इमामे हुसैन (अ) का उद्देश्य सत्ता नहीं, सच्चाई की हिफ़ाज़त है। उन्होंने अपने पति से यह वचन लिया कि जब भी इमामे हुसैन (अ)  यात्रा करें, वह उनके साथ रहेंगी। जब तलवारें चलीं, तो हज़रते ज़ैनब (स) की नज़रें आसमान पर थीं , और जब इमामे हुसैन (अ) शहीद हुए, तो हज़रते ज़ैनब (स) ने उनके ख़ून को संदेश बना दिया। उनका लगाव प्रेम नहीं, इबादत था; रिश्ते का नहीं, कर्तव्य का था।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः कर्बला की घटना में हज़रत ज़ैनब (स) की भूमिका को धार्मिक दृष्टि से कैसे समझा जाता है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः कर्बला के बाद जो इतिहास ज़िंदा रहा, वह हज़रते ज़ैनब (स) के कारण। उन्होंने इस्लाम की उस ज्वाला को बुझने नहीं दिया जो इमामे हुसैन (अ) के ख़ून से जल उठी थी। उन्होंने बीमार ईमामे सज्जाद (अ) की हिफ़ाज़त की, अनाथ बच्चों को संभाला, और यज़ीद के दरबारों में खड़े होकर हक़ और इंसाफ़ की आवाज़ उठाई। उनकी भूमिका यह सिद्ध करती है कि इमामे हुसैन (अ) ने क़ुर्बानी दी, और हज़रते ज़ैनब (स) ने उस क़ुर्बानी को अमर कर दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः यज़ीद के दरबार में उनके ख़ुतबे का इस्लामी समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः यज़ीद के दरबार में हज़रते ज़ैनब (स) ने वह किया जो इतिहास में किसी ने नहीं किया। वह अकेली खड़ी थीं, पर उनके शब्दों में एक पूरी क्रांति बोल रही थी।
उन्होंने अत्याचार को चुनौती दी, झूठे साम्राज्य की दीवारें हिला दीं, और लोगों को यह एहसास दिलाया कि इमामे हुसैन (अ) हारे नहीं थे , बल्कि उन्होंने इस्लाम को बचा लिया था। उनका ख़ुतबा वह चिंगारी बना, जिसने सोई हुई उम्मत को जगा दिया। इस्लामी इतिहास में वह दिन, हक़ की आवाज़ की जीत का दिन बन गया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः “मा राअयतु इल्ला जमीला” वाक्य का अर्थ और उसका आध्यात्मिक संदेश क्या है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः जब उनसे पूछा गया कि कर्बला में क्या देखा, तो उन्होंने उत्तर दिया: “मैंने केवल ख़ूबसूरती देखी।” यह उत्तर इस्लामी आध्यात्मिकता की चरम सीमा है।
जिस औरत ने अपने भाई, बेटों, और परिवार को खो दिया, वह फिर भी कहती है कि मैंने केवल ख़ूबसूरती देखी कियोंकि वह हर दर्द में अल्लाह की मर्ज़ी देख रही थीं। हज़रते ज़ैनब (स) ने सिखाया कि मोमिन का ईमान यह है कि वह तकलीफ़ में भी अल्लाह की रज़ा को “सुंदर” माने।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः हज़रत ज़ैनब (स) के इल्मी और दार्शनिक गुणों को “आलेमतुन ग़ैरो मुअल्लमा” क्यों कहा जाता है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः क्योंकि उनका ज्ञान पुस्तकों से नहीं, आत्मा से निकला था। उनके शब्दों में कुरआन की गूँज थी, उनके विचारों में वक़ार और नूर था। उन्होंने कभी किसी उस्ताद से नहीं सीखा, फिर भी उनके तर्क और वाक्पटुता ने विद्वानों को मौन कर दिया। वह ज्ञान की वह मंज़िल थीं, जहाँ ख़्याल इलाही इलहाम बन जाता है।
इसलिए उन्हें “वह आलिमा जिन्हें किसी ने नहीं सिखाया” कहा गया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः उनके जीवन के तीन प्रमुख कार्य देखभाल, इमाम सज्जाद (अ) की रक्षा, और संदेश फैलाना — का धार्मिक महत्व क्या है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः ये तीन कार्य ज़ैनबी मिशन की आत्मा हैं।
पहला — देखभाल: उन्होंने परिवार और कारवाँ की ज़िम्मेदारी उठाई, और मातृत्व की परिभाषा को करुणा के रूप में स्थापित किया।
दूसरा — इमामे सज्जाद (अ) की रक्षा: उन्होंने इमामत की निरंतरता को बचाया, जो इस्लाम की आत्मा है।
तीसरा — संदेश फैलाना: उन्होंने कर्बला के मक़सद को अमर किया, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि “हुसैन क्यों शहीद हुए।”

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः इस्लाम में महिला नेतृत्व का आदर्श उदाहरण हज़रत ज़ैनब (स) को क्यों माना जाता है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः क्योंकि उन्होंने दिखाया कि नेतृत्व केवल शासन नहीं, ज़िम्मेदारी है। उन्होंने विपत्ति में भी संयम नहीं खोया, दबाव में भी सत्य नहीं छोड़ा, और अपमान में भी इज़्ज़त बचाई। उनका नेतृत्व शक्ति का नहीं, चरित्र का नेतृत्व था। उन्होंने बताया कि एक औरत पर्दे में रहकर भी समाज की रूह को दिशा दे सकती है। हज़रत ज़ैनब ने इस्लाम की औरत को सिर्फ़ श्रद्धा नहीं, बल्की पहचान भी दी।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः हिजाब और इफ़्फ़त के बारे में हज़रत ज़ैनब (स) का आचरण क्या शिक्षाएँ देता है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः हज़रत ज़ैनब ने हिजाब को कमजोरी नहीं, आत्म-सम्मान का प्रतीक बनाया।
उनकी ज़िंदगी बताती है कि हया और हिम्मत एक-दूसरे के विरोधी नहीं। उन्होंने सिखाया कि हिजाब की हक़ीक़त बंदिश और क़ैद नहीं बल्की वह औरत जो अपने चरित्र को पवित्र रखती है, ख़ज़ानाए क़ुदरत का वह अनमोल मोती हे जो सदफ़ में रह कर भी कायनात की ज़ीनत में चार चांद लगा देती हे , उनका जीवन यह संदेश देता है कि इफ़्फ़त और इस्मत ही औरत की असली शक्ति है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः हज़रत ज़ैनब (स) के मुक़द्दस रौज़े से जुड़े मतभेदों का कारण क्या है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः इतिहासकारों में मतभेद हैं कि उनका रोज़ा कहाँ है ? दमिश्क (सीरिया), काहिरा (मिस्र) या मदीना। अगरचे इस बारे में कोई पक्का सबूत नहीं है, लेकिन सीरिया और मिस्र की मशहूर जगहें दोनों ही पवित्रता और रूहानी दुआओं के सेंटर हैं। अगर हक़ीक़त और इरफ़ानी निगह से देखा जाये तो सत्य यह है कि हज़रते जैनब (स) किसी एक जगह की नहीं थीं , वह पूरी इंसानियत की हैं। हर देश, हर शहर, बल्की हर दिल जो भी सब्र और हक़ को मानता है, वहीं हज़रते जैनब (स) का रौज़ा है। उनकी याद सीमाओं से परे है, और उनका असर अमर है। हर देश, हर शहर , हर नागरिक को लगता हे की हज़रते जैनब (स) मेरे साथ हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसीः हम आपके बहुत आभारी है कि आपने हमे अपना बहुमूल्य समय दिया, अंत मे हज़रते जैनब (स) से संबंधित क़ौम को विशेष कर कनीज़ान ए ज़ैनब कुबरा को क्या संदेश देना चाहेंगे?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः 
मेरा पैगाम यह है की हज़रत ज़ैनब (स) का नाम लेना आसान है, मगर उनके रास्ते पर चलना सब्र, हया और ईमान की परीक्षा है। कनीज़ान-ए-ज़ैनब को चाहिए कि वे अपने जीवन में ज्ञान, करुणा और आत्म-सम्मान को अपनाएँ। हर औरत जो अत्याचार के ख़िलाफ़ खड़ी होती है, वह ज़ैनब की बेटी बन जाती है। 

और हज़रते ज़ैनब की बेटियों! आप को ऐसा चिराग़ बनना चाहिये जिनसे सब्र की रोशनी और दीन की सेवा की खुशबू आती हो। हज़रत ज़ैनब (स) का मिशन है सेवा में सादगी, बातों में सच्चाई, और दिल में वही सब्र जिसने कर्बला को क़यामत के दिन तक ज़िंदा कर दिया। हज़रत ज़ैनब (स) इल्म की रोशनी, सब्र की मिसाल और हया की शान हैं। उनकी ज़िंदगी औरतों के लिए इज़्ज़त और जागरूकता का एक मैनिफेस्टो है और इंसानियत के लिए ईमान का एक हमेशा चलने वाला स्कूल है।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha