मंगलवार 4 फ़रवरी 2025 - 09:24
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) के दृष्टिकोण से वर्तमान युग की आधुनिक डिजिटल गुलामी से आज़ादी पाने के सिद्धांत

हौज़ा / या साहेबज़ ज़मान अलैहिस सलाम ! हम आपके दादा, सय्यद उस साजेदीन, इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की शुभ जन्मतिथि पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ प्रस्तुत करते हैं। यह वह दिन है जब इबादत और बंदगी का सूरज चमका, धैर्य और दृढ़ता का पाठ दुनिया के सामने आया और वह हस्ती इस दुनिया में प्रकट हुई जो अत्याचार के मुकाबले चुप मगर मजबूत प्रतिरोध का प्रतीक बनी।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, या साहेबज़ ज़मान अलैहिस सलाम ! हम आपके दादा, सय्यद उस साजेदीन, इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की शुभ जन्मतिथि पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ प्रस्तुत करते हैं। यह वह दिन है जब इबादत और बंदगी का सूरज चमका, धैर्य और दृढ़ता का पाठ दुनिया के सामने आया और वह हस्ती इस दुनिया में प्रकट हुई जो अत्याचार के मुकाबले चुप मगर मजबूत प्रतिरोध का प्रतीक बनी।

प्रिय मित्रों!

यह दिन हम सभी के लिए रहमत और हिदायत का संदेश लेकर आया है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की ज़िंदगी हमें धैर्य, नैतिकता, इबादत और इंसानियत के अधिकारों की शिक्षा देती है। आइए, इस मौके पर हम यह संकल्प करें कि हम इमाम की शिक्षाओं को अपनी जिंदगी में लागू करेंगे, खासकर आज के इस आधुनिक युग में जहाँ नई प्रकार की चुनौतियाँ हमारे सामने हैं।

आज की दुनिया में हम एक ऐसी गुलामी में फँस चुके हैं जिसे "डिजिटल गुलामी" कहा जा सकता है। हम समझते हैं कि गुलामी सिर्फ शारीरिक बंदीगिरी का नाम है, लेकिन असल में यह दिमाग, समय, सोच और फैसलों पर नियंत्रण का नाम भी है। हम हर पल स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के गुलाम हैं। हमारी व्यक्तिगत जानकारी, फैसले, और जीवन की प्राथमिकताएँ तकनीकी कंपनियों के हाथों में हैं।

यह गुलामी किसी यज़ीदी अत्याचार से कम नहीं है, जो इंसान की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को समाप्त कर रही है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की ज़िंदगी हमें यह सिखाती है कि असली स्वतंत्रता क्या है। आप क़ैद में थे, लेकिन आपका दिल और आत्मा स्वतंत्र थे। आप पर अत्याचार हुआ, लेकिन आपने कभी भी सत्य का दामन नहीं छोड़ा। आपने "रिसाला-ए-हुकूक" लिखकर दुनिया को सिखाया कि हर इंसान के अधिकारों की रक्षा करना जरूरी है। आज के डिजिटल युग में, हमें इमाम से यह सीखना होगा कि हम खुद को डिजिटल गुलामी से कैसे मुक्त कर सकते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि डिजिटल दुनिया में इमाम की शिक्षाओं पर अमल कैसे किया जाए?

  1. डिजिटल डिटॉक्स अपनाएँ - यानी कुछ समय के लिए डिजिटल दुनिया से दूर रहें और हर रोज़ कुछ समय स्क्रीन से हटकर दुआ, चिंतन और असली जीवन के रिश्तों पर ध्यान दें।

  2. गलत जानकारी और झूठे प्रचार से बचें - सोशल मीडिया पर हर बात फैलाने से पहले उसकी सच्चाई की जांच करें, जैसे कि इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अलैहि सलाम) ने हमेशा सत्य और सही का पालन किया।

  3. अपनी निजी ज़िंदगी और सम्मान की रक्षा करें - अगर इमाम ने अत्याचारी हुक्मरानों के सामने तक़िया और हिकमत से काम लिया, तो हमें भी अपनी जानकारी और निजता की सुरक्षा करनी चाहिए।

  4. सोशल मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल करें - और इमाम के ज्ञान, नैतिकता, और दुआओं को दुनिया तक पहुँचाने के लिए तकनीकी संसाधनों का रचनात्मक तरीके से उपयोग करें।

या साहेबज़ ज़मान अलैहिस सलाम!

हम आपके दादा, इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की जीवनचर्या को मार्गदर्शक बनाकर इस आधुनिक दुनिया में भ्रम और गलत रास्तों से बचने का संकल्प करते हैं। हम दुआ करते हैं कि हमें वह समझदारी मिले ताकि हम तकनीकी उपकरणों के गुलाम बनने के बजाय, उन्हें इमाम की शिक्षाओं को फैलाने के लिए इस्तेमाल कर सकें।

अल्लाहुम्मा अज्जिल ले वलीयेकल फ़रज !

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