हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फलक ने शबे क़द्र के महत्व को समझाते हुए कहा,शबे क़द्र वह रात है जिसकी तुलना क़यामत तक कोई भी रात नहीं कर सकती और न ही कोई रात इस रात का स्थान ले सकती है।
मौलाना ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा: शब-ए-क़द्र सभी रातों की सरदार है इसलिए कोई भी रात ऐसी नहीं है जो शब-ए-क़द्र जैसी हो! क्योंकि सरदार अपनी रियाया (जनता) से कुछ ख़ास गुणों में अलग होता है।
मौलाना ग़ाफ़िर रिज़वी ने यह भी कहा, शब-ए-क़द्र वह रात है जिसके महत्व को ख़ुद क़ुरआन करीम ने बयान किया है। सूरह क़द्र में इरशाद होता है कि तुम क्या जानो शब-ए-क़द्र क्या है? यह वह रात है जो हज़ार रातों से अफ़ज़ल (बेहतर) है।
मौलाना ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, शब-ए-क़द्र के ख़ास अमल हैं, नमाज़ें हैं, दुआएं हैं जिन्हें पूरा करना बहुत अज्र (पुण्य) और सवाब (प्रतिफल) का कारण है। हमें इस रात की क़द्र (महत्व) करनी चाहिए क्योंकि यह क़ाबिल-ए-क़द्र (महत्वपूर्ण) रात है।
मौलाना ग़ाफ़िर रिज़वी ने यह भी कहा: साल भर में जो दुआएं क़ुबूल न हुई हों, उनके इस रात में क़ुबूल होने का पूरा इमकान (संभावना) रहता है। इसलिए इस रात को खेल-कूद या तफ़रीह में न गुज़ारें, बल्कि पूरी रात इबादत-ए-इलाही (अल्लाह की इबादत) में मशग़ूल रहें, क्योंकि खेल-कूद के लिए तो पूरा साल मौजूद है।
मौलाना ने कहा,18 रमज़ानुल मुबारक की रात, 20 रमज़ानुल मुबारक की रात और 22 रमज़ानुल मुबारक की रात को शब-ए-क़द्र के तौर पर पहचाना जाता है। यही वजह है कि हमारे उलेमाए किराम ने इन तीनों रातों के ख़ास अमल बताए हैं, जिन्हें पूरा करना इंसान की तक़दीर (भाग्य) को मंज़िल-ए-मिराज तक पहुंचा सकता है।
मौलाना ग़ाफ़िर ने अपनी बात को ख़त्म करते हुए कहा,दुनिया की सबसे अज़ीम (महान) किताब क़ुरआन करीम" का नुज़ूल भी इसी रात में हुआ है, जो ख़ुद एक अज़ीम फ़ज़ीलत (महत्व) की तरफ इशारा है। इसलिए हमें शब-ए-क़द्र के महत्व को समझते हुए ख़ास इबादतों को अंजाम देना चाहिए।
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