हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह बहाउद्दीनी ने अपनी किताब"आयत-ए-बसीरत"में ज़ोर देकर कहा है कि रोज़ा और नमाज़-ए-शब (तहज्जुद की नमाज़)तभी वास्तव में प्रभावी होते हैं जब वब आत्म-सुधार के साथ हों।
आपका कहना है कि इबादतों की असली असर केवल उन्हें करने में नहीं, बल्कि गुनाहों से बचने और हराम चीज़ों को छोड़ने में है ऐसी इबादतें जो अहंकार और घमंड से मुक्त न हों अपनी वास्तविक कीमत नहीं रखतीं।
आयतुल्लाह बहाउद्दीनी का कथन,रोज़े और नमाज़-ए-शब का असर गुनाहों से दूरी और हराम चीज़ों को छोड़ने में छिपा है वह रोज़ा जो सिर्फ भूख-प्यास का नाम हो और वह नमाज़-ए-शब जो केवल जागने का साधन हो लेकिन उसके बाद अलग-अलग गुनाह किए जाएँ या उस पर गर्व और घमंड किया जाए, तो उसकी कोई कीमत नहीं।
स्रोत:आयत-ए-बसीरत, पृष्ठ.97
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