हौज़ा न्यूज़ एजेंसी |
नमाज़ और रोज़े के बीच अंतर
1⃣ नमाज़ छोड़ने पर कफ़्फ़ारा नहीं देना पड़ता।
लेकिन
रमजान के महीने के रोजों और दूसरे जरूरी रोजों को छोड़ने पर कफ़्फ़ारा देना जरूरी है।
2⃣ अगर किसी के ज़िम्मे क़ज़ा नमाज़े है। तो मुस्तहब नमाज़ अदा कर सकते हैं।
लेकिन
यदि किसी पर रोज़े की कज़ा है, तो वह व्यक्ति मुस्तहब रोज़ा नहीं रख सकता।
3⃣ नमाज़ का समय होने पर गुस्ले मस्से मय्यत वाजिब है।
लेकिन
रोज़ा रखने के लिए जरूरी नहीं है।
4⃣ वुज़ू नमाज़ के लिए शर्त है, लेकिन रोज़े के लिए शर्त नहीं है।
5⃣ अगर कोई दोपहर में सफ़र करे तो उसकी नमाज़ क़स्र होगी।
लेकिन उस व्यक्ति का रोज़ा क़स्र नही होगा।
6⃣ यदि कोई व्यक्ति (मस्जिद अल-नबी, मस्जिद अल-हरम, मस्जिद कूफ़ा और हायर हुसैनी) की यात्रा करता है, तो उसके पास पूरी या कसर नमाज़ पढ़ने का विकल्प है।
लेकिन
उसे रोज़ा रखने का अधिकार नहीं है।
7️⃣ माहवारी या निफास के दौरान औरतें से जो नमाज़ छुट जाती हैं वो सब माफ हो जाती हैं
लेकिन
अगर रोज़े छूट जाएँ तो उनकी क़ज़ा करना वाजिब है।
स्रोत:
तौज़ीहुल मसाइल मराज, भाग 1 पेज 885 मस्अला न 1563