मंगलवार 29 अप्रैल 2025 - 17:13
तारागढ़ अजमेर में सिलसिलेवार महदवियत पर दरस/वक्त के इमाम की पहचान ज़रूरी

हौज़ा / भारत के तारागढ़ अजमेर स्थित मदरसा जाफ़रिया में इमामे जुमा मौलाना नक़ी मेहदी ज़ैदी द्वारा आशनाई बा महदवियत के शीर्षक से साप्ताहिक (हर हफ्ते) सिलसिलेवार दरस का सिलसिला जारी है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,भारत के तारागढ़ अजमेर स्थित मदरसा जाफ़रिया में इमामे जुमा मौलाना नकी मेहदी ज़ैदी द्वारा आशनाई बा महदवियत के शीर्षक से हर हफ्ते सिलसिलेवार दरस जारी है।

इस सिलसिले में मौलाना ज़ैदी ने दुआ-ए-मअ‍रिफ़त-ए-इमाम-ए-ज़माना अ.ज का हवाला देते हुए बयान किया कि यह दुआ शेख कुलैनी (रह.) और अन्य बुज़ुर्ग उलेमा ने इमाम जाफ़र सादिक अ.स से रिवायत की है आपने अपने महान साथी जनाब ज़ोरारा को यह दुआ सिखाते हुए फ़रमाया,ऐ ज़ोरारा! इस जवान (क़ाइम अ.ज) के लिए क़यामत से पहले एक ग़ैबत है।

जब ज़ोरारा ने इसका कारण पूछा तो इमाम अ.स ने फ़रमाया,अपनी जान के ख़तरे की वजह से।फिर फ़रमाया,ऐ ज़ोरारा! वह वही हैं जिनका इंतज़ार किया जा रहा है। उनकी पैदाइश के बारे में शक किया जाएगा। कोई कहेगा कि उनके वालिद बिना जानशीन के दुनिया से चले गए, कोई कहेगा कि वह अब तक अपनी मां के पेट में हैं और कोई कहेगा कि वह अपने पिता की वफ़ात से दो साल पहले पैदा हुए थे। लेकिन वह वही हैं जिनका सच्चे मोमिन इंतज़ार करते हैं अल्लाह अपने शियों को परखना चाहता है, इसलिए लोग शक में पड़ते हैं।

ज़ोरारा कहते है,"मैंने इमाम से पूछा,अगर मैं उस वक्त तक ज़िंदा रहूं तो क्या करूं?इमाम अ.स ने फरमाया,ऐ ज़ोरारा! जब वह वक्त आए तो ये दुआ ज़रूर पढ़ा करो:

اللَّهُمَّ عَرِّفْنِي نَفْسَكَ، فَإِنَّكَ إِن لَم تُعَرِّفْنِي نَفْسَكَ لَم أَعرِف نَبِيَّكَ،
اللَّهُمَّ عَرِّفْنِي رَسُولَكَ، فَإِنَّكَ إِن لَم تُعَرِّفْنِي رَسُولَكَ لَم أَعرِف حُجَّتَكَ،
اللَّهُمَّ عَرِّفْنِي حُجَّتَكَ، فَإِنَّكَ إِن لَم تُعَرِّفْنِي حُجَّتَكَ ضَلَلتُ عَن دِينِي"

हे अल्लाह! तू मुझे अपनी पहचान दे, क्योंकि अगर तूने मुझे अपनी पहचान नहीं दी तो मैं तेरे नबी की पहचान न कर सकूंगा।
हे अल्लाह! तू मुझे अपने रसूल की पहचान दे, क्योंकि अगर तूने मुझे अपने रसूल की पहचान नहीं दी तो मैं तेरी हुज्जत की पहचान न कर सकूंगा।

हे मेरे अल्लाह! तू मुझे अपनी हुज्जत की पहचान दे क्योंकि अगर तूने मुझे अपनी हुज्जत की पहचान नहीं दी तो मैं अपने दीन से गुमराह हो जाऊंगा।

मौलाना ज़ैदी ने आगे कहा कि यह दुआ ग़ैबत के दौर में पेश आने वाली मुश्किलों, शक और भ्रम के समय में ईमान और दीन की हिफाज़त के लिए पढ़ना बहुत ज़रूरी बताया गया है।
शीया उलेमा ने नमाज़ के बाद इस दुआ को पढ़ने पर ज़ोर दिया है।

आयतुल्लाहिल उज़मा मोहम्मद तकी बहजत और आयतुल्लाह मिर्ज़ा जवाद मल्की तबरीज़ी ने भी इस दुआ को नमाज़ के बाद पढ़ने की विशेष सिफारिश की है।आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमुली ने इसे एक इल्मी और तहकीकी (शोधात्मक) दुआ बताया है जो इल्म और सवाब दोनों का कारण है।सैय्यद इब्ने तावूस (रह) ने भी जुमा के दिन की दुआओं में इस दुआ को न छोड़ने की हिदायत दी है।

मौलाना ज़ैदी ने यह भी बताया कि इस दुआ का मफहूम यह है कि रसूल की सच्ची पहचान, अल्लाह की सच्ची पहचान पर आधारित है; और इमामों की पहचान, रसूल की सही पहचान पर आधारित है; और सच्चे दीन की समझ सिर्फ इमाम अ. की पहचान से ही संभव है।

उन्होंने यह भी बताया कि यह दुआ शीया किताबों जैसे:अलकाफ़ी (शेख कुलैनी रह.),अल-ग़ैबाह (शेख नुमानी रह.),कमालुद्दीन व तमामुन्नेमह (शेख सदूक़ रह.)अल-ग़ैबाह (शेख तूस़ी रह.)में भरोसेमंद संदर्भों के साथ मौजूद है।

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