हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "बिहारूल अनवार" पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:
:قال الامام الصادق علیه السلام
يا زُرارَةُ! اِنْ اَدْرَكْتَ ذلِكَ الزَّمانَ فَاْلزِمْ هذَا الدُّعآءَ:
اللّهُمَّ عَرِّفْنى نَفْسَكَ فَاِنَّكَ اِنْ لَمْ تُعَرِّفْنى نَفْسَكَ لَمْ اَعْرِفْ نَبِيَّكَ
اللّهُمَّ عَرِّفْنى رَسُولَكَ فَاِنَّكَ اِنْ لَمْ تُعَرِّفْنى رَسُولَكَ لَمْ اَعْرِفْ حُجَّتَكَ
اللّهُمَّ عَرِّفْنى حُجَّتَكَ فَاِنَّكَ اِنْ لَمْ تُعَرِّفْنى حُجَّتَكَ ضَلَلْتُ عَنْ دينى.
हज़रत इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
ए ज़ोरारा! अगर तूने असरे ग़ैबत को दरक किया, तो इस दुआ को हमेशा पढ़ते रहना
ख़ुदाया, मुझे अपनी पहचान आता कर क्योंकि अगर आपने मुझे अपने आपको ना पहचानवाया तो मैं आपके पैगंबर को ना पहचान सकूंगा
खुदाया! मुझे अपने रसूल की पहचान करवा क्योंकि अगर मैं आपके रसूल को ना पहचाना तो आपकी हुज्जत को ना पहचान सकूंगा।
खुदाया!मुझे अपनी हुज्जत को पहचावां क्योंकि अगर आपकी हुज्जत को ना पहचान सका तो अपने दीन से गुमराह हो गया।
बिहारूल अनवार,74/395/71