हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित रिवायत "अल-काफ़ी" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال الصادق علیه السلام:
إنَّ لِصاحِبِ هذا الأمرِ غَیبَةً، المُتَمَسِّكُ فيها بِدینِهِ كَالخارِطِ لِلقَتاد.
इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया:
निःसंदेह, इस अम्र (इमाम महदी अलैहिस्सलाम) के मालिक के लिए ग़ैबत है, अतः जो कोई इस (अवधि) में अपने दीन पर दृढ़ रहता है, वह उस व्यक्ति के समान है जो अपने हाथों (बिना किसी औज़ार के) से एक काँटेदार वृक्ष (क़ुताद) को उखाड़ फेंकता है।
(व्याख्या: "क़ुताद" एक कठोर और काँटेदार वृक्ष है जिसे नंगे हाथों से उखाड़ना अत्यंत कठिन और कष्टसाध्य होता है। यह हदीस इमाम महदी (अ) के ग़ैबत के ज़माने के दौरान दीन पर दृढ़ रहने की कठिनाई और उसके सवाब की महानता का वर्णन करती है। इसका अर्थ है कि ग़ैबत के ज़माने के दौरान ईमान पर दृढ़ रहना बहुत कठिन है, लेकिन ऐसा करने वाले का सवाब और पुण्य बहुत बड़ा होगा।)
अल-काफ़ी, भाग 1, पेज 335
            
                
                                        
                                        
                                        
                                        
                                        
                                        
                                        
                                        
                                        
                                        
                                        
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