۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
मौलाना

हौज़ा/पेशकश:दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैय्यद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी आयतुल्लाह मोहसिन नवाब रिज़वी 14 रबीउस सानी हिजरी मुताबिक़ 14 अप्रैल 1911ई॰ को महल्ला चाह कंकर लखनऊ में पैदा हुए, आपके वालिद सैय्यद अहमद नवाब रिज़वी थे,

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मुजतहिद ए मुसल्लम मोहसिन नवाब 14 रबीउस सानी हिजरी मुताबिक़ 14 अप्रैल 1911ई॰ को महल्ला चाह कंकर लखनऊ में पैदा हुए, आपके वालिद सय्यद अहमद नवाब रिज़वी थे, मोहसेनुल मिल्लत माहे अप्रैल १९१५ ई॰ में चार साल की उम्र में ही साया ए पिदरी से महरूम हो गाए।

आपने इब्तेदाई तालीम मदरसा ए नाज़मिया में हासिल की उसी साल आज़िमे नजफ़े अशरफ़  हुए ओर हौज़ ए इलमिया नजफ़े अशराफ़ में जय्यद असातेज़ा के सामने ज़ानु ए अदब तै किए आयतुल्लाह मोहसिन नवाब को नजफ़े अशराफ़ के बहुत से ओलमा ए किराम ने इजाज़ाते इजतेहाद से नवाज़ा जिनमें से आयतुल्लाह इब्राहीम रशती, आयतुल्लाह अब्दुल करीम ग़रवी, आयतुल्लाह ज़ियाउद्दीन इराक़ी, आयतुल्लाह मोहम्मद काज़िम यज़दी, आयतुल्लाह मोहम्मद हुसैन आले काशिफुल गिता, आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद हसन, आयतुल्लाह अब्दुल हुसैन रशती, और आयतुल्लाह अबुल हसन मूसवी वगैरा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं।

आप अक्टूबर १९३९ ई॰ में नजफ़े अशराफ़ से वापस हुए और मदरसा ए नासिरया जौनपुर के उस्ताद क़रार पाए, मदरसा ए अलिया रामपुर की मुदीरियत को संभाला और उस दौरान रियासते रामपुर में अपनी पुर जोश ओर आलेमाना खिताबत से मिल्लत को फ़ैज़ पोंहचाया उसके बाद लखनऊ का रुख़ किया और मदरसा ए सुलतानुल मदारिस में तुल्लाब की माक़ूल तरबियत का ज़िम्मेदारी उठाई, उसी के साथ मदर्सए नाज़मिया में कई बरस तक अशरा ए मजालिस में रौनक़ अफ़्रोज़े मिंबर रहे।

मोहसेनुल मिल्लत की तालीमी सलाहियतों से हिंदुस्तान के बहुत से लोगों ने इस्तेफ़ादा किया आपके ख़ास तलामेज़ा में: मौलाना सैय्यद मज़ाहिर हुसैन, मौलाना सैय्यद हमीदुल हसन, मौलाना इफ़्तेखार अंसारी, ख़तीबे अकबर मौलाना मिर्ज़ा मोहम्मद अतहर, हकीमे उम्मत डाक्टर मौलाना कलबे सादिक़, मौलाना वारिस हसन नक़वी, मौलाना सैय्यद शबीहुल हसन नोनहरवी, अल्लामा जीशान हैदर जवादी, सैय्यद अहमद साबिक़ गवर्नर झारखण्ड वगैरा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं।

आपको तसनीफ़ व तालीफ से भी ख़ास दिलचस्पी थी चुनांचे अपनी बेइंतेहा मसरूफ़ियत के बावजूद “अलइल्म” नामी इल्मी व मज़हबी रिसाले के सरपरस्त क़रार पाये जो बंजारी टोला लखनऊ से शाया होता था इस रिसाले के सरपरस्त क़रार पाये जो बंजारी टोला लखनऊ से शाया होता था,

इस रिसाले में आपके मज़ामीन और दिगर मुसन्न्फ़ीन की किताबों पर आपके तबसिरे और तनक़ीदें मुसलसल शाया हुईं, एक अरबी रिसाला “ अलअदीब” जो नासेरुल मिल्लत मौलाना नासिर हुसैन की ज़ेर सरपरस्ती निकलता था,

उसकी इदारात फ़रमाई जिसे अंजुमने “नादीयुल ओदबा” शाया करती थी उसमें भी आपके काफ़ी मज़ामीन शाए हुए हैं आपकी बहुत सी किताबें जिनमें बय्यानाते शिया मिन मसादिरे अहलेसुन्नत, हदीसे मदीनतुल इल्म, ज़ाईरीने क़ायमे आले मोहम्मद, फलसफ़ा ए सेहरो एजाज़ वगैरा के नाम लिए जा सकते हैं।

आप उर्दू ज़बान में मेयारी शायरी भी फ़रमाते थे अरबी ज़बान मे आला पैमाने की शायरी करते थे, चुनांचे जौनपुर शिया कालिज जो एक वक़्त तक फ़क़त मिडिल स्कूल था अपने ज़ाती असर व रुसूख़ के ज़रिये आपने इस ज़माने में दस हज़ार के रक़म जमा कराई थी,

जिस से इस कालिज में तुल्लाब के लिए क्लास रूम पुख्ता तामीर कराए गए थे और हाजी दाऊद नासिर को जौनपुर शिया कालिज में  मदऊ किया था और आपने बरजसता अरबी ज़बान मे मंज़ूम सिपासनामा हाजी दाऊद नासिर की खिदमत में कालिज की जानिब से पेश फ़रमाया था जिससे खुश होकर शिया कालिज जौनपुर की ख़ूब माली मदद हुई थी और मिडिल स्कूल शिया कालिज हो गया था।

रहलत से चंद महीने पहले काफ़ी इसरार के बाद अपनी शदीद अलालत के बावजूद “मजल्ला अल वाइज़” की निगरानी मंज़ूर करके इदारा अल वाइज़ को ममनूने एहसान किया,

अल्लाह ने आपको तीन नेमतों से नवाज़ा जो मौलाना सैय्यद नासिर महदी रिज़वी, सैय्यद आरिफ़ महदी रिज़वी और सैय्यद मुंतज़िर मेंहदी रिज़वी के नाम से पहचाने जाते हैं।

वो मोहसेनुल मिल्लत जिसके इलमो अमल का डंका हिंदुस्तान, पाकिस्तान ओर इराक़ में बजता था, वो बहरे ज़ख्खार जिसके उलूम का समंदर मोजें मारता था, वो आबिद व ज़ाहिद जिसके पंद व नसीहत के वक़्त लोग लरज़ जाते थे,

आखिरकार मज़कूरा ओसाफ़ की हामिल शख्सियत १२ जमादीयुस सानी १३८९ हिजरी मुताबिक़ २६ अगस्त १९६९ ईस्वी बरोज़ मंगल ढाई बजे दिन लखनऊ में अपने खालिक़े हक़ीक़ी से जा मिली इंतेक़ाल की ख़बर फ़ैलते ही अक़ीदतमंदों का हुजूम शरीअत कदे पर उमंड पड़ा, क़ुर्ब व जवार के इलाक़े में दुकानें बंद हो गयी और पूरी फिज़ा में रंजो ग़म की लहर दौड़ गयी, मग़रिब के क़रीब के वक़्त बहुत बड़े मजमे के हमराह जनाज़ा इमाम बाड़ा आगा बाक़िर में गुस्ल व कफ़न के लिये लाया गया और अगले रोज़ २७ अगस्त आपकी नमाज़े जनाज़ा उस वक़्त के अज़ीम खतीब और परहेज़गार आलिमे दीन “मौलाना इबने हसन नौनहरवी” की इक़तेदा मे हुई और मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह हुसैनया गुफ़रानमाब लखनऊ में सुपुर्दे खाक कर दिया गया,

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-९ पेज-१९९दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२०ईस्वी,

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