हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत ज़फरुल मिल्लत ,आयतुल्लाह ज़फ़रूल हसन, सन १३२९ हिजरी मुताबिक़ १९१० ई॰ में अपनी नानीहाल सरज़मीने “खतीबपुर” ज़िला आज़मगढ़ में पैदा हुए आपके वालिद मौलवी सैय्यद ज़मीरुल हसन ने आपका तारीख़ी नाम जफ़रूल हसन रखा, जफ़रूल मिल्लत ने इब्तेदाई तालीम अपने वालिदे माजिद से हासिल की, उसके बाद मदर्सए इसलामिया निज़ामाबाद ज़िला आज़मगढ़ में दाखला ले लिया ओर वहाँ से मदर्सए ईमानिया बनारस चले गए
उसके बाद मदरस ए सुलतानिया लखनऊ का रुख़ किए ओर वहाँ रहकर सन १९३५ई॰ में सदरुल अफ़ाज़िल की सनद हासिल की, लखनऊ की रिहाइश के दौरान ,लखनऊ यूनिवर्सिटि, से अरबी वा फारसी के इम्तेहानात में इम्तेयाज़ हासिल किया।
मदरसे से फारिग होने के बाद सन १९३५ से सन १९३७ तक मदरस ए बाबुल इल्म मुबारकपुर आज़मगढ़ में मुदर्रिसे आला रहे।
जफ़रुल मिल्लत सन 1937 ई॰ में आला तालीम के हुसूल की गरज़ से नजफ़ ए अशरफ़ तशरीफ़ ले गए उनके हमदर्द वा बरादरे निसबती मौलाना सैय्यद वसी मोहम्मद के बक़ौल आप नजफ़ में रोज़ाना दस ग्यारह दुरूस में शरीक होते ख़ुसूसन आयतुल्लाह सैय्यद जवाद तबरेज़ी के दरसे माक़ूलात में शिरकत फ़रमाते थे, उनके असातेज़ा उनके बड़े क़द्रदान थे, हाफेज़ा ख़ुदादाद था, वक़ारे इल्मो अमल, सिद्क़ मक़ाली ओर ज़बान परवरी ने उनकी साख जमा दी थी, बेहद ख़ुश अखलाक़ थे, हमेशा क़ुम के मफ़ाद पर निगाह रही, जिस से एक बार मुलाक़ात हो गई वह उनका होकर रह गया।
आप ने आयतुल्लाह अब्दुल हुसैन रशती, आयतुल्लाह सैय्यद अबुल हसन इस्फ़हानी, आयतुल्लाह सैय्यद ज़ियाउद्दीनन इराक़ी, आयतुल्लाह सैय्यद जवाद तबरेज़ी, आयतुल्लाह इब्राहीम रशती, आयतुल्लाह सैय्यद जमाल गुलपाएगानि और आयतुल्लाह अब्दुल्लाह शीराज़ी से कस्बे फ़ैज़ किया, फ़रागत के बाद उन मुजतहेदीन ओर दूसरे ओलमा से ईजाज़ाते इजतेहाद लेकर सन १९४० ई॰ में नजफ़ से हिंदुस्तान वापस आ गए
आपकी एक उर्दू तसनीफ़ “इंतेज़ारे क़ायमे आले मोहम्मद बहाइयो की किताब ज़हूरे क़ायम ए आले मोहम्मद के जवाब में तीन जिल्दों में शाया होती है, अमीरुल मोमेनीन का वो फ़िल बदीहा खुतबा जिसमें कहीं हरफ़े अलिफ़ नही आया है आपने उस मोजेज़ाना हैसियत के हामिल खुतबे का उर्दू में इस तरह तर्जुमा किया के उसमें कहीं भी अलिफ़ नहीं है,
आपने अरबी में किफ़ायतुल उसूल की शरहे दो जिल्दों में बाखत्ते ख़ुद तहरीर फरमाई है, इसके अलावा अरबी में मुताअद्दिद किताबों पर हवाशी क़लम बंद किये ओर अरबी ज़बान में उनके क़साइद भी छप चुके हैं।
जनवरी सन १९५०ई॰ में “माहनामा अलजवाद” का इजरा किया ओर एक लम्बे अरसे तक ऐसे मक़ाला निगारों का तआवुन हासिल रहा जिनकी तहरीर तहक़ीक का मुरक़्क़ा होती थी, अल्लामा एक अज़ीम शायर भी थे, आपके अरबी ओर उर्दू क़साइद फ़साहत वा बलागत ओर रवानी वा सलासत पर मुश्तमिल होते थे।
ज़फरुल मिल्लत ज़िंदगी भर इदारा तंज़ीमुल मकातिब” के सद्र रहे, इदारे के क़ायम होने के बाद आपने अपने एक मोतक़िद को मुंबई ख़त लिखा जिसमें इदारे के मकातिब की मदद के लिए सिफ़ारिश की तो उस मरदे मोमिन ने ४० मकातिब के ख़र्च को अपने ज़िम्मे ले लिया मकातिब के क़याम से इदारे की साख बढ़ी तो दूसरे ओलमा भी इस इदारे में शामिल होते चले गए, तंज़ीमुल मकातिब का पहला जलसा बनारस में हुआ जिसके मोहतमिम आप ही थे, इदारे का जब भी ओर जिस शहर में जलसा होता तो आप खुतबए सदारत पढ़ते थे।
उसके अलावा आपने आजमगढ़ में अंजुमन ए रिफाहुल मोमेनीन” की बुनयाद रखी जिसका एक बुनयादी मक़सद ये था के मोमेनीन में अगर कोई तनाज़ा पैदा हो तो कचहरी के चक्कर काटने के बजाए शरीअत के मुताबिक़ फैसला करा लें, इस अंजुमन के ज़रिये बहुत सारी समाजी इसलाहात हुईं ओर मोमेनीन में इत्तेहाद वा इत्तेफाक़ का जज़बा पैदा हुआ।
आपके शागिर्दों की फेहरिस्त तवील है जिनमें आपके फ़र्ज़न्दे अर्जुमंद मौलाना सैय्यद शमीमुल हसन, अल्लामा सईद अखतर रिज़वी गोपालपुरी, डाक्टर अमीर हसन आबदी, मौलाना सैय्यद मोहम्मद ज़ंगीपुरी, मौलाना शेख़ मुमताज़ अली, मौलाना सैय्यद कर्रार हुसैन वाइज़, मौलाना सैय्यद अहमद हसन, मौलाना अली इरशाद मुबारकपुरी, मौलाना हुसैन मेंहदी हुसैनी और मौलाना सैय्यद ज़मीरुल हसन रिज़वी वगैरा के असमा सरे फ़ेहरिस्त हैं।
अल्लाह ने आपको छ: नेमतों से नवाज़ा मोसूफ़ ने उनकी तालीम वा तरबियत पर ख़ास तवज्जो दी, आपके फ़रज़ंदों के असमा कुछ इस तरह हैं: मौलाना शमीमुल हसन प्रिंसपल मदरस ए जवादीया बनारस, सैय्यद दुर्रुल हसन इंजीनियर होने के साथ साथ ज़ाकिर और पेश नमाज़ भी हैं,
हकीम सैय्यद खुशनूद हसन निज़ामाबाद में मतब कर रहे हैं, सैय्यद अलियुल हसन जामिया मिललिया शोबए इंजीनियर के साबिक़ हैड, सैय्यद रज़ीयुल हसन इंजीनियर बंदरगाहे इमाम खुमेनी ईरान ओर सैय्यद वलियुल हसन तेहरान रेडयो ईरान में मशगूल हैं।
ज़फ़रुल मिल्लत एक अज़ीम और अहदे आफ़रीन हस्ती के मालिक थे आप को बयक वक़्त मुजताहिद, फ़क़ीह, मुफ़स्सिरे हदीस, मुताकल्लिम, फ़लसफ़ी, मंतक़ी, अदीब, शायर, सहाफ़ी, नक़िद, मुसन्निफ़, बेहतरीन मुतरजिम, मज़हबे हक़्क़ा का निगरान, मदारिसे दीनया का पासबान, जामिया जवादया का ज़ईम, क़ोम वा मिल्लत का निगेहबान, मजालिस वा महाफ़िल की जान, गोरबा वा मसाकीन का हमदर्द, बे नवा यतीमों ओर बेवाओं का मलजा वा मावा, मस्जिदों और इमाम बाड़ों के लिये मर्कज़े नुसरत, मेहराब वा मिमबर के लिये बाइसे ज़ीनत पैकरे खल्क़ वा इंकेसार और आबिद शब ज़िंदेदार सभी कुछ कहना बजा हैं।
आखिरकार यह इल्मो अमल का आफ़ताब हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी में मुबतला होने की वजह से शबे १७ रबीउल अव्वल सन १४०३ हिजरी में सरज़मीने बनारस पर गुरूब हो गया और नमाज़ ए जनाज़ा के बाद मोमेनीन की हज़ार आहो बुका के हमराह मस्जिदे मज़ाहिर साहब बनारस के सहन में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया,
माखूज़ अज़ा, नुजूमुल हिदाया,तहक़ीक़ो तालीफ़, मौलाना सैय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैय्यद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9 पेज-१३७ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२३ ईस्वी।