۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
मौलाना कल्बे हुसैन

हौज़ा/पेशकश:दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैय्यद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, खानदाने इजतेहाद के चश्मो चराग मौलाना कलबे हुसैन नक़वी उर्फ़ कब्बन नसीराबादी १३ फरवरी सन १८९४ई॰ में ख़ानदाने इजतेहाद में सरज़मीने लखनऊ पर पैदा हुए, आपका तारीख़ी नाम "अली अख़्तर" था आपके वालिद "मौलाना सय्यद आक़ा हसन" ओलमाए लखनऊ के दरमियान बड़ी शोहरत के मालिक थे, आपके नाना “मौलाना मीर आगा” भी लखनऊ के बड़े फ़ोक़हा में शुमार होते थे।

मौलाना ने इब्तेदाई तालीम अपने घर के इल्मी महोल में अपने वालिद और दिगर अफ़राद से हासिल की, आपके वालिद आक़ा हसन ने इब्तेदाई तालीम के बाद मदरसाए सुल्तानया में दाख़िल करा दिया जहाँ आपका शुमार मदरसे के ख़ुश अखलाक़, शायर और ज़हीन तलबा में होता था, आपने मदरसे के असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ करके सदरुल अफ़ाज़िल की सनद हासिल की।

मौलाना कलबे हुसैन ने मदरसे से फरागत के बाद इराक का रुख़ किया, नजफ़े अशरफ़ और करबलाए मोअल्ला के अकाबिर ओलामा से तीन साल कस्बे फ़ैज़ करने के बाद अपने वतन लखनऊ वापस आ गए, आपके सुल्तानया ­के असातेज़ा में मौलाना सय्यद मोहम्मद रज़ा फ़लसफ़ी, आयतुल्लाह सय्यद हादी, आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद बाक़िर रिज़वी वगैरा और घर पर अपने वालिद आक़ा हसन, ज़हीरुल मिल्लत आयतुल्लाह ज़हूर हुसैन, उम्दतुल ओलमा मौलाना सय्यद काज़िम और अशरफ़ुल होकमा हकीम सय्यद अली वगैरा से तालीम हासिल की।

आप अपने वालिद के कामो मे हाथ बटाने लगे,ख़ुदा ने आपको क़ुव्वते बयान से नवाज़ा था इसलिए आपने मिंबर के ज़ीनत बख्शी और

दिन बा दिन तरक़्क़ी करते गये,उस वक़्त शिया खिताबत के उफुक़ पर खतीबे आज़म मौलाना सिब्ते हसन, मौलाना मोहम्मद रज़ा फ़लसफ़ी ओर मौलाना मोहम्मद हुसैन मोहक्क़िक़े हिन्दी जैसे अकाबिर ज़ुफिशा थे,मौलाना कलबे हुसैन ने मुतालेआ और मेहनत से उन बुज़ुर्गों की मोजूदगी में शोहरत हासिल की।

मरजेइय्यत में आयतुल्लाह नजमुल मिल्लत और नासेरूल मिल्लत के बाद आयतुल्लाह कलबे हुसैन मुंफ़रिद शख्सियत के मालिक थे,आपकी सबसे बड़ी मसरूफ़ियत मजालिस थीं,बर्रे सगीर के गोशे गोशे मे मजालिस ख़िताब फ़रमाई।

खिताबत के अलावा आपने क़ोम के फ़िकरी, अखलाकी,इल्मी,इक़्तेसादी मेयार को बुलंद करने क लिये रिसाले निकाले जिनमे: अन नातिक़, बलाग और सहाब के नाम लिये जा सकते हैं, बैतुल माल इदारए इक़्तसादयात और दीगर इदारों के लिये बुनयादी काम किये, जामिया नाज़मिया, यतीमखाना,सुलतानुल मदारिस, शिया कान्फ्रेंस और सरफराज़ अख़बार जैसे इदारों में भी किरदार अदा किया॰

मौलाना कलबे हुसैन मेहनती इंसान थे वो सैकड़ों मसअलों पर फ़तवे और मज़ामीन लिखते थे, तालीफ़ात में आपकी किताब मजालेसुश्शिया का नाम लिया जा सकता है।

अल्लाह ने आपको पांच फरज़ंद अता फ़रमाए जिनके नाम कुछ इस तरह हैं: मौलाना कलबे आबिद नक़वी, मौलाना डाक्टर कलबे सादिक़, सय्यद कलबे हादी, सय्यद कल्बे बाक़िर और सय्यद कल्बे मोहसिन नक़वी।

एक दिन फ़ीनस में बैठकर मौलाना कल्बे सादिक़ की मजलिस सुनने गये ओर कहा ख़ुदा का शुक्र है मिंबर पर मेरी आवाज़ ओर मेहराब मे मेरी तस्वीर

 आ गयी तक़रीबन बहत्तर बरस की जिददों जहद ने कमज़ोर कर दिया था, बीमारी में मुबतला हो गये हर मुमकिन इलाज किया मगर इफाक़ा ना हो सका।

आख़िरकार ये इलमो अमल का चमकता गोहर 6 अक्टूबर 1963ई॰ में खामोश हो गया,आपकी रहलत की ख़बर बिजली की मानिंद फैल गयी, चाहने वालों का मजमा आपके शरीअतकदे पर उमड़ पड़ा, तमाम आलमे तशय्यो में कोहराम बरपा हो गया,जनाज़ा गुसलों कफ़न के लिये दरया ए गोमती पर ले जाया गया।

आपकी तशीय्ये जनाज़ा में हिन्दू मुस्लिम शिया सुन्नी और दीगर मसालिक के लोगों ने शिरकत की,जनाज़े के साथ बेशुमार मातमी दस्ते मातम करते हुए जनाज़े में शरीक हुए और मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह हुसैनया गुफरानमआब में मिंबर के ज़दीक सुपुर्दे ख़ाक कार दिया गया।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-२ पेज-१४५दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्व          

 

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