हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,जिस तरह दूसरे इमामे मासूमीन अलैहिमुस्सलाम ने अपनी कोशिश, सब्र और इस्तेक़ामत (दृढ़ता) के ज़रिए इस्लामी इतिहास के सुनहरे पन्ने लिखे, उसी तरह इमाम जवाद अ.स.ने भी अब्बासी हुकूमत के असली चेहरे को बेनक़ाब करने में अहम भूमिका निभाई।
उस दौर में जब मुनाफिक़ और रियाकार हुक्मरान, दीनदारी का झूठा दावा करके अवाम को धोखा देना चाहते थे इमाम ने लोगों को होशियार रहने और उनके फ़रेब का मुकाबला करने की दावत दी।
इमाम जवाद (अ.स.) ने एक समझदार और दूरंदेश मुख़ालफ़त के ज़रिए, शिया तंजीमसाज़ी और इल्मी व सांस्कृतिक ज़रियों का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने सीधे किसी फौजी टकराव में शामिल हुए बिना, इमामत के रास्ते को महफूज़ रखा और उस वक़्त की हुकूमत की झूठी मशरूइयत (वैधता) को चुनौती दी।
उनका यह तरीका हर दौर के लिए एक टिकाऊ और आदर्श नमूना है, क्योंकि ताक़तवर हमेशा धर्म की हिमायत का झूठा चोला पहन कर सच्चाई को छिपाने की कोशिश करते हैं, और सिर्फ़ अवाम की जागरूकता और सूझबूझ ही उनके चेहरों से नक़ाब हटा सकती है।
इमाम जवाद अ.स. का यह महान सबक आज भी इस्लामी समाजों के लिए रहनुमा है, क्योंकि रियाकार और मुनाफिक़ ताक़तों का मुक़ाबला सिर्फ़ अवाम की जागरूकता और समझदारी के ज़रिए ही मुमकिन है।
स्रोत: किताब पयामे इमाम अमीरुल मोमिनीन (अ.स.), नहजुल बलाग़ा की एक ताज़ा और व्यापक व्याख्या।
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