हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी ने अशरा-ए-मजालिस की चौथी मजलिस-ए-अज़ा में रसूल-अल्लाह स.अ.व. की मशहूर हदीस बेशक इमाम हुसैन (अ.स.) हिदायत का चिराग़ और निजात की कश्ती हैं।को अपने कलाम का मुख्य विषय बनाते हुए कहा कि हमारे सभी अइम्मा-ए-मासूमीन अ.स.निजात की कश्ती हैं, लेकिन इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) की हदीस के अनुसार, हुसैनी कश्ती सबसे तेज़ है।
मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी ने यह बताते हुए कि इमाम हुसैन अ.स.के साथी सच्चे और अमानतदार थे, कहा कि हज़रत क़ैस बिन मुसहिर सैदावी (अ.स.) और हज़रत अब्दुल्लाह बिन यक़्तर (अ.स.) इमाम हुसैन (अ.स.) के क़ासिद थे। जब उन्हें ख़त के साथ इब्ने जियाद के सिपाहियों ने गिरफ़्तार किया, तो उन्होंने तुरंत ख़त के टुकड़े-टुकड़े कर दिए ताकि कोई भी उसके मक़सद को न जान सके।
मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी ने आगे कहा कि जब इब्ने ज़ियाद ने उनसे पूछा कि तुमने ख़त क्यों फाड़ दिया, तो उन्होंने जवाब दिया,ताकि तुम उसके मक़सद को न जान सको इब्ने जियाद ने उन्हें शहीद करवा दिया।
मौलाना ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जो जितना सच्चा और अमानतदार था, वह उतना ही अइम्मा-ए-मासूमीन अ.स.)के निकट रहा। इमाम हुसैन (अ.स.) के साथियों ने अपनी जान तो कुर्बान कर दी, लेकिन अमानत में ख़यानत का विचार तक नहीं किया।
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