۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
تصاویر / مراسم عزاداری ماه محرم در بیت مرحوم آیت الله العظمی هاشمی شاهرودی

हौज़ा / इमाम हुसैन के बलिदान से न केवल यजीद की पराजय हुई बल्कि सभी युगों के अत्याचारी शासक इमाम हुसैन के संदेश से भयभीत हैं यही कारण है कि अत्याचारी शासकों_सल्तनतो  ने इमाम हुसैन के बलिदान की याद में निकाले जाने वाले जुलूसों पर प्रतिबंध लगाए हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी !

जब सच्चाई विनाश के कगार पर थी तब इमाम हुसैन ने महानतम बलिदान देकर इस्लाम की रक्षा की लेकिन इमाम हुसैन की कुर्बानी सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं है बल्कि सभी न्यायप्रेमी मानवों के लिए यह आदर्श है बुराई के विनाश के लिए इमाम हुसैन ने अपने प्रियजनों के साथ जो बलिदान दिया उसका संदेश आज भी संसार में गूंज रहा है सर्वोत्तम बलिदान आज भी दुनियाभर के पीड़ितों के लिए आशा है।

इमाम हुसैन के बलिदान से न केवल यजीद की पराजय हुई बल्कि सभी युगों के अत्याचारी शासक इमाम हुसैन के संदेश से भयभीत हैं यही कारण है कि अत्याचारी शासकों_सल्तनतो  ने इमाम हुसैन के बलिदान की याद में निकाले जाने वाले जुलूसों पर प्रतिबंध लगाए हैं जैसे कि अंग्रेजों द्वारा मुहर्रम का जुलूस निकालने पर निर्दोष लोगों पर निर्माण गोलीबारी की गई।

दरअसल जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे तब वह भारतीय मजदूरों को काम करने के लिए विदेश ले जाया करते थे जहां वह तरह तरह से भारतीयों को कष्ट दिया करते थे , पीटते थे अत्यधिक काम करवाते थे आदि, विदेश गए इन मजदूरों को गिरमिटिया मज़दूर कहा जाता था अत्याचार के साए में जीवन यापन करने वाले इन मजदूरों को राहत की आवश्यकता थी ये भिन्न भिन्न प्रकार के कार्यक्रम करते थे मुहर्रम के माह में इमाम हुसैन की याद में जुलूस भी निकालते थे जिसको होसे कहा जाता था।

मुहर्रम के जुलूस में इन मजदूरों की बढ़ती संख्या को देख अंग्रेज़ सरकार भयभीत हो उठी क्योंकि अंग्रेज उन दिनों विश्वव्यापी अत्याचारों के लिए कुख्यात था ब्रिटिश सरकार को भय था यदि ये मजदूर इमाम हुसैन की शोक सभाओं में सम्मिलित होते रहे तो इनके अंदर बलिदान की भावना विकसित हो जायेगी और यह हमारे अत्याचारों के विरूद्ध मुखर हो उठेंगे, इस भय के दृष्टिगत ब्रिटिश अत्याचारियों ने 1884 में त्रिनिदाद में निकाले जा रहे मुहर्रम के जुलूस पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिसमें 22 भारतीय तत्काल शहीद हो गए, इन जुलूसों की विशेषता ये थी कि इसमें सभी धर्म, रंग के लोग सम्मिलित होते थे नि:संदेश इमाम हुसैन का बलिदान सभी का मार्गदर्शन करने की सामर्थ्य रखता है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी आजादी के मतवालों ने इमाम हुसैन की कुर्बानी को आदर्श मानकर देश की आजादी के लिए बलिदान दिया। इस तरह भारत की आज़ादी में मुहर्रम का अहम योगदान है,
आज भी सऊदी जैसे देश में मुहर्रम के जुलूसों पर प्रतिबंध है क्योंकि अत्याचारी आले सऊद शासन को भय है, यदि इमाम हुसैन का हक का संदेश जनता के बीच प्रसारित हो गया तो जनता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जायेगी और आले सऊद की अत्याचारी सत्ता का किला ढह जाएगा इस तरह अपने युग का अत्याचारी शासक मुहर्रम से डरता है क्योंकि इमाम हुसैन का संदेश आजादी का संदेश है जो 1400 साल से एक बार भी कमजोर नहीं हुआ |

मोहम्मद अफ़ज़ल

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