हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह बुशहरी ने कहा कि अशूरा ने हमें सिखाया है कि लड़ाई संख्या की नहीं, बल्कि इरादों की होती है। अगर इस्लाम की राह में अपनी जान और माल कुर्बान करना पड़े, तो इसमें कोई देरी नहीं करनी चाहिए।
उन्होंने 12-दिवसीय "जंग-ए-तहमीली" (सामरिक युद्ध) का उल्लेख करते हुए कहा कि यह युद्ध ईरानी राष्ट्र की एकता और दृढ़ता का प्रतीक बना। सर्वोच्च नेता (रहबर-ए-मोअज़्ज़म), सशस्त्र बलों और जागरूक जनता ने मिलकर दुश्मन की साजिशों को नाकाम कर दिया। नए सैन्य कमांडरों ने तुरंत तेल अवीव और हाइफा पर जवाबी हमले किए, जिससे दुश्मन हैरान रह गया।
उन्होंने कहा कि मीडिया की भूमिका भी सराहनीय रही और "अल्लाहु अकबर" के नारों ने दुश्मनों के दिलों में दहशत फैला दी। इस युद्ध ने ईरानी राष्ट्र को नई प्रतिष्ठा दिलाई और दुनिया को संदेश दिया कि ईरान पर किसी भी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।
क़ुम के इमाम-ए-जुमा ने आगे कहा कि G7 जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेताओं ने अपना पक्षपात साबित कर दिया और सियोनिस्ट राज्य (इस्राइल) के हथियार बन गए। इस युद्ध ने साबित कर दिया कि ईरानी राष्ट्र की ताकत ही दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर करती है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि युद्धविराम का मतलब शांति नहीं, बल्कि एक अस्थायी ठहराव है ईरानी राष्ट्र हर मोर्चे पर दुश्मन की चालों का मुकाबला करता रहेगा।
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