मंगलवार 15 जुलाई 2025 - 20:55
इमाम की पहचान के बिना,अल्लाह तआला की पहचान अधूरी है

हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन रमज़ानी ने सिस्तान व बलूचिस्तान के एक समूह में कहा, ईश्वर की पहचान, अल्लाह के प्रमाणों की पहचान पर निर्भर करती है, जो दो पहलुओं में प्रकट होते हैं बाह्य प्रमाणों में पैगंबर और अल्लाह के अवलियां शामिल हैं, जबकि अक़्ल मनुष्य का आंतरिक प्रमाण है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सिस्तान बलूचिस्तान के हौज़ा एल्मिया के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन रमज़ानी ने क़ुम में आयोजित शोध पाठ्यक्रम में भाग ले रहे प्रांत के लोगो को संबोधित करते हुए इमाम हुसैन (अ.स.) की एक हदीस का हवाला दिया। उन्होंने कहा, इस प्रकाशमय हदीस के अनुसार, अल्लाह तआला ने बंदों को केवल अपनी पहचान के लिए पैदा किया है।

«إِنَّ اللّهَ جَلَّ ذِکْرُهُ ما خَلَقَ الْعِبادَ إِلَّا لِیَعْرِفُوهُ»، निस्संदेह अल्लाह ने बंदों को केवल अपनी पहचान के लिए पैदा कियाऔर जब वे उसे पहचान लेंगे, तो उसकी इबादत करेंगे और ग़ैर की इबादत से बेज़ार हो जाएंगे। 

उन्होंने आगे कहा,इस हदीस में आगे एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन (अ.स.) से पूछा अल्लाह की पहचान क्या है?तो इमाम ने उत्तर दिया, मारिफ़तु अह्ले कुल्ले ज़मानिन इमामहुमुल्लज़ी यजिबु अलैहिम ताअतुह,हर युग के लोगों के लिए उनके इमाम की पहचान, जिसकी आज्ञापालन उन पर अनिवार्य है यह पवित्र हदीस दर्शाती है कि ईश्वर की पहचान, हर युग में मासूम इमाम की पहचान के बिना पूरी नहीं हो सकती। 

हौज़ा के प्रमुख ने स्पष्ट किया,मनुष्य स्वभाव से ही इबादत करने वाला है, और यदि वह अल्लाह को सही तरीके से पहचान ले, तो ग़ैर की इबादत से बेज़ार हो जाता है। इस राह में, ईश्वर की पहचान अल्लाह के हुज्जत की पहचान पर निर्भर करती है, जो दो रूपों में हैं  पैगंबर और अवलियां और आंतरिक अक़्ल।

उन्होंने आगे कहा,अक़्ल, हालांकि सामान्य सिद्धांतों को समझ सकती है, लेकिन विस्तृत मार्गदर्शन और सटीक हिदायत के लिए पैगंबरों और अवलियां के मार्गदर्शन पर निर्भर है। इसलिए, मनुष्य को हुज्जत (ईश्वरीय नेताओं) का अनुसरण करके ही सच्ची इबादत का मार्ग अपनाना चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम रमज़ानी ने हौज़ा एल्मिया में शोध कौशल पाठ्यक्रमों के महत्व पर भी प्रकाश डाला और कहा,उम्मीद है कि छात्र इस पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक और शोध क्षमताओं का पर्याप्त स्तर हासिल करेंगे, ताकि अहल-ए-बैत (अ.स.) के मारिफत (ज्ञान) के प्रसार और समाज की बौद्धिक आवश्यकताओं के उत्तर देने में प्रभावी भूमिका निभा सकें। 

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