हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इस्लाम में परिवार की मानसिक शांति और सुरक्षा को बहुत अहमियत दी गई है। शरियत के कानून ऐसे बनाए गए हैं कि वे व्यक्ति और समाज दोनों के हितों को साथ-साथ ध्यान में रखें। एक ऐसी बात जो परिवार के सदस्यों को चिंता या तकलीफ दे सकती है, वह है गैर-जरूरी यात्राएं, खासकर जब ये यात्राएं पति-पत्नी और बच्चों को डर या परेशानी पहुंचाए।
इस बारे में एक सवाल उठाया गया है कि क्या एक मर्द मस्तहब सफर पर जा सकता है जबकि यह उसके परिवार के लिए चिंता और भावनात्मक तकलीफ का कारण बनता हो? हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा मकारिम शिराज़ी ने इस सवाल का जवाब दिया है जिसे शरई अहकाम मे रूचि रखने वालो के लि एप्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रश्न: अगर कोई पुरुष यात्रा पर जाए (चाहे ज़ियारती सफ़र हो या कोई दूसरा सफर) और उसके इस सफ़र के कारण उसकी पत्नी और बच्चों को उसकी गैर-मौजूदगी में डर या परेशानी हो, तो उस सफ़र का शरई हुक्म क्या है?
उत्तर: अगर वह सफ़र मस्तहब हो, तो परिवार के अधिकारों की रक्षा और उनकी परेशानी से बचाने के लिए उस सफ़र को टाल देना बेहतर होगा।
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