हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, यह इस्लामी संस्कृति मे सय्यद उश शोहदा हज़रत इमाम हुसैन (अ) और उनके वफ़ादार साथियों के लिए शोक मनाना न सिर्फ एक अच्छी परंपरा है, बल्कि पैग़म्बर के पवित्र परिवार से मोहब्बत और वफादारी की निशानी भी है। इस प्यार और ग़म को जाहिर करने के तरीकों में से एक है ग़म के तौर पर काले कपड़े पहनना। बहुत से मोमिन इस बारे में सवाल करते हैं कि क्या आशुरा से लेकर अरबईन हुसैनी तक (यानि इमाम हुसैन की शहादत के दिन से चेहलुम के दिन तक) काले कपड़े पहनना शरीअत के हिसाब से कैसा है। हज़रत आयतुल्लाह खामेनई ने इस सवाल का जवाब दिया है, जो यहां पेश किया जा रहा है।
सवाल: कुछ लोग मुहर्रम की पहली तारीख से लेकर सफर के आखिर तक इमाम हुसैन (अ) के ग़म में काले कपड़े पहनते हैं। दो महीने तक चलने वाले इस काम को अच्छा माना जाता है क्या इसमें कोई क़राहत तो नहीं है?
जवाब: अहले-बैत (अ) के ग़म में, उनकी याद में और अल्लाह के निशानियों की ताज़ीम के लिए ग़म के मौके पर काले कपड़े पहनना, नेक काम है और इसमें अल्लाह की तरफ से सवाब मिलता है।
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