हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो मानवता के हर क्षेत्र को रौशनी देता है कुरआन और सुन्नत में सबसे अधिक जिस चीज़ पर ज़ोर दिया गया है, वह है मोहब्बत और इख़वत। मोहब्बत दिलों को जोड़ती है, इख़वत रिश्तों को मजबूत बनाती है, और ये दोनों मिलकर उम्मत को एक लड़ी में पिरो देती हैं।
सवाल: इस्लाम में एकता और प्रेम को कितनी अहमियत दी गई है?
जवाब: इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो इंसानियत के हर पहलू को रोशनी देता है। कुरआन और हदीस में सबसे ज़्यादा जिस चीज़ पर ज़ोर दिया गया है, वह है मोहब्बत और भाईचारा। मोहब्बत दिलों को जोड़ती है और भाईचारा रिश्तों को मजबूत बनाता है। ये दोनों मिलकर पूरी उम्मत को एक मजबूत कड़ी में बंधते हैं।
सवाल: क्या कुरआन में इस बारे में कोई आयत है?
जवाब: जी हाँ, अल्लाह तआला ने कुरआन में फरमाया है:
إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ
(बेशक, सारे मोमनीनन आपस में भाई-भाई हैं) [सूरह अल-हुजरात: 10]
यह आयत हमें याद दिलाती है कि ईमान का रिश्ता सबसे मजबूत होता है खून का रिश्ता टूट सकता है, लेकिन ईमान का रिश्ता हमेशा कायम रहता है।
सवाल: इस्लाम में भाईचारे का सबसे बेहतरीन उदाहरण क्या है?
जवाब: सबसे खूबसूरत नमूना हमें हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी में मिलता है मदीना में मुहाजिर और अंसार के बीच भाईचारे की ऐसी मिसाल कायम की गई कि अंसारी अपने घर, दौलत और कारोबार तक मुहाजिर भाई के लिए दे देते थे। यह दर्शाता है कि सच्चा भाईचारा न तो लाभ हानि पर आधारित होता है और न ही किसी दूसरे स्वार्थ पर, बल्कि अल्लाह की रिज़ा और दिल की सच्ची मोहब्बत पर टिका होता है।
सवाल: अहल-ए-बैत की शिक्षाएँ इस विषय में क्या कहती हैं?
जवाब: इमाम अली अलेहिस्सलाम ने फरमाया है,अपने भाई के साथ ऐसा व्यवहार करो जैसे वह तुम्हारी जान का एक हिस्सा हो।यह भावना ही असली भाईचारे की पहचान है जो नफ़रत, ईर्ष्या और क़िदरत को मिटाकर मोहब्बत, सहयोग और कुर्बानी को जन्म देती है।
सवाल:आज के दौर में हफ्ता ए वहदत का क्या महत्व है?
जवाब: आज का दौर तफावुत, नफ़रत और बंटवारे का दौर है। ऐसे समय में मोहब्बत और भाईचारे का संदेश हमारी न केवल धार्मिक जरूरत है बल्कि सामाजिक अस्तित्व की भी गारंटी है। अगर हम एक-दूसरे के दुख दर्द को बाँटें, एक-दूसरे के हक़ का ख्याल रखें और दिल से भाई-भाई बन जाएं, तो कोई ताक़त उम्मत-ए-मुसलमा को कमजोर नहीं कर सकती।
सवाल: आपका आख़िरी संदेश क्या होगा?
जवाब: हफ्ता ए वहदत हमें ये सोचने पर मजबूर करता है कि अगर हम अपनी मज़हबी, ज़बानी और फरअी इख़्तिलाफ़ात को छोड़कर सिर्फ़ मोहब्बत और उख़वत को तरजीह दें, तो उम्मत-ए-मोहम्मदिया स.ल.व. आज भी दुनिया की सबसे मज़बूत ताक़त बन सकती है।
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