हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इमाम ए जुमआ ज़ंजान, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मुस्तफ़ा हुसैनी ने नमाज़े जुमआ के ख़ुत्बे में माहे रमज़ान की बरकतों पर रौशनी डालते हुए कहा कि यह महीना तक़वा हासिल करने और रूहानी तरक़्क़ी का बेहतरीन मौक़ा है।
उन्होंने इतिहासिक वाक़ियात का ज़िक्र करते हुए बताया कि 12 रमज़ान को नबी-ए-अकरम (स.अ.व.व.) ने मुहाजिरीन और अंसार के दरमियान भाईचारे का मौहिदा करवाया और ख़ुद हज़रत अली अ.स. से अख़ुवत (भाईचारे) का अहद किया यह मौहिदा इस्लामी समाज में इत्तेहाद, अदल (न्याय) और हम आहंगी को फ़रोग़ देने के लिए किया गया था।
इमामे जुमआ ज़ंजान ने आगे कहा कि नबी करीम (स.अ.व.व.) हमेशा सामाजिक न्याय के क़याम की कोशिश करते रहे उन्होंने भाईचारे का रिश्ता क़ायम किया ताकि तबक़ाती फ़र्क़ (वर्ग भेद) और दुश्मनियां ख़त्म हों और मुआशरती यकजहती सामाजिक एकता मज़बूत हो।
उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यह अख़ुवत सिर्फ़ मर्दों तक महदूद सीमित नहीं थी, बल्कि औरतें भी इसमें शामिल थीं क्योंकि इस्लाम में मोमिन मर्द आपस में भाई और मोमिन औरतें आपस में बहनें हैं।
उन्होंने कहा कि इस्लामी समाज की एक ख़ूबी यह है कि इसमें लोग एक-दूसरे से मोहब्बत और हमदर्दी रखते हैं। यही जज़्बा हमने दिफ़ा-ए-मक़दस कुदरती आफ़ात और यहां तक कि कोरोना वबा के दौरान भी देखा। भाईचारे की बदौलत इख़्तिलाफ़ात कम होते हैं और समाज मज़बूत होता है।
क़ुरआन की रौशनी में उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने मोमिनों को आपसी मोहब्बत और हसद व दुश्मनी से बचने का हुक्म दिया है, क्योंकि जहां भाईचारा होता है वहां अदल व इंसाफ़ का निज़ाम क़ायम होता है।
इमाम ए जुमआ ने 10 रमज़ान, हज़रत ख़दीजा-ए-कुबरा स.अ.के यौमे विसाल का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह एक ईमानदार, सख़ी और बाऔक़ार ख़ातून (महिला) थीं। वह सिर्फ़ पहली मुस्लिम ख़ातून ही नहीं बल्कि नबी अकरम (स.अ.व.व.) की सबसे बड़ी हमदर्द और मददगार भी थीं। उनकी कुर्बानियां इस्लामी तारीख़ में हमेशा याद रखी जाएंगी।
आख़िर में उन्होंने रमज़ान के बर्कत वाले महीने में अख़लाक़ी क़दरें अपनाने और क़ुरआन व सीरत-ए-नबवी से रहनुमाई हासिल करने पर ज़ोर दिया।
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