۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
मुस्तफ़ा

हौज़ा / लखनऊ: इमामबाड़ा मीरन साहब मरहूम मुफ़्ती गंज का ख़दीमी अशरा-ए-मजालिस शब में ठीक ९ बजे मुनअख़िद हो रहा है, जिसे मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान अदीबुल हिंदी ख़िताब फ़रमा रहे हैं|

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अशरा-ए-मजालिस की नवीं मजलिस में बंदगी के मराहिल को बयान करते हुए मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान ने फ़रमाया: तमाम रसूलों का मक़सद बासित लोगों को राह बंदगी की रहनुमाई करना, उनको ख़ुदा की इबादत का हुक्म देना और ताग़ूत की परस्तिश से रोकना था, जैसा के सूरा-ए-ज़ारियात की आयत न० ५४ में इरशाद हो रहा है के "और मैंने जिन्नात और इनसानों को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिये पैदा किया है"!

मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान ने बयान किया के बंदगी के तीन मराहिले हैं, जैसा के रसूल अल्लाह (सल्लाहु अलैहे वा आलेहि वसल्लम) ने जनाबे अबुज़र ग़फ़्फ़ारी रिज़वानुल्लाह ताला अलैहा से फ़रमाया: ख़ुदा-ए-मुतआल की इबादत का सबसे पहला मरहला उसकी मारेफ़त है, दूसरा मरहला पैग़म्बर पर ईमान और आप की रिसालत का एतेराफ़ करना  है और तीसरा मरहला रसूल अल्लाह (सल्लाहु अलैहे वा आलेहि वसल्लम) के अहलेबैत से मोहब्बत है|

मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान ने बयान किया: सदर-ए-इस्लाम में ही जब उम्मते मुस्लिमा में कोई इख़्तिलाफ़ ओ इफ़तिराक़ नहीं था पैग़म्बर-ए-इस्लाम (सल्लाहु अलैहे वा आलेहि वसल्लम) ने जनाबे अबुज़र से बतौर-ए-ताकीद फ़रमाया के मेरे अहलेबैत कश्ती-ए-नूह की तरह हैं जो उनसे राब्ता नहीं रखेगा और उनकी पैरवी नहीं करेगा वोह क़ौम-ए-नूह की तरह हलाक हो जायेगा, हक़ीक़त में ये उन मुसलमानों के लिये एक तंबिया और मक़ामे फ़िक्र है जिन्होंने हुज़ूर की रहलत के बाद ही बुग़्ज़ ओ निफ़ाक़ और इंहिराफ़ात के दरवाज़े खोल दिये और कुछ मुनाफ़िक़ जो पहले से ही मौक़े की तलाश में थे वोह इजाद शुदा इंहिराफ़, तास्सुब और निफ़ाक़ का फ़ायदा उठाकर दूसरों पर सब्क़त ले गये, ऐसे मौक़े पर सिर्फ़ अहलेबैत ही मौला अली अलैहिस्सलाम की सरपरस्ती में उम्मत को ख़तरात, गुमराही और हलाकत से निजात दिलाकर मुनाफ़िक़ीन के इंहिराफ़ में रुकावट बन सकते थे और इसी के बर ख़िलाफ़ जो लोग अहलेबैते अलैहिस्सलाम की पैरवी से रूगर्दानी करते हैं वोह गुमराह होते हैं, यही गुमराही का नतीजा था के करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद किया गया|

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