शनिवार 15 नवंबर 2025 - 20:34
बसीरत और तवाज़ो के बिना मानवी मक़ामात तक रसाई सम्भव नही हैः हुज्जतुल इस्लाम सय्यद रहीम तवक्कुल

हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद रहीम तवक्कुल ने कहा कि इंसान अगर बसीरत, तवाज़ो और ख़ुलूस के साथ ज़िन्दगी के क़ीमती लमहात से फ़ायदा उठाए तो वह मामूली अफ़राद से बुलंद होकर आला-तरीन रूहानी मरातिब तक पहुंच सकता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा की दरगाह में मजलिस-ए-अज़ा से ख़िताब करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद रहीम तवक्कुल ने कहा कि बसीरत और तवाज़ो इंसान को ऐसे मक़ामात तक पहुंचाती हैं जहाँ ख़ुदा के ख़ास बंदे खड़े होते हैं। उन्होंने ताकीद की कि उम्र के गुज़रते हुए लमहात को ग़नीमत समझकर मारफ़त, ख़ुलूस और आगाही में इजाफ़ा किया जाए।

उन्होंने किताब अल-अहादीस अल-कुद्सिय्यह के अध्ययन को तमाम मोमिनीन के लिए ज़रूरी क़रार देते हुए कहा कि यह किताब ख़ुदावंद-ए-मुतआल का अनबिया-ए-किराम अलैहिमुस्सलाम से कलाम और उनकी दुआओं के जवाबात पर मुअत्तमिल है, जो इंसान की मअर्फ़त में बेहद इज़ाफ़ा करती है।

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन तवक्कुल ने तवाज़ो को मआनवी तरक़्क़ी का बुनियादी रुक्न क़रार देते हुए हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की मिसाल पेश की कि हर मुनाजात के बाद ज़मीन पर चेहरा रखकर गहरी आज़ारी और आर्ज़ू के ज़रिए वो मक़ाम-ए-कलीमुल्लाही तक पहुंचे।

उन्होंने इमाम खुबैनी रहमतुल्लाह अलैह के तवाज़ो को उनकी तासीर और इन्क़िलाब-ए-इस्लामी की कामयाबी का एहम राज़ क़रार दिया।

मजलिस-ए-ख़ुबरेगान के सदस्य ने असहाब-ए-अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम में बलंद-तर मक़ाम के हामिल सलमान फ़ारसी रज़ीअल्लाहु अन्हु का ज़िक्र करते हुए कहा कि रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वआलिहि वसल्लम ने फ़रमाया: “सलमान हम अहल-ए-बैत में से हैं।”

उन्होंने बताया कि सलमान को “इस्म-ए-आज़म” जैसी अज़ीम नेमत अता हुई थी, जिसके ज़रिए उन्हें तकोीनी तसर्रुफ़ और शिफ़ायाबी जैसे मोज़िज़ाती फ़यूज़ात हासिल हुए।

उन्होंने कहा कि सलमान फ़ारसी रज़ीअल्लाहु अन्हु तीन बुनियादी आमाल के ज़रिए इस मक़ाम तक पहुंचे:

  1. इल्म और अहल-ए-इल्म की तलाश के ज़रिए बसीरत में इज़ाफ़ा।

  2. किसी की ग़ैबत (बदगोई) न करना।

  3. हर शख़्स के लिए ख़ैर और दुआ करना।

हौज़ा ए इल्मिया के अध्यापक ने आयतुल्लाह बहाउद्दीनी रहमतुल्लाह अलैह के रूहानी मक़ामात का ज़िक्र करते हुए उन्हें “नादिर-उज़-ज़मन” क़रार दिया और कहा कि वो अपने सामने मौजूद शख़्स के माज़ी और मुस्तक़बिल तक पर नज़र रखते थे।

उन्होंने फ़रमाया कि आयतुल्लाह बहाउद्दीनी खुद कहा करते थे: “मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में कभी किसी का बुरा नहीं चाहा, हमेशा सबके लिए भलाई की दुआ की।”

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन तवक्कुल ने बसीरत को ज़िन्दगी की सबसे बुनियादी ज़रूरत क़रार देते हुए कहा कि अइम्मा मआसूमीन अलैहिमुस्सलाम की रिवायतों के मुताबिक़ हक़ीक़ी नाबीना वह है जिसके दिल में बसीरत नहीं।

उन्होंने इब्न मुलजिम और शिम्र जैसे बदबख़्त किरदारों की मिसाल देते हुए कहा कि बसीरत की कमी इंसान को नूर को ज़ुल्मत और ज़ुल्मत को नूर समझने पर मजबूर कर देती है, और यही जहालत उन्हें दीन व इंसानियत के बदतरिन जुर्म तक ले गई।

उन्होंने ताकीद की कि दुश्मन मुसलसल अफ़्कार-ए-आम्मा को मुतास्सिर करने की कोशिश कर रहा है, इसलिए अहल-ए-ईमान को चाहिए कि मुतालआ, आगाही और तज़किया-ए-नफ़्स के ज़रिए बसीरत में इज़ाफ़ा करें।

उन्होंने मोमिनीन से गुज़ारिश की कि वो इमाम-ए-ज़माना अजलल्लाहु तआला फ़राजहुश्शरीफ़ के ज़ुहूर, रहबर-ए-मुअज़्ज़म-ए-इन्क़िलाब की सलामती और इन्क़िलाब-ए-इस्लामी की हिफ़ाज़त के लिए दुआ करें।

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