शनिवार 12 मार्च 2022 - 23:17
वसवसों से मुक्ति के लिए हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्सा सैय्यद अली हुसैनी सिस्तानी का दस्तुरूल अमल

हौज़ा/वसवास बिल्कुल परहेज़ गारी नहीं हैं, और शरीयाते इस्लाम में यह एक अवांछनीय कार्य हैं,वसवास मनुष्य की सूजबुझ कि सलाहियत की क्षमता को प्रभावित करता है। इसका स्रोत इच्छाशक्ति की कमज़ोरी हैं, जैसा की हदीसों में आया हैं कि"" यह शैतान के वसवसों में से एक हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्सा सैय्यद अली हुसैनी सिस्तानी से एक प्रश्न ,,वसवास में डूबे एक आदमी को आप क्या सलह देंगे?

सवाल के जवाब में कुछ प्रकार उत्तर दिये,वसवास में पढ़ने वाले मनुष्य को मैं सलाह देता हूं कि वह अपनी इस्लाह करें!ताकि वह इस बीमारी से छुटकारा पा सके और यह दो चरणों में हासिल होगा

चरण 1: ऐसी बातों की ओर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं हैं, यह काम स्थिति बौद्धिक और शरियत के अनुरूप है क्योंकि इससे पीड़ित व्यक्ति सामान्य अवस्था से बाहर हो जाता है और इसमें कोई लाभ नहीं होता है बल्कि मनुष्य अपनी ऊर्जा भी बर्बाद करता हैं।

उन्होंने कहा,वसवास हरगिज़ परहेज़ गारी के हिस्से में नहीं आता हैं, और ऐसे अमल का इस्लाम में कोई जगह नहीं है,यह मनुष्य की समझ और बुद्धि की क्षमता को प्रभावित करता है।वसवास मनुष्य की सूजबुझ कि सलाहियत की क्षमता को प्रभावित करता है। इसका स्रोत इच्छाशक्ति की कमज़ोरी हैं, जैसा की हदीसों में आया हैं कि"" यह शैतान के वसवसों में से एक हैं।इसलिए यदि कोई व्यक्ति इसे अच्छी तरह से समझता लेता है और इसकी वास्तविकता उसके लिए स्पष्ट हो जाती है,

चरण 2 :मनुष्य को अपने नंफस को नियंत्रित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। इसे फैसला करने की ताकत को अपने हाथ में लेनी चाहिए , इससे शैतान के धोखे में नहीं आना चाहिए और इससे इस बात का यकीन होना चाहिए कि वसवासों की सूरत में अल्लाह ताला इसको मना करने नहीं आएगा, जैसे कि गुसल करने के दौरान पानी उसके पूरे बदन तक पहुंच गया है और वह पाक हो गया हैं,जितना अधिक वह इन अभ्यासों की उपेक्षा करेगा, उतनी ही कम उसका वसवसा होगा, और शैतान उससे निराश होगा,

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