۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
Hazrat imam taqi a.s

हौज़ा/हज़रत इमाम तकी अ.स.की ज़िंदगी पर एक निगाह: 29 ज़िलक़द 220 हिजरी का दिन ऐसे महान व्यक्ति की शहादत का दिन है जिसे अत्याधिक दया तथा दान दक्षिणा के कारण जवाद अर्थात दानी की उपाधि दी गई।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम तकी अ.स.की ज़िंदगी पर एक निगाह: 29 ज़िलक़द 220 हिजरी का दिन ऐसे महान व्यक्ति की शहादत का दिन है जिसे अत्याधिक दया तथा दान दक्षिणा के कारण जवाद अर्थात दानी की उपाधि दी गई।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के जीवन की ध्यानयोग्य विशेषताओं में यह वास्तविकता है कि वे बचपन से ही ज्ञान तथा शिष्टाचार में सर्व श्रेष्ठ थे। वे अत्यन्त तीव्र बुद्धि के मालिक थे।

जब कुछ बयान करते तो अत्यन्त स्पष्ट शब्दों का प्रयोग करते और ज्ञान तथा धार्मिक मामलों की सूक्ष्मता से समीक्षा करते थे।

प्रसिद्ध इतिहासकार तबर्सी अपनी किताब "आलामुल वरा" में लिखते हैं: इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने काल में कम आयु के होने के बावजूद, ज्ञान, तत्वर्दिशता तथा विशेषताओं के उस स्थान तक पहुंच गए थे कि कोई भी विद्वान उनकी बराबरी नहीं कर सकता था।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण आयाम हदीसों का हवाला तथा ख़ुदाई पहचान की गहराइयों का बयान है जो विभिन्न क्षेत्रों में आज भी सुरक्षित है।

इमाम एक ओर हदीस अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम (परिजनों) के कथनों का हवाला देकर समाज में धार्मिक शिक्षाओं एवं संस्कृति का विस्तार कर रहे थे और दूसरी ओर समय की पुकार तथा लोगों की वैचारिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं को देखते हुए विभिन्न विषयों का वर्णन करते थे इसी कारण उन्होंने अत्यन्त मूल्यवान धरोहरें छोड़ी हैं। इन्हीं धरोहरों के आधार पर विद्वानों तथा अनुसंधानकर्ताओं ने विभिन्न इस्लामी विषयों पर किताबें लिखी हैं।

इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों की पहचान के लिए भूमि समतल हो गई।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासकों की ओर से लगाए गए कड़े प्रतिबन्धों के बावजूद अपने शिष्यों एवं साथियों का प्रशिक्षण करते रहते थे। उस काल के राजनैतिक दबाव के बावजूद इतिहास में ऐसे १०० विख्यात विद्वानों एवं विचारकों का नाम मिलता है जो सभी इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिसस्लाम के शिष्य थे। उनकी युक्तियां तथा शिक्षाएं कारण बनीं कि उनके साथी और अनुयायी न केवल मदीना नगर बल्कि इस्लामी जगत के विभिन्न क्षेत्रों में पारस्परिक सम्पर्क बनाए रख सकें।

इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम के प्रेम तथा अध्यात्म का इतना अधिक प्रभाव था कि उनके पक्षधर कुछ ऐसे लोग थे जो शासन में ऊंचे पदों पर आसीन थे और इमाम अपने कुछ राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों को इन्हीं लोगों से आगे बढ़वाते थे। लोगों के साथ अच्छा व्यवहार तथा उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के जीवन में घुला मिला था। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम भी इस क्षेत्र में अग्रणी थे। वे कहते थे: मनुष्य तीन भली विशेषताओं द्वारा ख़ुदा के प्रेम का पात्र बन सकता है:

पहला यह कि अपने पापों के क्षमा किए जाने की बहुत अधिक दुआ मागें। दूसरे यह कि लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें और तीसरे अत्याधिक सदक़ा व दान दे।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की दृष्टि में लोगों की सेवा मनुष्य पर ख़ुदा की रहमत का कारण है और यदि कोई इस क्षेत्र में लापरवाही करें तो संभव है ख़ुदाई नेमतों से वंचित रह जाएं। इसी कारण उन्होंने कहा है: ख़ुदाई नेमतें उसी को प्राप्त होती हैं जो दूसरों की आवश्यकताएं पूरी करता है, जिसने भी इन आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास नहीं किया और उसकी कठिनाइयां सहन नहीं कीं, उसने ख़ुदाई नेमतों को बर्बाद कर दिया है।

जैसा कि आप जानते हैं इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासकों के आदेश पर उस काल के इस्लामी ज्ञान एवं शिक्षाओं के केन्द्र मदीना नगर को छोड़कर अब्बासी शासन के केन्द्र बग़दाद जाने पर विवश हुए, अलबत्ता अब्बासी शासक मामून रशीद ने प्रयास किया कि इमाम के साथ दिखावे की मित्रता जताकर तथा लोगों को धोखा देकर स्वयं को इमाम के निकट करें परन्तु इमाम ने अब्बासी शासकों की नीतियों की जानकारी तथा अपनी दूरदर्शिता से मामून की योजना पर पानी फेर दिया। यहां तक कि मामून एक समय में इमाम को मदीने भेजने पर विवश हो गया।

इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम सदैव अत्याचारियों, लोगों के अधिकारों का हनन करने वालों तथा उनकी धन संपत्ति को लूटने वालों के साथ कड़ा व्यवहार करते और उसका विरोध करते थे। यही विरोध कारण बना कि अब्बासी शासक इमाम पर अधिक दबाव डालें परन्तु इन सभी सीमाओं के बावजूद इमाम सामाजिक तथा राजनैतिक वास्तविकताओं की व्याख्या अत्यन्त खुलकर स्पष्ट शब्दों में करते थे। इसी कारण उनका कथन है कि अत्याचारी, उसका साथ देने वाले और वह जो अत्याचार पर राज़ी है सभी इस पाप अर्थात अत्याचार में भागीदार हैं। ईमानदारी से कमाएं गए धन में विभूति प्राप्त होती है, किन्तु हराम मार्गों से कमाया गया धन मनुष्य से अल्लाह की कृपा को छीन लेता है और उसे ख़तरनाक मार्ग की ओर ले जाता है जिससे परलोक में खेद के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं लगता है।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने एक साथी दाऊद सर्मी को संबोधित करते हुए कहते हैं: ऐ दाऊद! हराम धन में वृद्धि नहीं होती और यदि इसमें वृद्धि हो तो यह अपने मालिक के लिए बरकत नहीं बनता है। यदि मनुष्य हराम धन में से दान करता है तो उसका कोई लाभ उसे नहीं मिलेगा। मनुष्य अपने मरणोपरान्त जो हराम धन छोड़ता है, वह नरक की ओर जाने के सामान के रूप में उसके साथ होता है। अपनी आन्तरिक इच्छाओं तथा लालसा के कारण मनुष्य अपनी श्रेष्ठ वास्ताविकता से दूर हो जाता है तथा उसे आस्था की ऊंचाइयों पर पहुंचने से रोक देता है। ऐसी स्थिति में विभिन्न अपराधों तथा पापों की भूमि प्रशस्त होती है। इसके विपरित अध्यात्मिक मूल्यों के प्रति कटिबद्धता तथा शिष्टाचारिक गुणों की प्राप्ति अल्लाह से मनुष्य की निकटता की कारण बनती है और उसके आत्मिक तथा आध्यात्मिक विकास की भूमि समतल करती है।

इमाम जवाद अलैहिस्सलाम कहते हैं: बन्दा उस समय तक आस्था की वास्तविकता को परिपूर्ण नहीं कर पाता जब तक धर्म को अपनी आंतरिक इच्छाओं पर वरीयता नहीं देता और उस समय तक पतन के गढ़े में नहीं गिरता जब तक अपनी आंतरिक इच्छाओं को अपने धर्म पर वरीयता देता रहता है। तौबा या पापों का प्रायश्चित अपने बन्दों के लिए ख़ुदाई विभूतियों के द्वारों में एक द्वार है। तौबा करने और अल्लाह की ओर ध्यान लगाने से अतीत के पाप समाप्त हो जाते हैं तथा मनुष्य को दोबारा यह अवसर मिलता है कि अपने अतीत की ग़लतियों को सुधारकर भले कार्य करे और अपनी आत्मा एवं प्राण को पवित्रता तथा ताज़गी प्रदान करें। इसीलिए तौबा करने में देर नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे पश्चाताप के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता है।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैं: तौबा में देरी करना धोखा और अचेतना है और इसमें आज कल करना परेशानी तथा चिन्ता का कारण है।

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