हौजा न्यूज एजेंसी
तफसीर; इत्रे क़ुरआनः तफसीर सूरा ए बकरा
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह हिर्राहमा निर्राहीम
أَفَتَطْمَعُونَ أَن يُؤْمِنُوا لَكُمْ وَقَدْ كَانَ فَرِيقٌ مِّنْهُمْ يَسْمَعُونَ كَلَامَ اللَّـهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُ مِن بَعْدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمْ يَعْلَمُونَ अफ़ातत्तमेऊना अय यूमेनू लकुम वा कद काना फरीकुम मिनहुम यस्माऊना कलामल्लाहे सुम्मा योहर्रेफूनहू मिन बादे मा अकालूहो वहुम यअलमून (बकरा 75)।
अनुवादः (ऐ मुसलमानों) क्या तुम आशा करते हो कि वे (यहूदी) तुम्हारी बात पर ईमान लायेंगे, यद्यपि उनमें से एक गिरोह गुज़र गया है जो अल्लाह की वाणी को सुनता था और फिर उसे समझकर जान-बूझकर वह उनसुनी करता था।
📕 कुरान की तफसीर: 📕
1️⃣ बेसत के समय के मुसलमानों को इस काल के यहूदियों से उम्मीद थी कि वे इस्लाम के दूत और उनके अनुयायियों की सत्यता का समर्थन करेंगे।
2️⃣ इस्लाम के प्रारम्भिक मुसलमानों का लगाव और उम्मीद बनी इस्राईल के धर्मांतरण के लिए थी।
3️⃣ कुछ लोगों ने बनी इस्राईल से ईश्वरीय वचन (तोराह) को सुनने और समझने के बाद इसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया।
4️⃣ यहूदी विद्वानों ने तोरात में एक नैतिक विकृति की।
5️⃣ यहूदी विद्वानों ने जानबूझकर परमेश्वर के वचन को विकृत किया।
6️⃣ यहूदी विद्वानों द्वारा ईश्वरीय वचन में विकृति, उनमें विश्वास की कमी भूमि प्रदान करने का कारण है।
7️⃣ तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने वाले विद्वानों से आस्था की उम्मीद करना बेकार और व्यर्थ की उम्मीद है।
8️⃣ इस्लाम के पैगंबर के समय में, यहूदी विद्वान पवित्र कुरान की दिव्य प्रकृति से पूरी तरह परिचित थे।
9️⃣ लोक प्रवृत्तियों में प्रत्येक समाज के विद्वानों, प्रतिभावानों एवं महत्वपूर्ण व्यक्तियों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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📚 तफसीर राहनुमा, सूरा ए बकरा
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