हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा स.ल.व.व. ने यह दुआ बयान फ़रमाई हैं।
اَللّهُمَّ لا تَخْذُلني فيہ لِتَعَرُّضِ مَعصِيَتِكَ وَلاتَضرِبني بِسِياطِ نَقِمَتِكَ وَزَحْزِحني فيہ مِن موُجِبات سَخَطِكَ بِمَنِّكَ وَاَياديكَ يا مُنتَهى رَغْبَة الرّاغِبينَ.
अल्लाह हुम्मा ला तख़ ज़ुलनी फ़ीहि ले तअर्रुज़ि मअसियतिक, व ला तज़ रिब नी बे सियाति नक़िमतिक, व ज़ह ज़िहनी फ़ीहि मिन मूजिबाति सख़तिक, बे मन्निका व आयादीका या मुन तहा रग़बतिर्राग़िबीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! आज के दिन मुझे अपने हाल पर छोड़ न दे कि तेरी नाफ़रमानी में लग जाऊं, और न मुझे अपने ग़ज़ब का ताज़ियाना मार, आज के दिन मुझे अपने एहसान व नेअमत से मुझे अपनी नाराज़गी के कामों से बचाएं रख, ऐ रग़बत करने वालों की आख़िरी उम्मीदगाह.