हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
तफ़सीर; इत्रे क़ुरआन: तफ़सीर सूर ए बकरा
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ ۖ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ إِذَا دَعَانِ ۖ فَلْيَسْتَجِيبُوا لِي وَلْيُؤْمِنُوا بِي لَعَلَّهُمْ يَرْشُدُونَ वा इज़ा सालक़ा एबादी अन्नी फ़इन्नी क़रीबुन ओजीबा दावतद दाए इज़ा दआने फ़लयसतजीबू ली वल यूमेनू बी लाअल्लकुम यरशोदून (बकरा, 186)
अनुवाद: और जब मेरे बन्दे तुम से मेरे विषय में पूछें, तो कह देना, कि मैं निकट हूं। जब कोई पुकारनेवाला मुझे पुकारता है, तो मैं उसकी प्रार्थना सुनता हूं, और उसे उत्तर देता हूं। इसलिए उनके लिए यह ज़रूरी है कि वे मेरी आवाज़ का जवाब दें और मुझ पर विश्वास करें ताकि वे सही रास्ते पर आ सकें।
क़ुरआन की तफसीर:
1️⃣ अल्लाह ताला के गुण क्या और कैसे हैं, इस पर शोध करना और सवाल पूछना जायज़ है।
2️⃣ अल्लाह अपने सभी बंदों के करीब है।
3️⃣ अल्लाह दुआ करने वालों की दुआ कबूल करता है।
4️⃣ दुआ में ईमानदारी दुआ कबूल करने की शर्त है।
5️⃣ अल्लाह ताला के आदेशों का पालन करना और परम पवित्रता पर विश्वास रखना अनिवार्य और आवश्यक है।
6️⃣ अपने सेवकों के प्रति अल्लाह की निकटता और अपने सेवकों के अनुरोधों को पूरा करने की उसकी क्षमता पर विश्वास आवश्यक है।
7️⃣ यदि अल्लाह पर विश्वास और उसकी आज्ञाकारिता परिपूर्ण है, तो मार्गदर्शन प्राप्त करना संभव है।
8️⃣ कर्म फलदायी होने की आशा व्यक्ति में कर्म करने की प्रेरणा उत्पन्न करती है।
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तफसीर राहनुमा, सूर ए बकरा