हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली खामेनेई ने फरमाया,इस्लाम में शादी का तरीक़ा और अंदाज़ बाक़ी धर्मों और क़ौमों से अलग है।
पृष्ठिभूमि के लेहाज़ से भी और अस्ल शादी के साथ साथ उसके बाक़ी रहने के लेहाज़ से भी इंसान की भलाई को मद्दे नज़र रखा गया है।
अलबत्ता बाक़ी धर्मों की शादियां भी हमारी नज़र में मोतबर व एहतेराम के क़ाबिल हैं, यानी वही निकाह जो एक ईसाई, गिरजाघर में, एक यहूदी, सिनेगॉग में अंजाम देता है या किसी भी क़ौम और राष्ट्र में, जिस किसी अंदाज़ से अंजाम पाया हो, हमारी निगाह में ऐतबार के क़ाबिल है और हम उनके निकाह को ख़ुद उनके लिए अमान्य नहीं समझते लेकिन जो तरीक़ा इस्लाम ने तय किया है, हम उसको बेहतर मानते हैं।
शौहर के लिए कुछ अधिकार हैं, बीवी के लिए भी कुछ अधिकार हैं। ज़िन्दगी के शिष्टाचार और तरीक़े हैं (इस्लाम ने) शादी के लिए एक तरीक़ा और शैली तय की है, बुनियाद यह है कि परिवार क़ायम और सुखी रहे।
इमाम ख़ामेनेई