۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
नौजवान

हौज़ा/ इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ईरान की नौसेना के फ़्लोटीला 86 के वैश्विक मिशन की कामयाबी के बाद क्रू मेम्बर्ज़ और उनके परिवारों से मुलाक़ात में लगभग आठ महीने में दुनिया का चक्कर लगाने में कामयाब होने वाले फ़्लोटीला 86 की तारीफ़ की इस तक़रीर में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने समुद्री रास्तों और दूसरे कई विषयों पर विस्तार से रौशानी डाली,

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ईरान की नौसेना के फ़्लोटीला 86 के वैश्विक मिशन की कामयाबी के बाद क्रू मेम्बर्ज़ और उनके परिवारों से मुलाक़ात में लगभग आठ महीने में दुनिया का चक्कर लगाने में कामयाब होने वाले फ़्लोटीला 86 की तारीफ़ की इस तक़रीर में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने समुद्री रास्तों और दूसरे कई विषयों पर विस्तार से रौशानी डाली,

तक़रीर का अनुवाद पेश किया जाता है।

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

तक़रीर के अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ें पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबिल क़ासिम मुस्तफ़ा और उनकी सबसे नेक, सबसे पाक, चुनी हुयी, हिदायत याफ़्ता, हिदायत करने वाली, मासूम और सम्मानित नस्ल, ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर मैं आप सब का स्वागत करता हूं, भाईयो, बहनो! ईरानी क़ौम के गौरवशाली सपूतो! अल्लाह आप सब को कामयाब करे।

इस मुलाक़ात का मक़सद शुक्रिया अदा करना और क़द्रदानी करना है, मैं आप सब का दिल से शुक्रिया अदा करता हूं, फ़्लोटिला-86 में शामिल सभी लोगों का, जिन्होंने बहुत बड़ा मिशन कामयाबी से पूरा किया और ज़मीन का चक्कर लगाया।(2) यह वह काम है जो हमारे मुल्क की जहाज़रानी की तारीख़ में अभी तक किसी ने नहीं किया।

इसी तरह मैं आप सब के घरवालों का भी शुक्रिया अदा करता हूं मैं घरवालों के बारे में भी एक बात कहूंगा, इसी तरह मैं नेवी के कमांडर, सेना में बनने वाले स्ट्रैटेजिक हेड क्वार्टर यानि ज़ुल्फ़िक़ार स्ट्रैटेजिक हेड क्वार्टर जहां से निरतंर फ़्लोटिला-86 से संपर्क बना रहा और मैंने कई बार सवाल भी पूछा तो उनके जवाब से पता चल गया कि इन्हें फ़्लोटिला के बारे में पूरी जानकारी है।

इसी तरह मैं उन सभी विभागों का शुक्रिया अदा करता हूं जिन्होंने लॉजिस्टिक्स की ज़िम्मेदारी संभाली, चाहे तकनीकी चीज़ें देखने वाले लोग हों या फिर मौसम की जानकारी रखने वाले लोग हों, सब का शुक्रिया अदा करता हूं कि यह इतना बड़ा काम बहुत से लोगों की मदद से हुआ है ताकि आप फ़्लोटिला-86 के सदस्य इस बड़े मिशन को कामयाबी और गर्व के साथ पूरा करें।

मैं इस मौक़े पर नेवी के शहीदों को भी याद करना चाहता हूं, पैकान युद्धपोत (3) के शहीदों को जो नौजवान थे और बड़े महान लोग थे। इसी तरह इस्लामी गणराज्य ईरान की गौरवशाली सेना के शहीदों को भी याद करना चाहता हूं। हम सब पर उनका और उनके घरवालों का एहसान है।

मेरे भाईयो! इन्क़ेलाब की महत्वपूर्ण घटनाओं से लेकर आज तक आप के पहले वालों के क़दम, आप की आज की कामयाबी की बुनियाद हैं, उनकी क़द्र करें। फ़ौज और आईआरजीसी ने समुद्र में बहुत सी क़ुरबानियां दी हैं और अब उनका फल सामने आ रहा है, आप उस हरे भरे पौधे के फूल हैं जो उन्होंने लगाया था, उस पेड़ के मीठे फल हैं जिसे उन्होंने लगाया था। आज हम एक गौरवशाली पोज़ीशन पर खड़े हैं।

हालांकि सम्मानीय कमांडर ने इस बारे में बहुत अच्छी बातें कहीं, टीवी पर भी किसी हद तक बहुत कुछ कहा गया, लेकिन नहीं! आप के मिशन की कहानी इस तरह से ख़त्म नहीं होगी, उसकी कहानी बहुत बड़ी है और उसे विस्तार से बताए जाने की ज़रूरत है, बयान किया जाना चाहिए। यह बहुत फ़ख़्र की बात है, यह कामयाबी, हम से पहले वालों की कोशिशों की वजह से मिली है।

फ़्लोटिला-86  ने जो इतना बड़ा काम किया है वह एक फ़ख़्र की बात है और यह काम हमारी जहाज़रानी की तारीख़ में पहली बार हुआ है। अब अगर हम, ईरान पर पहलवी और क़ाजारी दौर के अपमानजनक शासन को छोड़ दें तो उससे पहले ईरानी समुद्री यात्राएं करते थे लेकिन पहले हम जो करते थे उसमें और जो आप ने किया उसमें बहुत फ़र्क़ है, आप का काम बहुत बड़ा गौरव है। यह गौरवशाली काम आप के बेड़े ने किया है।

350 लोगों ने एक एक्सपर्ट कमांडर के साथ 65 हज़ार किलोमीटर की समुद्री यात्रा की, दुनिया का एक चक्कर लगाया, लगभग 8 महीनों तक पानी में रहे, यानी 232 दिन, यह सब बहुत बड़े काम हैं। दुनिया की मशहूर नौसेनाएं और वे लोग जो यह काम कर सकते हैं या करते हैं उनकी तादाद बहुत कम है।

लेकिन आपने कर दिखाया। तीन महासागरों को पार किया और सिर ऊंचा करके अपने देश वापस लौटे। आप लोगों ने जो काम किया है वह बहुत ही गहरा और अर्थपूर्ण काम है, इसे यूं ही आसानी से एक समुद्री आप्रेशन या फ़ौजी आप्रेशन के तौर पर नहीं देखा जा सकता। आप का काम गहराई रखता है जिसपर मैं थोड़ी बात करना चाहूंगा।

सब से पहली बात तो यह कि इस महान काम से यह पता चलता है कि हमारे फ़ौजियों में, बुलंद हौसला, मज़बूत इरादा और आत्म विश्वास कूट-कूट कर भरा है और यह बहुत अहम बात है। तीन अहम पहलू हैं, बुलंद हौसला, ठोस इरादा और आत्मविश्वास, यानी वही नारा कि “हम कर सकते हैं”, यह एक पहलू है।

दूसरा पहलू फौजी मालूमात है, प्लानिंग की ताक़त है। इस तरह के आप्रेशनों का एक अहम हिस्सा प्लानिंग का होता है। अगर कोई इदारा इस तरह की प्लानिंग कर सकता है तो यह बहुत अहम बात है। फिर फौजी मालूमात के अलावा बहादुरी, जमे रहना और परेशानियों को बर्दाश्त करने की ताक़त का मामला भी है।

हम बड़ी आसानी से कह देते हैं: “8 महीने पानी पर”। जो लोग 2 दिन, 3 दिन पानी में गुज़ार चुके हैं वो समझते हैं कि पानी पर 8 महीनों का क्या मतलब होता है! इन परेशानियों को बर्दाश्त करना बहुत बड़ी बात है। देखें! आप के काम में इन सब तथ्यों की झलक है, इन तथ्यों का हर पहलू ग़ौर किये जाने के क़ाबिल है यानी मिसाल के तौर पर कोई फ़ौज इस तरह की प्लानिंग कर सकती है, इस योग्यता तक पहुंच सकती है तो यह काफ़ी अहम है। आत्मविश्वास और ख़ुद पर यक़ीन बहुत अहम चीज़ है।
कारगर मैनेजमेंट जिसमें महारत भी हो, एक दूसरी ख़ासियत है। एक ताक़तवर और एक्सपर्ट मैनेजमेंट भी बहुत अहम चीज़ है। यह तो आप्रेशन के पहले मोर्चे की बात है। उसके पीछे, वही स्ट्रैटेजिक हेड क्वार्टर बनाना जिसका मैनें अभी ज़िक्र किया या नौसेना के कमांडर और सेना के अफ़सरों का उन लोगों से निरंतर सपंर्क जो समुद्र में अपने मिशन पर हैं, यह भी इस मामले का एक अहम पहलू है। जैसा कि रिपोर्टों में बताया गया,

मैंने नोट नहीं किया, शायद मिसाल के तौर पर इन कुछ महीनों में उस हेड क्वार्टर में लगभग 80 बैठकें हुई हैं, यह सब काम तारीफ़ के लायक़ और अहम काम हैं और जैसा कि बाद में मैं इस बात पर करुंगा, यह सब काम बयान किये जाने चाहिए, उसका भी अपना रास्ता है जिसका मैं ज़िक्र करुंगा।

एक और मुद्दा, घरानों के रोल का है। इन मोहतरमा ने कुछ बातें बतायीं लेकिन मामला इस से कहीं ज़्यादा अहम है। यह जो फ़िक्र होती है वह आम बात नहीं है, आप का प्यारा, पानी में है, समुद्र में है, 8 महीनों तक, फ़िक्र, घबराहट, परेशानी, याद आना, बच्चों को समझाना, मां बाप की हालत अपनी जगह, बीवी की परेशानी अपनी जगह, इन सब ने सब्र किया, बर्दाश्त किया, फ़ख़्र किया।

जब यह बेड़ा वापस आ गया, हमारे मुल्क पहुंच गया, तो मैंने घरवालों की वीडियो क्लिप देखी। देख कर महसूस हो रहा था कि औरतों को, बीवियों को, बाप को, माओं को इस बात पर फ़ख़्र हो रहा था कि उनके प्यारे ने यह बड़ा काम किया है। यह फ़ख़्र बहुत अहम चीज़ है। फ़ख़्र का यह एहसास इन्सान में कुछ करने का जज़्बा पैदा करता है, ख़ुद आप को और दूसरों को भी जिससे वो बड़े-बड़े काम करते हैं।

अगर घरवाले नाराज़ होते, बड़बड़ाते, ग़ुस्सा दिखाते तो जो लोग गये थे वह भी पछताने लगते। ख़ुदा के शुक्र से घरवालों ने भी बहुत अच्छी तरह यह इम्तेहान दिया, बहुत अच्छी तरह सब्र किया, फ़ख़्र किया और इस फ़ख़्र का इज़हार भी किया।
मैं यहीं पर अपने प्यारे शहीदों के घर वालों को याद करना और उन्हें सलाम करना ज़रूरी समझता हूं। ख़ुदा का शुक्र है आप लोगों के प्यारे घर वापस लौट आए, उन्हें आप ने गले लगाया, उनसे मिले, लेकिन शहीदों के घर में उनकी जगह अब तक ख़ाली है, हमारे पास आज जो कुछ भी है, इन्ही क़ुरबानियों का नतीजा है, जो भी है हमारे पास वह सब कुछ इन्ही बड़े दिल वालों की देन है, हम सब पर उनका एहसान है। मैं जब भी शहीदों के घरवालों से मिलता हूं यह ज़रूर कहता हूं कि अल्लाह आप लोगों का साया, ईरानी क़ौम के सर पर हमेशा क़ायम रखे।

कुछ बातें नेवी के इस बड़े काम के बारे में भी कह दूं। सब से पहली बात तो यह कि आप लोगों का यह काम क़ुरआने मजीद की उस आयत का नमूना है जिसमें कहा गया है कि “उनके लिए जितना हो सके ताक़त और बंधे हुए घोड़ों का इंतेज़ाम करो”। (4) क़ुरआने मजीद ने खुल कर बिना किसी पर्दे के हुक्म दिया है “उनके  लिए तैयार करो” दुश्मनों के मुक़ाबले के लिए तैयारी करो, “जितना हो सके” ग़ौर करें, यह क़ुरआने मजीद कह रहा है। यह दीनी अंदाज़ा या कमज़ोर रवायत नहीं, क़ुरआने मजीद की खुली आयत है।

“उनके लिए जितना हो सके तैयारी करो”। जितना हो सके उतनी तैयारी बढ़ाओ, आप लोगों का यह कारनामा इसी आयत का नमूना है, आपने ताक़त बढ़ायी है, अपनी ताक़त को दुनिया के सामने पेश किया है।

आप का यह काम हालांकि उन कोशिशों का फल था जो आप से पहले वालों ने की हैं, लेकिन ख़ुद यह काम भी एक बुनियाद बन गया, एक भूमिका बन गया उन बड़े कामों के लिए जो अब इसके बाद किये जाएंगे। यही होता है। आप ने यह तैयारी (5) की है। इस बुनियाद पर यह पहली बात कि फ़्लोटिला-86 का मिशन, क़ुरआने मजीद की इस आयत का कि “उनके लिए जितना हो सके ताक़त और बंधे हुए घोड़ों का इंतेज़ाम करो” का व्यवहारिक रूप और नमूना है।

आप के इस क़दम से हमारे फ़ौजियों का हौसला बढ़ा है, हमारी फ़ौजी ताक़त बढ़ी है, “हम कर सकते हैं” का जो नारा है और जो तरक़्क़ी की बुनियाद है, यानी वह तरक़्क़ी जिसकी नींव “हम कर सकते हैं” हो, उस नारे को दिमाग़ों में मज़बूत किया। दुश्मन भी जब यह देखता है तो फिर संभलने पर मजबूर हो जाता है, यह स्वाभाविक बात है। इसी आयत में आगे कहा गया हैः “इस तैयारी से अल्लाह के दुश्मन को डराओगे”।

अपनी तैयारी बढ़ाओ ताकि दुश्मन को यह लगे कि तुम तैयार हो। दुश्मनों को हमले का हौसला देने वाली एक चीज़ यह होती है कि उन्हें यह लगने लगे कि सामने वाला डिफ़ेन्सिव है, कमज़ोर है, शक में है, इससे दुश्मन को हौसला मिलता है हमला करने का। लेकिन जब उन्हें यह नज़र आता है कि नहीं, आप जाग रहे हैं, तैयार हैं, ताक़तवर हैं, जानकार हैं, तो फिर ज़ाहिर सी बात है वे अपना अंजाम सोच लेते हैं।

एक और बात यह है कि आप का जो यह काम है वह नौसेना और सेना के लिए जहाज़रानी के मैदान में एक क़ीमती तजुर्बा है, यानी एक नया तर्जुबा मिला हैः प्रशांत महासागर को पार करना, यह काम अभी तक हमारे मुल्क में नहीं हुआ था। मुश्किल समुद्री रास्तों से गुज़रना, जैसा कि अभी बताया गया।

इनमें से कुछ रास्तों से गुज़रने के लिए तकनीक और महारत की ज़रूरत होती है और यह काम आप ने कर लिया, बिना किसी दुर्घटना के आप लोग इन जलमार्गों और कठिन रास्तों से गुज़र गये। समुद्र में बहुत अंदर जहां से आप का घर हज़ारों किलोमीटर दूर हो, तरह तरह के प्राब्लम्स आपके सामने आए, आप ने उन सब का मुक़ाबला किया।

ईंधन में, बिजली में, हेल्थ और इलाज में, सब में आप आत्म निर्भर रहे, यानी आप ने इस रोमांचक यात्रा में, ईंधन में भी सिर्फ़ ख़ुद पर भरोसा किया और बिजली व एनर्जी में भी किसी से मदद नहीं ली, दवा इलाज के सिलिसले में भी अपने पैरों पर खड़े रहे, सर्जरी की, यह सब बहुत क़ीमती तजुर्बे हैं। हेड क्वार्टर से संपर्क बनाने में भी आप ने नया तजुर्बा किया।

यह जो हुआ है, यह जो संपर्क बना रहा यह भी बहुत अहम चीज़ है, संपर्क बनाए रखने की योग्यता। यह आप का तजुर्बा था, यह सब ख़ज़ाने हैं, यह बातें जो मैंने कही हैं, यह कामयाबियां, यह सब वैज्ञानिक पूंजी है और युनिवर्सिटियों में इसे पढ़ाया जाना चाहिए। नेवी की युनिवर्सिटियों में और जहां इस तरह की शिक्षा दी जाती हैं वहां यह आप का मिशन सिलेबस में शामिल किया जा सकता है।

एक और बात जो कहना चाहिए वह यह है कि आप के इस कामयाब मिशन से दुनिया में ईरान की छवि बेहतर हुई है। मैं यह कहना चाहता हूं कि आप की इस कामयाबी का राजनीतिक असर, उसके फ़ौजी असर से अगर ज़्यादा नहीं तो कम भी नहीं था। यही जो आप ने समुद्र में यह काम किया है यह कि ईरान में यह ताक़त थी, इतने नौजवान, इतनी वैज्ञानिक योग्यता, इतनी महारत थी कि वह इतना बड़ा काम करने में कामयाब हुआ, इससे पूरी दुनिया में ईरान की इज़्ज़त बढ़ी है।   

दूसरी बात यह है कि आप का यह समुद्री सफ़र कई सबक़ लिये हुए है, जिन पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है। सब से पहला सबक़ अल्लाह की पहचान है। समुद्र अल्लाह की एक बड़ी निशानी है। हम दुआ में पढ़ते हैं कि “हे वह जिसके अजूबे, समुद्रों में हैं”। (6) समुद्र इस कायनात की अजीब व हैरतअंगेज़ चीज़ों की जगह है।

समुद्र की विशालता, महासागरों की अथाह गहराई, समुद्र की ख़ूबसूरती, कहीं उसका उफान, कहीं उसका प्यार, एक से एक जीव जंतु, यह सब अल्लाह की निशानियां हैं। यह सब उसकी ‘आयतें’ हैं। समुद्र दरअस्ल एक शोरूम है, अल्लाह की निशानियों का। इस लिए समुद्री यात्रा का पहला सबक़, अल्लाह की पहचान है, अल्लाह पर इन्सान का ईमान बढ़ता है क्योंकि वह अपनी आंखों से उसकी निशानियों को देखता है।

दूसरा सबक़ इन्क़ेलाब का सबक़ है। इस समुद्री यात्रा ने ईरान के इस्लामी इन्क़ेलाब की क़ीमत और अहमियत को, हमारे लिए, आप के लिए, और आप के मिशन की जानकारी रखने वाले हर एक के लिए ज़्यादा अच्छी तरह सामने ला दिया, क्यों? क्योंकि यह नॉलेज, यह योग्यता, यह सेल्फ़ कान्फ़िडेंस हमें इन्क़ेलाब ने दिया है, यह ठोस इरादा, इतना बड़ा काम करने की हिम्मत, इन्क़ेलाब ने हमें दी है।

इन्क़ेलाब से पहले इन सब के बारे में कोई सोचता भी नहीं था, पहलवी और क़ाजारी हुकूमत के शर्मनाक दौर में हम समुद्र के इतने तटों के बावजूद, इतने बड़े समुद्र के मालिक होने के बावजूद, समुद्र को पहचानते ही नहीं थे, कुछ नहीं पता था, हमारी नौसेना दूसरे कामों में मस्त थी।

ख़ुशक़िस्मती से आप लोगों ने वह दौर नहीं देखा। उन लोगों में जो सच्चे लोग थे, पाकीज़ा थे, वह हमें बताते थे कि उस दौर की नौसेना में क्या होता था। इस तरह के बड़े बड़े मिशन की बात भी नहीं होती थी। यह सब इन्क़ेलाब की देन है, यह सब इन्क़ेलाब की बदौलत है और उसकी वजह से हमारी फ़ौज यह करने में कामयाब हुई। तो दूसरा सबक़, इन्क़ेलाब का सबक़ है। इन्क़ेलाब ने समुद्र के दरवाज़े खोल दिये, भुला दी गयी समुद्री यात्राओं को नयी ज़िंदगी दी।

आप के इस काम का एक और सबक़, सेक्यूरिटी की गारंटी है। दूर दराज़ के इलाक़ों में आप की मौजूदगी, पेसिफ़िक और एटलांटिक महासागर के बहुत अंदर आप की मौजूदगी से मुल्क की सुरक्षा मज़बूत हुई है। आप ने यह साबित कर दिया कि समुद्र सब का है, अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र पर किसी का एकाधिकार नहीं है।

इन बड़ी ताक़तों के अगर बस में होता तो महासागरों को भी अपने नाम कर लेतीं ताकि दूसरे वहां तक न पहुंच पाएं। इन्सानियत के लिए मौजूद चीज़ों पर क़ब्ज़ा करना बड़ी ताक़तों की आदत है, अमरीका की आदत है, आप ने इस ख़्याल को ख़त्म किया।

हालांकि इसी यात्रा में आप लोगों से दुश्मनी की गयी, कई काम किये ताकि आप का सफ़र रुक जाए या अधूरा रह जाए, लेकिन आप लोगों ने उन बाधाओं को पार कर लिया, आप लोगों ने यह साबित कर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र सब के लिए है। आप के इस मिशन का एक नतीजा यह था कि आप ने यह साबित कर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र पर सब का हक़ है।

यह जो कहते हैं कि “हम इस बात की इजाज़त नहीं देंगे कि अमुक जहाज़ अमुक इलाक़े या स्ट्रेट से गुज़रे” तो यह सब बकवास है! क्यों? अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र पर सब का हक़ है, सब वहां से गुज़र सकते हैं, सब के लिए वहां से आना जाना मुमकिन हो। समुद्र सभी क़ौमों के लिए आज़ाद होना चाहिए, सुरक्षित जहाज़रानी और समुद्री परिवहन सारे देशों के लिए मुमकिन होना चाहिए।

आजकल अमरीकी, तेलवाहक जहाज़ों पर हमले करते हैं, समुद्री तस्करों की मदद करते हैं, यह उनका बहुत बड़ा ग़ैर क़ानूनी काम है, हमारे इलाक़े में यह सब करते हैं। दूसरे इलाक़ों के बारे में भी हमें थोड़ी बहुत जानकारी हैं कि वहां भी यही करते हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय नियमों का ऐसा उल्लंघन है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। आप ने समुद्र में ‘सब की सुरक्षा के क़ानून’ को लागू किया। यह भी एक सबक़ है।

आप के इस मिशन के बारे में इतने ढेर सारे सबक़ की बात की तो उसका एक नतीजा निकालना चाहिए और वह यह कि हमें यह जान लेना चाहिए कि इन्सानों की कामयाबी, बड़े बड़े कमाल, तरह तरह की तरक़्क़ी, पूरी होने वाली तमन्नाएं, सब कोशिश व मेहनत की कोख से जन्म लेती हैं, कठिनाइयों की कोख से पैदा होती हैं।

आराम करने और एक कोने में बैठ कर तमाशा देखने, दूसरों से जलने और कभी कभी बुरा भला कहने से, कुछ नहीं होता। कठिनाई बर्दाश्त करना पड़ता है, कोशिश करनी पड़ती है, काम करना होता है, तब कामयाबी नसीब होती है।

पहाड़ की चोटी पर जाने वालों को नीचे से देख कर यह कहना कि हम भी वहां पहुंचना चाहते हैं, चोटी पर पहुंचने के लिए काफ़ी नहीं है। अगर वहां पहुंचना है तो रास्ते की कठिनाइयों को बर्दश्त करना पड़ेगा, वर्ना वहां तक नहीं पहुंच सकते। आप ने यह साबित किया और यह बहुत बड़ा सबक़ है।

अब आख़िर में मैं दो बातें संक्षेप में कह दूं। एक बात तो यह कि आप का यह 8 महीनों का सफ़र, टीवी और सिनेमा के लिए अच्छा सब्जेक्ट हो सकता है, कलाकार मैदान में आएं। इस दौरान आप के साथ जो जो हुआ है वह ऐसा नहीं है कि उसे कुछ पेज की रिपोर्ट या कुछ मिनट की तक़रीर में समेटा जा सके।

आप के साथ घटी घटनाओं का हर लम्हा, आप 350 लोग थे, सब की अपनी सोच समझ थी, सब ने कुछ न कुछ किया होगा, ख़ुश हुए होंगे, परेशान हुए होंगे, यह सब मिल कर एक बहुत लंबी और सीख देने वाली कहानी है। इस मिशन को पहचनवाने के लिए इस कहानी पर सीरियल या फ़िल्म बनाने का काम कलाकारों का है, उन्हें यह काम करना चाहिए।

मेरी आख़िरी बात जो मुल्क के ओहदेदारों से है वह समुद्र पर ध्यान देने की है। हम  समुद्र पर उतना ध्यान नहीं दे रहे हैं जितना देना चाहिए। आज दुनिया का 90 फ़ीसद व्यापार समुद्र के रास्ते से होता है। समुद्री परिवहन, इन्टरनेशनल ट्रांस्पोर्टेशन का बहुत अहम हिस्सा है। हम भी ख़ुशक़िस्मती से उन मुल्कों में हैं जिनके पास कई हज़ार किलोमीटर की समुद्री सीमा है, वह भी तरह तरह के समुद्रों की।

हमारे मुल्क के नार्थ में समुद्र है, साउथ में समुद्र है, महासागर है, हमें इससे बहुत फ़ायदा उठाना चाहिए, समुद्र से बहुत फ़ायदा उठाना चाहिए। मुल्क के ओहदेदारों को, इस मैदान से ताल्लुक़ रखने वालों को बैठ कर इस पर ग़ौर करना चाहिए, प्लानिंग करना चाहिए, योजना बनानी चाहिए। कुछ दिनों से इस दिशा में काम शुरु हुआ है लेकिन हमें समुद्र से बहुत ज़्यादा फ़ायदा उठाना चाहिए।

दुनिया में बहुत से मुल्क हैं जो लैंड लाक्ड देश हैं। दरअस्ल बहुत से मुल्क, कई देशों के बीच फंसे होते हैं, उन्हें कहीं भी जाने के लिए अपने चारों तरफ़ मौजूद मुल्कों से इजाज़त लेना होती है, समुद्र नहीं होता। जब मैं प्रेसिडेंट था, एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन में एक मुल्क के प्रमुख ने हमसे मुलाक़ात की मांग की, जब वह आए और मेरे पास बैठे तो उनका सब से पहला सवाल यह था कि आप के देश में समुद्र है? मैंने कहा, हां, बहुत ज़्यादा समुद्र है, ख़ुदा का शुक्र है, बहुत समुद्र है।

कहने लगे, आप की ख़ुशक़िस्मती है! हमारे मुल्क में समुद्र ही नहीं, उनकी प्राब्लम यह थी। सब से पहली जो बात की वह समुद्र होने न होने की बात थी, सच्चाई भी यही है। समुद्र से फ़ायदा उठाना चाहिए, हमें अपनी तरह तरह की समुद्री सीमाओं से फ़ायदा उठाना चाहिए, हमें राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए उन्हें इस्तेमाल करना चाहिए।

इस साल इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की बरकतों से बहुत जोशे अक़ीदत से मुहर्रम मनाया गया। दुश्मनों ने बहुत कोशिश की कि मुहर्रम की रौनक़ ख़त्म कर दें लेकिन वो जो चाहते थे उसका उलट हुआ। इस साल मुहर्रम और शुरू के दस दिन पिछले बरसों के मुक़ाबले में ज़्यादा जोश व जज़्बे और अच्छी तरह मनाए गए। अल्लाह का काम इसी तरह का होता है, अल्लाह के लिए जो काम किया जाता है, जो इलाही मक़सद के लिए होता है अल्लाह उस काम में मदद करता है।

अल्लाह आप सब को हमेशा कामयाबी दे, इज़्ज़त दे। आप लोग सच में मेरे बच्चे हैं, हमेशा आप सब के लिए दुआ करता हूं और यक़ीन है कि अल्लाह ज़िंदगी के हर मोड़ पर, ज़िंदगी के हर बड़े इम्तेहान में, इसी इम्तेहान की तरह आप को कामयाब करेगा।
वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहू

इस मुलाक़ात की शुरुआत में नौसेना के प्रमुख एडमिरल शहराम ईरानी, फ़्लोटिला-86 के कमांडर रियर एडमिरल फ़रहाद फ़त्ताही और फ़्लोटिला-86 के एक सैनिक की बीवी ने तक़रीर की।

इस्लामी जुम्हूरिया ईरान की नेवी के फ़्लोटिला-86 ने 1अक्तूबर सन 2022 को अपनी यात्रा शुरु की थी और यह बेड़ा 65 हज़ार किली मीटर की यात्रा करके पृथ्वी का एक चक्कर लगा कर 20 मई सन 2023 को बंदर अब्बास वापस पहुंच गया।

पैकान नामक छोटे जहाज़ ने इराक़ से जंग के दौरान 28 नंवबर सन 1980 को इराकी नौसेना को काफ़ी नुक़सान पहुचांया लेकिन आख़िर में वह तबाह हो गया और उसमें मौजूद सभी सैनिक शहीद हो गये।

सूरए अन्फ़ाल,आयत 60
फौजी तैयारी, फौज़ी हथियार की तैयारी।
  ज़ादुल मआद, पेज437 दुआए जोशने कबीर

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .