हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहां,ठीक तीन साल पहले इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लडीर ने ग़ैर मामूली सलाहियत के मालिक नौजवानों से मुलाक़ात में कहा थाः मुझे यक़ीन है कि आप नौजवान इतिहास और इस तरह की चीज़ों को ज़्यादा अहमियत नहीं देते। जो कुछ हुआ हैं उसका हज़ारवां हिस्सा भी आपने बातों और प्रोपैगंडों में नहीं सुना है।
यह बातें, जो हमारी तारीख़ में अंग्रेज़ों के क्राइम की तस्वीर पेश करती हैं, एक मोतबर राइटर ने बयान की हैं, एक इंक़ेलाबी व साम्राज्यवाद मुख़ालिफ़ इंसान, जवाहरलाल नेहरू
सन 1928 में गर्मी के मौसम में नेहरू की बेटी इंदिरा, जो उस वक़्त दस साल की थीं, अपने बाप से दूर एक हिल स्टेशन में रहती थी। उस गर्मी के मौसम में नेहरू ने अपनी बेटी को सिलसिलेवार तरीक़े से कुछ ख़त लिखे जिनमें उन्होंने आसान ज़बान में ज़मीन के वजूद में आने, ज़िन्दगी शुरू होने, सबसे पहले बनने वाले क़बीलों और समाजों के गठन की दास्तां बयान की है। बाद में उन्होंने उन ख़तों को जिनकी कुल तादाद तीस थी, एक किताब की शक्ल में छपवाया।
नेहरू, अपनी समाजी व सियासी ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव की वजह, कि जिनके मन में इंक़ेलाब के बुलंद उद्देश्यों की धुन सवार थी, बार-बार जेल गए। सन 1930 में जब नेहरू को एक बार फिर जेल जाना पड़ा, उन्होंने मौक़े से फ़ायदा उठाते और जेल में मिलने वाले ख़ाली वक़्त का सदुपयोग करते हुए अपनी बेटी को नए ख़त लिखने का इरादा किया। ये नए ख़त अक्तूबर सन 1930 से लेकर अगस्त सन 1933 तक, क़रीब तीन साल की मुद्दत में लिखे गए और उनमें वर्ल्ड हिस्टी के एक दौर पर नज़र डाली गयी।
सन 1933 के अंतिम दिनों में जब नेहरू की जेल की मुद्दत ख़त्म हो गयी, उन्होंने अपने ख़तों पर एक नज़रे डाली और उन्हें छपने के लिए तैयार किया लेकिन चूंकि जल्द ही यानी 12 फ़रवरी सन 1934 को उन्हें दोबारा जेल जाना पड़ा, इसलिए उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने उन ख़तों को एक किताब की शक्ल दी और उसका नाम ʺविश्व इतिहास की झलकʺ (Glimpses of World History) रखा और उसे दो जिल्दों में छपवाया।
यह किताब इतनी लोकप्रिय हुयी कि सन 1938 में नायाब हो गयी। पंडित नेहरू ने एक बार फिर अपनी तहरीरों पर नए एडिशन के लिए नज़रे सानी की और उनमें कुछ सुधार करने के साथ ही एक नया चैप्टर बढ़ा दिया। इस तरह यह एक बार फिर बाज़ार में आयी और इतना ज़्यादा इसे पसंद किया गया कि 75 साल गुज़रने के बाद भी, यह इतिहास की अच्छी किताबों में गिनी जाती है।
जवाहरलाल नेहरु इस किताब के आग़ाज़ में लिखते हैः
ʺमैं एक ऐसी जेल में क़ैद था जहाँ कोई लाइब्रेरी नहीं थी और क़ैदी के पास ऐसी किताबें नहीं थी जिन्हें रेफ़्रेंस के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता हो, ऐसे हालात में किसी भी सब्जेक्ट ख़ास तौर पर इतिहास पर किताब लिखना, बहुत कठिन व गुस्ताख़ाना काम है। जेल में कुछ किताबें मेरे पास आती थीं, लेकिन उन्हें मैं अपने पास नहीं रख सकता था, किताबें आती थीं और चली जाती थीं। इसलिए मैंने इस बात की आदत डाल ली कि जिन किताबों को मैं पढ़ता था, उनके नोट्स लिखूं।
मेरे ये नोट्स, जिनकी तादाद कुछ ही मुद्दत में बहुत ज़्यादा हो गयी थी, बाद में ख़त लिखते वक़्त मेरे बहुत काम आए। उस ज़माने में ऐसी अच्छी किताबों की कमी, जिन्हें रिफ़्रेन्स के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता हो, पूरी शिद्दत से महसूस होती थी और इसी वजह से कुछ दौर का ज़िक्र क़लम से न हो सका और वे अनकहे रह गए। मेरे ख़त निजी हैं और उनमें ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनका मानी व मतलब सिर्फ़ मेरी बेटी के लिए मख़सूस है। मुझे नहीं मालूम उनके साथ क्या करना चाहिए क्योंकि उन्हें बाहर निकालना ऐसा काम नहीं है जो आसानी से हो जाए।
नेहरू आगे लिखते हैः वाक़यों व घटनाओं को देखने का मेरा अंदाज़ किसी इतिहासकार की तरह नहीं है। बुनियादी तौर पर मुझे इतिहासकार होने का दावा भी नहीं है। जो कुछ इन ख़तों में है वह बड़ों की नज़र से नौजवानों की इब्तेदाई बहस व गुफ़्तुगू के लिए तहरीरों का बेतरतीब अंबार है।
इस किताब का सेंटर प्वाइंट भारत है। यानी ʺविश्व इतिहास की झलकʺ में लेखक भारत में बैठा हुआ है। वह पहले दौर की तारीख़ पर एक नज़र डालता है और फिर वक़्त के कंधे पर सवार होकर धीरे-धीरे अपने दौर तक पहुंचता है। इतिहास के इस तरह के बयान और विशलेषण में, जो नेहरू ने अंजाम दिया है, वाक़यों की जगहों (भुगोल) पर भी ख़ास तौर पर ध्यान दिया गया है।
इसलिए एशिया और पूरब व पश्चिम का तारीख़ी टकराव भी इस किताब का सेंटर प्वाइंट है। इस किताब की एक और अहम ख़ूबी दुनिया में होने वाले वाक़यों का सिलसिलेवार बयान और उनका आपस में एक दूसरे से कनेक्शन बयान करना है। इस किताब को लिखने का मक़दस तारीख़ से सबक़ हासिल करना है और राइटर ने ग़ैर जानिबादारी का दावा नहीं किया है।
वह एक पक्का भारतीय है जिसने अपने मुल्क और दुनिया की तारीख़ बयां करते हुए शुरू से ही साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ ख़ास जज़्बे का मुज़ाहेरा किया है। कहा जा सकता है कि ʺविश्व इतिहास की झलकʺ तहरीर में आने वाली सबसे सच्ची तारीख़ों में से एक है, उन लोगों की ज़बानी बयां होने वाली तारीख़ जिन्हें आदत पड़ चुकी थी कि उनकी तारीख़ तक पश्चिम वाले लिखें।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई कहते हैः ʺजवाहर लाल नेहरू की यह किताब ʺविश्व इतिहास की झलकʺ पढ़िए, किताब के जिस हिस्से में वह भारत में अंग्रेज़ों की घुसपैठ व मुदाख़ेलत को बयां करते हैं, उसकी तस्वीर कशी करते हैं, वज़ाहत करते हैं- वह एक ऐसे इंसान हैं जो बाख़बर भी हैं और ईमानदार भी- वहाँ कहते हैं कि भारत में जो इंडस्ट्री थी, भारत में जो साइंस थी वह युरोप, ब्रिटेन और पश्चिम से कम नहीं थी बल्कि ज़्यादा थी। अंग्रेज़ जब भारत में घुसे तो उनका प्रोग्राम यह था कि लोकल इंडस्ट्री को फैलने से रोक दें। फिर भारत की नौबत यहाँ तक पहुंच गयी कि वहाँ उस वक़्त दसियों लाख और बाद में करोड़ों लोग सही मानी में ग़रीब, फटेहाल, फुटपाथ पर सोने वाले और फ़ाक़ाकश हो गए।
📕Glimpses of World History