हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत फातिमा ज़हेरा स.ल.के जन्म दिन के अवसर पर एक सम्मेलन का आयोजन किया गया ईरानी कल्चर हाउस में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा पारिवारिक मूल्यों और समाज के लिए एक आदर्श हैं,एक रोल मॉडल,इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में विद्वानों और शिक्षकों को डॉ. मोहम्मद अली रब्बानी ने संबोधित किया।
ईरान कल्चर हाउस और कनीज़ाने ज़हरा द्वारा यह सम्मेलन आयोजित किया गया इस सम्मेलन का उद्घाटन जवारीया अब्दुल्लाह ने पवित्र क़ुरआन से किया जबकि सैय्यदा रियाज़ फातिमा ने निज़ामत के कर्तव्यों को अंजाम दिया।
ईरान कल्चर हाउस के कल्चरल काउंसलर डॉ. मोहम्मद अली रब्बानी ने अपने उद्घाटन के बाद सभा संबोधन में कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा की जन्म तिथि को इस्लामी इतिहास की एक महत्वपूर्ण वकिया माना जाना चाहिए।
क्योंकि जिन दिनों में उनका जन्म हुआ वह महिलाओं के लिए बहुत दर्दनाक दिन थे बेटियाँ शर्मनाक थी, ऐसे दौर में अल्लाह ने पैगंबर को फातिमा जैसी बेटी आता कि आयत के रूप में दिया जो उस दौर की सभी नैतिक और सामाजिक विकृतियों के लिए अल्लाह की ओर से मुख्य जवाब था।
उन्होंने कहा कि हज़रत ज़हेरा का जन्म अल्लाह ताला की व्यवस्था का एक हिस्सा था, जिसमें अल्लाह इंसानियत के कारवां को जवाब देना चाहता था कि इस्लाम धर्म में लैंगिक भेदभाव का कोई अवधारणा नहीं है।
चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, दोनों का अपना सम्मान और मर्यादा है। डॉ. रब्बानी ने हज़रत फ़ातिमा की महानता का वर्णन करते हुए कहा कि पैगंबर न केवल एक पिता के रूप में बल्कि ईश्वर के पैगंबर के रूप में भी और सभी गुणों और सिद्धियों के बावजूद, वह अपनी बेटी का हाथ चूमते थे और इस पर बेहद गर्व महसूस करते थे,डॉ. मुहम्मद अली रब्बानी ने कहां,जहा अरब में बेटियों को जिंदा दफनाने की प्रथा थी।
हज़रत मुहम्मद को फातिमा जैसी बेटी देकर अल्लाह ने उन सभी को मुंहतोड़ जवाब दिया, जो सोचते थे कि पैगंबर की पीढ़ी आगे नहीं बढ़ेगी उनमें से फ़ातिमा का चरित्र एक उत्तर था, जिसका परिणाम आज हमारे सामने है कि इन रियासतों का कोई नामो निशान नहीं है और उस समय के खिलाफाओ का कोई निशान नहीं है। जिसका आज पता नहीं है, लेकिन रसूल के 20 लाख शुद्ध वंशज आज इस दुनिया में मौजूद हैं।
ईरानी काउंसलर ने कहा कि इस्लामी दृष्टिकोण से महिलाओं का विशेष महत्व है क्योंकि अल्लाह ताला ने इस्लाम को नैतिकता और प्रकृति के सभी सिद्धांतों पर बनाया है और इस धर्म को समर्थित किया है जिसमें महिलाओं की मौलिक भूमिका है।
डॉ मुहम्मद अली रब्बानी ने शोषण का जिक्र करते हुए कहा कि अगर दुनिया ने इस्लाम में महिलाओं को दिए गए पद और अधिकार, नैतिकता और सम्मान पर विचार किया होता तो ऐसी स्थिति आज नहीं होती यह संभव है कि अगर महिला को उसकी गरिमा वापस मिल जाए तो समाज में संतुलन और नैतिक बहाली हो सकती हैं।
उन्होंने कहा कि महिलाओं ने ईरान और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंधों के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है भारत-ईरान संबंधों के रूप में हम जितनी भी इमारतों और स्मारकों को साझी विरासत के रूप में देखते हैं, उनमें कहीं न कहीं महिलाओं की भूमिका है।
डॉ. रब्बानी ने कहा कि आज भी इस बात की पूरी संभावना है कि भारत और ईरान की महिलाएं इन दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
उन्होंने कहा कि हज़रत फातिमा वह महान शख्सियत हैं जिनके लिए खुद पैगंबर फरमाते हैं कि अगर सभी अच्छे और नैतिक गुणों को मूर्त रूप दिया जाए तो वह फातिमा ज़हरा के वजूद में नज़र आएंगे
जनाब रियाज़ फातिमा ने कहा कि कोई भी इंसान फातिमा की महानता और उच्चता को नहीं समझ सकता है, क्योंकि इसे समझने के लिए तौहीद के लहजे और कुरान के शब्द का होना ज़रूरी हैं।
अंत में आए हुए सभी विद्वानों और बुद्धिजीवियों और मौजूद लोगों का शुक्रिया अदा किया