۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा | काफिरों के साथ संबंधों में अपनी सांस्कृतिक सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِن تُطِيعُوا فَرِيقًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ يَرُدُّوكُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ كَافِرِينَ  या अय्योहल्लज़ीना आमनू इन तोतीऊ फ़रीक़म मेनल लज़ीना ऊतुल किताबा यरद्दूकुम बादा ईमानेकुम काफ़ेरून  (आले-इमरान, 100)

अनुवाद: हे विश्वासियों! यदि तुम अहले किताब में से किसी समूह की बातें मान लो तो वे तुम्हें ईमान के बाद कुफ़्र की ओर लौटा देंगे।

क़ुरआन की तफसीर:

1️⃣ आस्था और धार्मिक विश्वासों की सीमाओं की रक्षा करना सभी विश्वासियों की जिम्मेदारी है।
2️⃣ कुछ अहले किताब की ओर से ईमानवालों को भटकाने और गुमराह करने पर आमादा हैं और कोशिश कर रहे हैं।
3️⃣ ईमानवालों को इस्लाम के दुश्मनों की भ्रामक साजिशों से अवगत रहना जरूरी है।
4️⃣ ईमानवालों पर अल्लाह की विशेष कृपा और ध्यान।
5️⃣ काफिरों से रिश्ते में अपनी सांस्कृतिक सीमाओं का ख्याल रखना चाहिए।


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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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