۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा | यहूदी और ईसाई विद्वान जानबूझकर सच को झूठ के साथ मिलाते है और अल्लाह तआला की निंदा करते है। यहूदी और ईसाई विद्वान सत्य को झूठ के साथ मिलाकर और सत्य को छिपाकर लोगों को गुमराह करते थे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَلْبِسُونَ الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُونَ الْحَقَّ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ   या अहलल किताबे लेमा तलबुसूनल हक़्का बिल बातेले व तकतोमूनल हक़्क़ा व अंतुम ताअलमून (आले-इमरान, 71)

अनुवाद: ऐ अहले किताब! आप सत्य को असत्य से भ्रमित क्यों करते हैं? और तुम जानते हुए भी सत्य को क्यों छिपाते हो (सच्चाई क्या है)।

क़ुरआन की तफसीर:

1️⃣ यहूदी और ईसाई विद्वान जानबूझकर सच को झूठ के साथ मिलाते हैं और अल्लाह तआला की तरफ से उनकी निंदा करते हैं।
2️⃣ यहूदी और ईसाई विद्वान सत्य को असत्य में मिलाकर और सत्य को छिपाकर लोगों को गुमराह करते थे।
3️⃣ सच को छिपाना और झूठ में मिलाना मना है।
4️⃣ सत्य को उजागर करना और उसमें असत्य का मिश्रण न करना विद्वानों व बाख़बर लोगों का कर्तव्य है।


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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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