۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
दिन की हदीस

हौज़ा/इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने एक रिवायत में ज़ियारत सैयद अल-शोहदा (अ) के मक़ाम और मंज़िलत की ओर इशारा किया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इस रिवायत को "काामिल अल-ज़ियारत" पुस्तक से लिया गया है।  इसका पाठ इस प्रकार है:

عنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَیْمُونٍ الْقَدَّاحِ عَنْ أَبِی عَبْدِ اللَّهِ (ع) قَالَ:

قُلْتُ لَهُ مَا لِمَنْ أَتَی قَبْرَ الْحُسَیْنِ (ع) زَائِراً عَارِفاً بِحَقِّهِ غَیْرَ مُسْتَکْبِرٍ وَ لَا مُسْتَنْکِفٍ؟ قالَ یُکْتَبُ لَهُ أَلْفُ حِجَّةٍ وَ أَلْفُ عُمْرَةٍ مَبْرُورَةٍ وَ إِنْ کَانَ شَقِیّاً کُتِبَ سَعِیداً وَ لَمْ یَزَلْ یَخُوضُ فِی رَحْمَةِ اللَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ

अब्दुल्लाह बिन मैमून अल-क़ादा ने हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (अ) से पूछा: एक व्यक्ति जो मारफ़त के साथ इमाम हुसैन (अ.) की ज़ियारत को जाता है, और इस सफ़र में वह किसी भी प्रकार के घमंड से दूर है, तो उस ज़ियारत का सवाब क्या होगा?  इमाम ने फ़रमाया: उसके लिए एक हजार हज और एक हजार उमरा का सवाब दर्ज किया जाएगा, और भले ही वह गरीब और बदबख़्त हो, वह इससे खुश रहेगा और हमेशा अल्लाह की रहमत में डूबा रहेगा।

कामिल अल-ज़ियारत, पेज 156

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